गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009

करीब पांच साल पहले मैं अपने चाचा के परिवार के साथ बोस्टन गया था. हम बोस्टन के एक उपनगर में मेरे चाचा के दोस्त के घर पर रह रहे थे. हमने बोस्टन में एक पूरा हफ्ता काटा. चाचा के दोस्तों ने हमें बोस्टन का काफी सेर करवाया. बोस्टन में बहुत सारे महाविध्यालय हैं जैसे हारवर्ड उनिवेर्सित्य, मस्सचुसेत्तेस इन्स्तितुते ऑफ़ टेक्नोलॉजी, आदि.

चाचा की दुकान

दसवी की परीक्षा ख़तम होने के बाद मेरी चार महीने की छुट्टियां थी. मेरे माता पिता ने मुझे छुट्टी पर अमेरिका भेज दिया. यहाँ में अपने चाचा के परिवार के साथ दो महीनों के लिए रहा. मेरे चाचा के परिवार में उनकी पत्नी थी और उनके दो बेटे है. उन दो महीनों के दौरान मैं अमेरिका बहुत घूमा. मेरे चाचा इल्लिनोईस मैं वेर्नों हिल्स नमक एक शहर में रहते थे. मेरे चाचा चिकागो में एक ग.न.क की दूकान चलाते थे. जब मेरे चचेरे भाई स्कूल जाते थे में अपने चाचा के साथ उनकी दुकान जाकर उनकी मदत करता था. जब भी में दुकान पर था मैं चिकागो शहर की सेर करने निकलता था, चाचा की दुकान मिचिगन अवेनुए पर थी. चिकागो के इसी मिचिगन अवेनुए का हिस्सा 'मग्निफिसेंट मिले' बुलाया जाता था. इस हिस्से में बहुत बड़ी-बड़ी दुकानें हैं. इन दुकानों का सेर कर के मुझे बहुत मजा आता था. हर तरफ ऊँची इमारतों थी और मौसम भी बहुत सुहाना था. एसे माहौल में रह कर मुझे बहुत ख़ुशी होती थी.

गणेश चतुर्थी

हर साल अगस्त के महीने में भारत गणेश चतुर्थी का त्यौहार मनाता है. त्यूहर के दोरान मेरे घर पे गणेश की मूर्ति आती है. यह मूर्ति मिट्टी की बनी होती है. दो दिनों के लिए यह मूर्ति मेरे घर पर होती है. मेरा पूरा परिवार मिल कर मूर्ति की पूजा दिन में तीन बार करता हैं. मेरी बहुत सी यादें इस त्यौहार से जुडी है. जब भी गणेश भगवन घर आते है घर में हलचल सी मची होती है. मेहमानों का आना जाना रहता है. हर महमान मूर्ति के दर्शन कर के प्रसाद खता है. महमानों के लिए स्वादिष्ट खाना परोसा होता है.माहाराष्ट्र में खास कर गणेश भगवन के बहुत भक्त है. गणेश चतुर्थी के दोरान मोधक नाम की मिठाई बाटी जाती है. यह मिठाई सिर्फ त्यौहार दोरान मिलती है और मुझे बहुत पसंद है. मुझे यह त्यौहार पसंद आता है क्यों की घर में ख़ुशी का महूल होता है, पूरा परिवार साथ में होता है और स्वादिष्ट खाना और मिठाई खाने का मोका मिलता है. पिछले तीन सालों से मैंने यह त्यौहार एक बार भी नहीं मनाया है और मुझे वह त्यौहार मनानें का बहुत मन है.

शनिवार, 21 फ़रवरी 2009

जातिवाद

दुबई में साठ प्रतिशत के लोग भारतीय हैं. दस प्रतिशत के लोग यूरोप के आनेवाले हैं और सिर्फ़ बीस प्रतिशत के लोग अरबी हैं. एस कारण दुबई में बहुत जातिवाद होती है. मुझे ये कहने में दुःख होता है की अरबी लोग गोरे लोगों का सात लेते हैं और भारतीयों से जातिवाद करते हैं. अठारह साल के लिए मैं दुबई में रहा. अरबी लोग सोलह साल की उम्र में ही गाड़ी चला सकते हैं परन्तु विदेशी लोगों को अठारह साल की उम्र के बाद ही लाइसेंस लाने का मौका मिलता है. दुबई को स्वतंत्रता मिलने के पहले ही भारतीय लोग दुबई में थे. स्वतंत्रता के पहले दुबई की मुद्रा रुपया थी. दुबई की सफलता में दुबई के भारतीयों को ज़रूर श्रेय देना चाहिए परन्तु हमें ये श्रेय नहीं मिलती है. आज की नए ज़माने में दुबई में जातिवाद कम होती जा रही और दुबई में उन्नति ज़रूर हो रही है परन्तु फ़िर भी कभी कभी स्थिति बुरी होती है.

गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009

होली

मेरा सबसे प्रिय त्यौहार होली है l होली एक रंगों का त्यौहार है जिसे सारे रिश्तेदार और दोस्त मिल कर मनाते है l मेरे घर में जब होली मनाई जाती है तोह सबसे पहले परिवार के सारे लोग सुबह में पूजा करते है और उसके बाद एक दुसरे के माथे पर होली के रंग का टिक्का लगाते है और एक दुसरे को बधाई देते है l उसके बाद मैं अपने दोस्तों के साथ होली मनाने जाता हु l पहले होली सब सूखे रंगों से खेलते थे लेकिन अब होली के लिए ऐसे रंग आते है जोह एक बार लग जाए तोह एक हफ्ते तक मिटते नही है l ऐसे पक्के रंगों के साथ हम मनाते है होली l सारे दोस्त फ़िर अपनी गाड़ियों में निकल कर दूसरे दोस्तों के घर जाते है और रस्ते में होली मन्नते हुए जाते है l होली में रंगों के इलावा अण्डों का भी उपयोग होता है l अंत में सब होली खेल कर एकदम गंदे होकर घर जाते है और फ़िर रात तो सब मिलकर भोजन करते है l कुछ लोगों को लगता है की होली ख़राब होगई है क्योंकि लोग पक्के रंग, अंडे और बहुत ऐसी चीज़ों का प्रयोग करते है लेकिन होली मेरे लिए सबसे मनपसंद त्यौहार है l

बुधवार, 18 फ़रवरी 2009

यहाँ के पुस्तकालय

कल रात की ही बात है जब मैं मिशिगन विश्वविद्यालय के उन्देर्ग्रदुएत पुस्तकालय गई थी | वैसे तो मैं कई बार पुस्तकालय जा चुकी हूँ परन्तु मिशिगन में यह मेरी पहली बार थी | भारत में पले बड़े होने के कारण मुझे हमेशा ऐसी तस्वीर दिखाई गई थी जहाँ पुस्तकालय एक ऐसी जगह है जहाँ कोई बात नही करता एवं चुप चाप अपना काम करता है और किताबें पड़ता है | शायद मुझे पुस्तकालय का यह बिल्कुल अलग झलक कभी न मिलता अगर मैं कल रात इधर के पुस्तकालय गई न होती | इस पुस्तकालय के तीन मंजिल थे एवं अन्दर एक भोजन करने का स्थान भी था| आज तक मैंने कभी ऐसा पुस्तकालय नही देखा था जहां अन्दर कैफे होता है अवं जहाँ लोग ज़ोर ज़ोर से बातें करते हैं| मैं भवन के पहेली मंजिल पर थी और चुप चाप अपना काम करने की कोशिश कर रही थी परन्तु ऐसा करना नमुमकिन था क्यूंकि मेरे चारों ओर लोग केवल बातें कर रहे थे | कोई अपनी पिछली रात के बारे में बता रहा था तो कोई कल की परीक्षा के बारे में बात कर रहा था| एक चीज़ तो मुझे माननी पड़ेगी, की यहाँ आकर अगर हम लोगों की बातें सुनते हैं तो हमारा मनोरंजन ज़रूर हो सकता है | मुझे एक चीज़ समझ में नही आई | यहाँ लोग अपने कमरे में इस लिए नही पड़ते क्यूंकि उन्हें लगता है की ऐसा करने से वे ठीक तरह से मन लगाकर नही पड़ पाएंगे लेकिन पुस्तकालय आने का मतलब अगर तीन घंटे में एक घंटा पड़ने का है तो मुझे यहाँ आने का कोई फायदा नही दिखाई देता | यह कहना सच ही होगा की यहाँ के पुस्तकालय का वातावरण भारत के पुस्तकालयों के वातावरण से बिल्कुल अलग है |

मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009

अनात्मा

बौद्ध धर्म में अनात्मा का सिद्धांत होता है। इस मत को स्थापित करने के लिये बौद्ध शास्त्र में बहुत न्याय इस्तेमाल किया जाता है। इसके सिवाय शास्त्र लोगों के अनु्भव भी परीक्षा करते है। परम द्र्ष्टि से आदमी का सार या तत्व मन से चला जाता है। इस मत को सिखाने के लिये बौद्ध शास्त्र हमें एक प्रसिद्ध द्रिष्टांत दिखाते है। एक बार नागसेन ने राजा मिलिन्द को बौद्ध धर्म के तरफ मोड लिया। इस शुभ फल को नागसेन ने कैसे प्राप्त किया? द्र्ष्टांत के द्वारा उसने अनात्मा मत को सिखाया। नागसेन ने राजा को उसके वाहन के बारे पुछा। प्रश्न था - "राजा, आप यहाँ कैसे आएँ? राजा ने जवाब दिया कि "मैं राजा हूँ और मैं पैदल से हर किस नहीं आया लेकिन रथ से।" नागसेन ने उसको पुछा कि "रथ क्या है-- धुरा, चक्र, रथ का मध्य अंश, या ध्वज?" "नहिं" राजा ने उत्तर दिया। अंत में नागसेन ने कहा कि "भाषा में और व्यवहार द्रिष्ट से रथ का सत्ता मान लीया जाता है। लेकिन जब निकट से विचार करते है, हम रथ या आत्मा को भी नहीं देख सखतें। फिर राजा मिलिन्द ने बौद्ध धर्म को अपनाया।

रविवार, 15 फ़रवरी 2009

ट्रेन यात्रा

मैंने अपना बचपन ज़्यादातर भोपाल में गुज़ारा है | वैसे तो मेरे माता पिता जी हैदराबाद के हैं और मेरा बाकी परिवार भी वहीँ पर है , परन्तु पिताजी के काम के कारण हमें भोपाल में बस जाना पड़ा | मुझे इस बात से कोई भी शिकायत नही | इसी बहाने मुझे हर छुट्टियों में हैदराबाद जाते वक्त ट्रेन में सफर करने को मिलता था | ट्रेन या रेलयात्रा बेशक मेरी ज़िन्दगी के सबसे महत्वपूर्ण अनुभवों में से एक रहा है | काफ़ी लोग इसे दुविधापूर्वक मानते हैं , उस बात से पूरी तरह असहमत भी नही हो सकती , लेकिन उस माहौल में ही अपने देश की काफ़ी झलकियाँ दिखती हैं | एक तरफ़ अमीर-गरीब का भेदभाव दिखता है तो दूसरी तरफ़ पुराणी और नई पीड़ी में फरक | जहाँ एक तरफ़ लोगों के चेहरे अपनों से दूर जाते हुए उदास हो जाते हैं तो दूसरी तरफ़ कुछ लोग अपनों से मिलने के इंतज़ार की खुशी में उत्सुक हो जाते हैं | एक तरफ़ खिड़की वाली सीट पर बैठने को लेकर मारपीट और झगडा करते बच्चे तो दूसरी तरफ़ परिवार में होती समस्याओ को लेकर बड़े बूढो में दमदार बहस | एक तरफ़ वे लोग जिन्हें अपनी व्यस्त ज़िन्दगी में आराम का समय भी नही मिलता था और यह रेलयात्रा एक बहाना है चैन से सोने का , दूसरी तरफ़ वे लोग जो इस रेल को अपने खेल और मनोरंजन का अड्डा बनाने की पूरी तय्यारी करके आए हुए हैं | जिस तरह इन्द्रधनुष में साथ साथ सातों रंग दिखाई देते हैं , रेलयात्रा के दौरान उन चंद घंटो में भारतीय रहन सहन की साड़ी झलकियाँ दिख जाती हैं |

