मंगलवार, 27 जनवरी 2009

सचिन तेंदुलकर

सचिन तेंदुलकर का जनम अप्रैल २४, १९७३ को हुआ था | बड़ी कम उम्र से ही सचिन ने क्रिकेट खेलना शुरू किया था | बहुत जल्द लोगों को पता चल गया की सचिन के पास क्रिकेट खेलने के लिए भगवन से तोफा मिला था | क्रिकेट पर अपना पूरा ध्यान अर्पण करने के लिए सचिन ने कम उम्र में ही सचिन ने अपना स्कूल बदली कर दिया | सचिन शारदाश्रम नाम के स्कूल में भरती हो गया | यह स्कूल अपने विध्यार्थियूं को खेल खेलने के लिए उत्साहित करता था | सचिन का ख़ास मित्र विनोद काम्बली भी यह स्कूल ही जाता था | इन दोनों ने मिल कर स्कूल में क्रिकेट के काफी रिकॉर्ड तोडे थे | स्कूल के दोरान सचिन हर सुबह छे बजे क्रिकेट का अभ्यास अपने कोच रमाकांत अचरेकर से लेने शिवाजी पार्क जाता था | सचिन जब पहली बार इंडिया के लिए खेला वह सिर्फ़ १६ साल का था | उनका पहला मैच पाकिस्तान के खिलाफ कराची में था | उनको अपने पहले मैच में खेलते हुए देखकर ही लोग जन गए थे की सचिन क्रिकेट की दुनिया का एक सितारा बन ने वाला है | आज इंडिया में सचिन के जोड़ का कोई खिलाड़ी नहीं | लोग उसे भगवन के समान मानते है और क्रिकेट को एक धर्म समान |

मुंबई आतंकी हमले

26 नवंबर 2008 की रात मुंबई पे सबसे भयानक आतंकी हमले हुए। दस आतंकी ‘गेटवे ऑफ़ इंडिया पे समंदर द्वारा पहुचे। दहशत फ़ैलाने के लीये एक नाव का अपहरण करके वे लोग उधर पहुँचें । अजमल अमीर कसाब जो लश्कर-ए-तोइबा के लिये काम करता है जिंदा पकडा गया और तब से उसपर सख्त कारवाई की जा रही है। लश्कर-ए-तोइबा एक पाकिस्तानी कश्मीर का हिस्सा माना जाता है। इसको पकडते वक्त महराष्ट्र पुलिस के तुकाराम ओमब्ले को अपनी जान गवानी पडी। भारत का आर्थिक मुख्य शहर मुंबई के कई स्थलों पर इन गुंडों ने दहशत फ़ैलाया और ज्यादातर पश्चिम देशों के नागरिकों पर हमला किया। ताज महल होटल जो मुंबई की तो शान हैं को भी इन आतंकियों ने नहीं छोडा और उधर 197 लोग मर गये और 308 लोग घायल हुए। 36 घंटों से ज्यादा समय तक शहर मानो थम सा गया था और अगर एन-एस-जी के वीर जवानों ने अपनी जान दावे पर लगा के देश की सुरक्षा के लिये लढाई नहीं की होती तो और भी कयी लोग अपनी जान गवा बैठते। इस से यहीं साफ़ होता हैं की भारत अपनी सुरक्षा अभी तक नहीं कर सकता है और समय आ गया है कि आम नागरिक जाग उठे और सब से पहले अपने नेताओं को सबक सिखायें। जागो भारत जागो।

"बारिश में टेहेलना"