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

फुटबॉल

इस फरवरी के २५ तारीख को
दुनिया के सबसे अच्छे फुटबॉल
तेअमो में से दो तेअमें मैच
खेलने वाली हैं. इटली से इंटर
मिलान नाम की फुटबॉल टीम
इंग्लैंड के मानचेस्टर
उनितेद से मिलान में मैच
खेलेगी. यह मैच इंटर मिलान के
लिए बहुत बढ़ी गेम हैं. अगर
इंटर मिलन ने मानचेस्टर को
हरा दिया, तो इंटर मिलान
चैंपियंस लीग की सेमिफिनाल्स
में पहोच जाएगी. इंटर मिलन
इटली की सबसे बढ़िया टीम हैं.
उन्होंने इस साल के इटालियन
ट्राफी जीत ली हैं. इंटर ने
मिलन के दूसरी टीम ए सी मिलन
को हराके यह ट्राफी जीत ली.
इंटर मिलान का सबसे अच्छा
खिलाड़ी जलातन इब्रहिमोविक
नाम का स्वीडन से खिलाड़ी हैं.
इब्रहिमोविक ने इस साल बीस से
ज्यादा गोल बना लिए हैं. अब,
अगर इंटर मिलान को मानचेस्टर
को हराना हैं तोह
इब्रहिमोविक को बहुत अच्छा
खेल खेलना पढेगा. चाहे इंटर
मिलान जीते या हारे, मेरा दिल
इन्ही के साथ हमेशा रहेगा.

मेरी राष्ट्रीयता

मेरे माता पिता भारतीय हैं. मेरे परिवार के सदस्य भी भारत के रहनेवाले हैं. परन्तु मैं दुबई का रहनेवाला हूँ. मैं दुबई में ही पला भरा और स्कूल की पढ़ाई भी दुबई में की थी. इसके ऊपर मेरी पासपोर्ट कनेडा की है और आज मैं अम्रीका में रहता हूँ. जब मैं लोगों को इसके बारे में बोलता हूँ तो उनको बड़ा अजीब लगता है और मेरी अभिज्ञान के बारे में बात उठाते हैं. जब मैं अंग्रेज़ी में बोलता हूँ तो ऐसा लगता है की मैं भारत का रहनेवाला हूँ. मेरे दोस्तों को बड़ा अजीब लगता है की मेरी पासपोर्ट कनेडा की है पर मेरी लहजा भारतीय की बराबर है. मिशिगन आने पर, और लोगों के पूछने पर मैंने कहा की मैं दुबई से हूँ. इसपर वे कहने लगे की मैं अरबी की तरह नहीं दिखता हूँ और भारतीय जैसा लगता हूँ. मैं अरबी भोल भी नहीं सकता हूँ. पढने और लिखने में मुझे कोई कठिनाई नहीं है परन्तु समझना और बोलना मुश्किल है. मिशिगन आने से पहले मुझे अपनी राष्ट्रीयता के बारे में शंका नहीं होती थी परन्तु आजकल कभी कभी शंका जरुर होती है.

मेरा पहला प्यार !

आज मैं सुबह सुबह कुछ कुछ होता है नमक फ़िल्म देख रही थी. उसमे सब अपने पहले प्यार की बातें कर रहे थे . इससे मैं भी अपने पहले प्यार के बारे में सोचने आर मजबूर हो गई. मैं ६ साल की थी जब एक दिन मैं यूँही घर बैठे दूरदर्शन देख रही थी . तभी मेरे मामा एक बड़ी सी थैली घर लाये. वह थैली बिल्कुल खाली लग रही थी. जब मैंने उसे खोला तो देखा उसमें दो छोटे रूई के गोले जैसे नन्हे मुन्ने से खरगोश के बच्च्रे थे.जब मैंने उन्हें थैली से निकाला तो एक सीधे रसोईघर में जा कर सामान गिराने लगा, पर दूसरी एक कोने में जाकर बैठ गई. उस पल से मुझे उससे प्यार हो गया ! मैंने उसे अपने लिए रख लिया और नटखट वाला अपनी दीदी को दे दिया. ३ सालों तक मैंने उसका बहुत ख़याल रखा , और वो भी मुझे बहुत चाहने लगी थी. जब में पाठशाला से घर वापस आती तो वह उछलते कुद्द्ते दरवाज़े पर मेरा स्वागत करने आती थी. हर रात वह चुपके से मेरी कम्बल के नीचे आकर मेरे साथ सो जाती. उन ३ सालों के बाद हम भारत छोड़ कर जब शारजाह जाने लगे तो मुझे दोनों खरगोश को अपनी अध्यापिका को देना पडा. पहले प्यार को खोने का दर्द तो आप जानतें ही होंगे. महीनो तक मैं हर रात उसे याद करके सोती थी और आज भी कभी कभी मुझे वो बहुत याद आती है.

सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

स्कूल के दिन

मुझे आज भी वह दिन याद है जब मैं स्कूल में थी और मेरे सेनियेर्स का स्कूल में आखरी दिन था | हमने उनके लिए एक बहुत बढ़िया कार्यक्रम तैयार किया था और भोजन का भी प्रबंध किया था | सब लड़कियां सरियों में बहुत सुंदर लग रही थी | कार्यक्रम के शुरुवात में सब हँसती हुई नज़र आ रही थी लेकिन जैसे जसे हम अंत की ओर बढ़े सबकी आँखें भर आने लगी | कोई भी अपनी जीवन मार्ग पर स्कूल छोड़कर आगे नहीं बढ़ना चाहती थी | तब मुझे यह बहुत अजीब लगा और मन ही मन मैंने सोचा की जब मेरा स्कूल का आखरी दिन होगा तो में तो बल्कि बहुत खुश होंगी क्यूंकि आखिरकार तेरह साल बाद मैंने अपना स्कूल ख़त्म कर लिया था | परन्तु मुझे तब क्या पता था की स्कूल छोडके आगे बढ़ना कितना मुश्किल होता है | जिन दोस्तों के साथ मैं ने अपने ज़िन्दगी के तेरह साल काटे थे अब में उनको रोज़ देख भी न पाऊंगी | स्कूल का मेरे जीवन में कितना महत्वपूर्ण स्थान है यह तो मैं शायद अपने स्कूल के आखरी दिन पर भी न समझ पाई, लेकिन जैसे जैसे हम सब अपनी अपनी जीवन राह पर आगे बढ़े, कॉलेज में दाखिल हुए और धीरे धीरे सब बदलने लगा, तब मुझे एहसास हुआ की स्कूल एक ऐसी जगह थी जहाँ हम असली दुनिया से दूर थे | मैं अपनी दोस्तों से बहुत दोर्र हूँ परन्तु फिर भी हम दो दिन में एक बार बात तो कर ही लेतें हैं | स्कूल के दोस्त ऐसे होते हैं की अगर हम एक साल के बाद भी मिले तो भी सब कुछ वैसे ही रहता है जैसा हम उसे छोड़कर गए थे | विचित्र तरह की दोस्ती है यह | और क्या है, जब हम सब फिर मिलते हैं तो स्कूल के बातें जैसे ख़त्म ही नहीं होती | कभी कभी तो ऐसा लगता है के अगर मुझे मौका मिलता तो में फिर से स्कूल के दिनों में वापस चली जाती |

आई डोंट नो

अगर आप मेरे पिछले ब्लॉग से परेशान नही हुए तो यह लीजिये , एक और नई ताज़ी पकाऊ ब्लॉग तैयार है | पिछले ब्लॉग में परीक्षा का ज़िक्र करते हुए याद आया वह समय ज़िन्दगी का जब मैं बेहद असमंजस की स्तिथि में थी | मनिपाल के आखिरी सेमिस्टर की बात थी जब उनीवेरसितीस से जवाब आने शुरू हो गए थे | याद है मुझे वह दिन जब मिचिगन से एडमिट की ख़बर आई थी , खुशी तो बहुत हुई थी परन्तु चंद घंटो के लिए ही , उसके बाद सब कुछ धुन्दला लगने लगा | दोस्त बधाई देते थे , पूछते थे मुझे कैसा लग रहा है और अन्दर ही अन्दर मेरे " आई डोंट नो " गूंजता था | मुझे पता ही नही था आख़िर मैं चाहती क्या हूँ ज़िन्दगी से | बस हर दिन को वन - डे की तरह खेलती जा रही हूँ , कभी डक आउट तो कभी एक आद रन बन जाते हैं | कोई उत्साह नही , कोई उल्लास नही | सच कहूं तो हालत अभी भी वैसी ही है | वैसे बिना डेस्टिनेशन के ज्ञान से कभी कोई ट्रेन या बस नही पकड़ी , तो फिर बिना मंजिल के इस सफर में कैसे चल पड़ी , मैं नही जानती | जानती हूँ तो बस इतनकी कुछ करना है , जिससे कि दस साल बाद किस भी सवाल का जवाब " आई डोंट नो " ना हो | वैसे आपको कोई और काम नही है करने को जो आप इतनी फुर्सत से यह ब्लॉग पढ़ रहे हैं ? " यू टू डोंट नो , राइट ?" इश !

ओह नो !

ओह नो ! परीक्षाएँ मनुष्य की मानसिक स्थिति को बिगाड़ देते हैं | वे डराते हैं , मुह पर मुक्का मारते हैं और पेट में लात | मेज़ पर रखी मोटी मोटी किताबो और हाथ में बचे वक्त का कोई तोल नही | परीक्षाएँ तुम्हे धरती पर वापस ले आती हैं और सचाई से सामना कराती हैं | हाँ भाई , जब रॉकेट की रफ़्तार से क्लासेस बंक करोगे और जितने गिने चुनो में जाओ उसमे भी आख़िर बेंच में बैठ सपने देखोगे तो यही हाल होता है | हाँ आपने सही पहचाना , मेरा अभी यही हाल है , दो दिनों में इम्तिहान है और मैंने किताबों का चेहरा भी नही देखा | वैसे सोचे तो , बचपन कितना अच्छा था ना , हम अपना काम कितना वक्त पर करते थे | हर दिन अपनी प्यारी सी पेंसिल लेकर अपने आप होम वर्क शुरू कर देते थे और अगर कुछ नही आए तो झट से कविता या सुनीता को फ़ोन लगाकर " अरे , तुने वोह किया ? कैसे किया ? बतादे ना " कहते थे | फिर हमें बड़े होते होते क्या हो जाता है ? आलस क्यूँ हमारे अन्दर पनाह ले लेता है और पेरासाईट की तरह बढ़ने लगता है ? और हम उसे निकालने की कोई कोशिश भी तो नही करते | खैर छोडिये , अब मुझे जाके सच्चाई का सामना करना होगा , किताबें खोलनी होंगी | अपनी ज़िन्दगी की दुःख भरी गाथा बाद में सुनाती रहूंगी |

जवानी

कल रात जब "ग्रामि अवोर्दस" का दूरदर्शन प्रसारण चल रहा था, मेरा स्मरण उठ गया और जब तक में जागी थी तब तक मेरा चित्त विगत दिनों के याद में रुक गया था। जवानी में मुझे लगता था कि काल धीरे-धिरे चल रहा है ख़ास तौर से गरमी के छुट्टियों में जिस्मे हर दिन पक्षी की बोलीयाँ दो-तीन घंटे के लिये सुन सकते थे। उस समय में, हम जिवन की छोटे सुख अछी तरह से अनुभव कर सकते थे क्योंकि सब कुछ करने के लिये समय था। अगर में दूरदर्शन देखना चाहती थी या मुझे दिवा-स्वप्न में खो जाने की इछा थी तो दिन में मुझे समय मिल जाता था। सुबह को में और मेरे भाई नौ या दस बजें उठ जाते थे। जब में जवान थी गरमी में मुझे बाइसिकल चलाना बहुत शौक था इस लिये हर सवेरा, जाग-कर, में तीन-चार मिल के लिये बाइसिकल चलाती रहती थी। दोपहर को में कुछ भी मनपसंद कर्म करती थी जैसे किताब पड़ना या दोस्तों से मिलना।

दुख की बात है कि आजकल हमारे मन में सिर्फ एक ही विचार है - यह करना है, उस्से मिलना है वगरह। लेकिन हम सब जानते है कि दिन में सब कुछ करने के लिये समय नहीं होता है। कारण जो भी हो मुझे यकीन है कि हम को पक्षी सुनने के लिये कुछ समय रखना चाहिये। हमरी पागल सी ज़िंदगी को रोखना हमारे हथों में है।

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

मुंबई भारत का सबसे बड़ा शहर हैं .यह भारत की वित्तीय राजधानी है. इसका आबादी तेरह मिलियन हैं जिसके साथ यह, विश्व की दूसरी सर्वाधिक आबादी वाली नगरी है। मुंबई पहले बॉम्बे नाम से जाना जाता था. १९९६ मैं इसका नाम बॉम्बे से मुंबई बनाया गया था. मुंबई दो शब्दों से बनाया हुआ हैं. मुम्बा और आई. मुम्बा का मतलब मुंबा या महा-अंबा हिन्दू देवी दुर्गा, जिनका नाम मुंबा देवी है और आई जो मराठी मैं माँ को कहाँ जाता हैं. यहाँ पर आपको सबी जात-धर्म के लोग मिलेंगे. यहाँ सभी धर्म के लोग भाई चारा मैं रहते हैं. मुंबई का गेटवे ऑफ़ इंडिया बहुत जाना जाता हैं. यहाँ का सिद्धिविनायक मन्दिर और महालक्ष्मी मन्दिर भी बहुत जाना जाता हैं. यहाँ पर आपको बहुत सारे मॉल मिलेंगे. यहाँ पर आपको बड़े बड़े इमारतें देखने मिलेंगे. अगर आप भाग्यशाली रहे, थो आप बॉलीवुड के जाने माने हस्तियाँ देख सकते हो. जुलाई से सितम्बर मैं यहाँ पर बहुत बारिश होता हैं. कभी कभी बाढ़ बी होता हैं.

गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

माँ

कल मेरी माँ का जन्मदिन था.वह दोहा, कतर में मेरे पिता के साथ रहती हैं. मिशिगन और वहाँ के समय में आठ घंटो का अन्तर है. इस समय के अन्तर के कारन बारह बजे के बदला मैंने उन्हें शाम के चार बजे फ़ोन लगाया. उनकी आवाज़ सुन के मेरे ख़याल में बहुत सारे बीते हुआ पल याद आए. मैं जब भी घर होती हूँ तोह हम बड़ी धूम-धाम से माँ का जन्मदिन मनाते थे. घर में तो अभी भी उनका जन्मदिन मनता है, पर मेरे बिना कुछ मज़ा नही आता होगा. घर से इतनी दूर रहकर घर की बहुत याद आती है. आज भी जब घर के बारे में सोचती हूँ तो मेरे दोहा छोड़ने के दिन के हवाई अड्डे का दृश्य याद आता है.मुझे अपने माँ की आंसू से भरी आँखें याद आती हैं और मेरा गिल उन्हें देखने को तड़प जाता है. मेरी माँ मेरी सबसे अच्छी सहेली है. हम आज भी फ़ोन पर घंटों बातें करते है. उनके हाथ का बना खाना खाने के लिए तोह मेरा जी ललचा जाता है. मैं इस अगस्त उन्हें एक साल बाद देखूंगी. अब तो मुझे बस उस दिन का इंतज़ार है जब मुझे हवाई अड्डे पर उनका हस्ता हुआ चेहरा नज़र आएगा.

संगीत

जब मैं पॉँच साल का था, मेरे माता पिता ने मुझे कार्नाटिक संगीत की कक्षा शुरू करने का आदेश दिया. मैं सिर्फ़ पाँच साल का था और घर छोड़कर किसी अनजान के घर जाकर गाना नहीं चाहता था. परन्तु उनकी विवशता पर मेरा और कोई राह नहीं था. पहले दिन जाने पर मैंने देखा की मेरी उम्र के लड़के और लड़कियां थी.

मेरे अध्यापिका का नाम इंद्रा कृष्णन था. थोड़े हफ्तों के बाद में ही मुझे संगीत पसंद आने लगा और गाने की इच्छा बड़ने लगी. मुझे पता चला की हिन्दुस्तानी और कार्नाटिक संगीत सीखने पर गाने की नींव बढ़ जाती है और गाते गाते मैं उन्नति करने लगा.

आज पन्द्रह साल के बाद, मैं अपने विश्वविद्यालय में भी गाता हूँ. हमारा एक संगीत का झुंड है जिसको हम मेज मिर्ची बुलाते हैं. दो साल पहले अप्रैल में हम गाने लगे और शीग्र ही लोग हमारे बारे में सुनने लगे. हम हिन्दुस्तानी गाने गाते हैं और अमरीकी गाने भी. कर्नाटिक संगीत सीखने से गाना आसानी से आती है और में खुश हूँ की मैंने अपने माता पिता की बात सुनली, और पन्द्रह साल पहले श्रीमती इंद्रा जी से गाना सीख ली.

बुधवार, 4 फ़रवरी 2009

अमृतसर

मेरा जन्म पंजाब के शहर अमृतसर में हुआ था l अमृतसर पंजाब का महत्वपूर्ण शहर है l अमृतसर की ज्यादी तर जनता सिख है और दरबार साहिब या "गोल्डन टेम्पल" जो अमृतसर में स्तिथ है वह सिखों का सबसे धर्मत्मिक स्थान है ल मैं बचपन से हर साल अमृतसर जाता हु और मेरी उधर की सबसे मनपसंद चीज़ है उधर का खाना l अमृतसर का खाना बहुत मशुर है l अमृतसरी कुलचे, अमृतसरी मची और वहां की लस्सी का कोई मुकाबला ही नही है l अमृतसर एक बहुत इतिहासिक जगह है l १९१९ में जल्लिअवाला बाघ का हादसा अमृतसर में ही हुआ था l अमृतसर का मुख्य उद्योग है पर्यटन , कपड़ा और मेरे हिसाब से खाना l मुझे याद है जब मैं छोटा था और अपने चाचा से पुछा की अमृतसर में लोग क्या करते है तोह उन्होंने जवाब दिया की " आधे लोग खाना बनाते है और बाकी आधे खाना खाते है l "

सोमवार, 2 फ़रवरी 2009

मेरी पाठशाला

मैं दसवी कक्षा तक बॉम्बे स्कॉटिश स्कूल नमक एक विद्यालय में पढता था | मेरी पाठशाला मुंबई के महिम इलाके में थी | मेरे स्कूल के सामने एक समुद्रतट था | स्कूल के चरों तरफ़ खजूर के लंबे लंबे पेड़ थे | ५ सालों से में अपने स्कूल वापस नहीं गया हूँ | परंतु मुझे अपने शूल से बहुत प्यार हैं | मुझे मेरे स्कूल के दिनों की बहुत याद आती है | स्कूल के मैदान पर खेलना, अध्यापकों से डाट खाना और ऐसी बहुत सी छूटीं छूटीं चीजों के बारे में सोच कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ जाती है | स्कूल के दोरान मेरे बहुत अच्छे दोस्त बने थे| आज तक मैं उन दूस्तों के बहुत करीब हूँ | जब भी हम मिलतें हैं हम सब को बहुत मज़ा आता है | स्कूल के दोरान मैंने बहुत कुछ सीखा जैसे की आपने बड़ों का आदर करना, परिश्रम का हर किसी को फल मिलता है और ऐसी बहुत सी चीजें | मैं अपने स्कूल का आभारी हूँ | आज मैं जो भी काफी हद तक अपने स्कूल की बदोलत हूँ | मेरी एक आशा है की मैं आपने स्कूल के लिए कुछ कर के अपना शुक्रिया अदा कर पाऊँ |

रविवार, 1 फ़रवरी 2009

मेरा सबसे प्रिय अभिनेता

मेरा सबसे प्रिया अभिनेता शाह रुख खान है | उन्हें बॉलीवुड का बादशाह माना जाता है और यह मानना शायद बिल्कुल ठीक ही है | जब से मैं पाँच साल की थी और मैंने उनकी फ़िल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे' देखा, तब से वे मेरे सबसे प्रिय अभिनेता रहे हैं | मुझे उनका काम सबसे जाया पसंद आया 'स्वदेस' और 'कभी अलविदा ना कहना' नामक फिल्मो में | बहुत लोग ऐसे हैं जो आसमान की ऊंचाइयों को छूने के बाद अपना अतीत भूल जाते हैं और अहंकारी हो जाते हैं, परन्तु बादशाह खान उन लोगों में से नहीं है | उनका कहना है की आज भी जब वे फ़िल्म शूट करते हैं तो इस तरह करते हैं जैसे यह उनकी पहली ही फ़िल्म है और उनका मानना है की लोग उन्हें इसी कारण प्यार करते हैं | वे अपनी जनता को अपना सब कुछ मानते हैं और यह कहते हैं की आज वे सफलता की जिस चोटी पर पहुँचे हैं वह केवल जनता के कारण है | उनका जन्म २ नवम्बर को १९६१ को हुआ था | उनकी पत्नी का नाम गौरी खान है | उन्होंने करीब ५० फिल्मों में काम किया है | उनकी हर फ़िल्म बहुत कामयाबी हासिल करती है | उनकी जोड़ी मुझे काजोल और रानी मुखर्जी के साथ बहुत अच्छी लगती है |