मुझे अकेले टेहेलने का बहुत शौक है | टेहेलते वक्त मुझे कुछ अलग और अच्छा महसूस होता है | ऐसा लगता ही जैसे कितने दिनों बाद खुल के साँस लेने का मौका मिला हो | मुझे सबसे ज्यादा मज़ा बारिश में टेहेलने से आता है | बारिश की बात ही अलग है | जब भी मैं तेज़ बारिश में ( छाते के साथ हाँ !) चलती हूँ , मुझे एक तरफ़ सृष्टि के इस ऐश्वर्य का तेज दिखाई देता है और दूसरी तरफ़ इस जगत की शक्ति के सामने अपना छोटापन | बारिश में जाने ऐसा क्या है जिससे वह सब कुछ निर्मल कर देती है , चारों और शीतलता ले आती है , हवा में एक तरह का हल्कापन महसूस होने लगता है | वैसे देखा जाए तो बारिश दो तरह के होते हैं - एक जो चारो ओर तबाही मचाता है ओर दूसरा जो मन को खुश ओर आत्मा को हल्का कर देता है | मैं उस दूसरे तरह के बारिश की बात कर रही हूँ जिसमे चलते वक्त चाल में स्फूर्ति आ जाती है , चारो ओर हवा में महक ओर मिटटी की खुश्बू समां जाती है , ओर जब यह हवा बदन को छूती है तो लगता है प्रकृति ने गले लगा के अपने लपेट में ले लिया हो | ऐसे वक्त में लगता है सारी उलझने दूर हो गई हों, महसूस होता है सारी परेशानिया झेल लेंगे , कल जो भी हों, सामना कर लेंगे | आज बस मौसम के इस ग़ज़ल में डूब जाओ , कल जो भी हों | इस अनुभूति को आप भी ज़रूर महसूस कीजियेगा | ( !! बारिश में भीगना सेहत के लिए हानिकारक है !! )

विश्वविद्यालय

दो साल पहले, पाठशाला ख़त्म करने के बाद मैं विश्वविद्यालय की तैयारियां करने लगा. विदेशी विद्यार्थी होते हुए मैं अनेक विश्वविद्यालयों को देख न सका. मिशिगन की स्थान मेरे क्षेत्र के लिए सबसे ऊंची थी और इस कारण मैंने मिशिगन आने का फ़ैसला किया. परन्तु मिशिगन आने पर मुझे बहुत गृहातुर महसूस हुई. मैं दुबई का रहना वाला हूँ और मिशिगन की सर्दी अच्छी नहीं लगी. माता पिता के बारे में सोचता रहा. पढ़ाई छोड़कर वापस घर जाने की इच्छा थी.

दुबई में, मैं एक भारतीय पाठशाला में पढ़ता था. मेरे सारे दोस्त भारतीय थे और अम्रीका आने के बाद मेरे सारे पड़ोसी अमरीकी थे. पहले दो हफ्तों के लिए मुझे बहुत अजीब लगा की आस पास कोई भी भारतीय नहीं थे. यह सोचते हुए मुझे डर लगा की शायद कालेज में मेरे कोई भारतीय दोस्त नहीं होंगे.

परन्तु शीग्र मेरे बहुत दोस्त बने. मिशिगन में आज मेरे सबसे अच्छे दोस्त अमरीकी हैं. उन्होंने मेरा संक्रमण बहुत आसान बना दिया. आजकल घर की याद इतनी नहीं आती है और मिशिगन में मुझे जीवन भर के मित्र बने हैं.

सोमवार, 26 जनवरी 2009

गोवा

भारत में घूमने फिरने की हजारों जगहें हैं पर मेरा सबसे पसंदीदा स्थान गोवा है. मैं वहाँ अपने दोस्तों के साथ दो बार घूमने गयी हूँ. दोनों बार मुझे बहुत ज्यादा मज़ा आया. यूं तो दोस्तों के साथ कहीं भी जाने का अनुभव ही कुछ ख़ास होता है और जगह जब गोवा जैसी हो तो मज़ा कुछ और बढ़ जाता है.शायद गोवा की हवाओं में ही कुछ ऐसा जादू है कि वहाँ पहुँचते ही सारी परेशानियाँ गायब हो जाती हैं. पल में मन को शान्ति सी लगती है और मस्ती का सोच कर उसमें हलचल भी होने लगती है. वहाँ बहुत कुछ करने को है. आप शान्ति से छुट्टी बिताना चाहें या फिर मौज मस्ती करना चाहते हैं,बीचों पर जा कर खेलना चाहतें हैं या नाईट क्लब में मज़ा करना चाहते हैं.किसी भी बात में गोवा का मुकाबला नहीं है.यहाँ आपको सब कुछ प्राप्त होगा, गोवा में हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध हैं. गोवा में छुट्टी का मज्जा करने के लिए बहुत पैसे भी नही लगते. हम आसानी से २००० रुपयों में अच्छी छुट्टी गुजार सकते हैं. गोवा की शान को शब्दों में व्यक्त करना कठिन है, इसलिए मेरा विचार है की जीवन में एक बार भी गोवा की सैर ज़रूर करनी चाहिए.

खुद के बारे में!!

नमस्ते! मेरा नाम आनंद नवनीता हैं. मेरा जन्म १३ जुलाई १९८८ मुंबई मैं नानावटी अस्पताल मैं हुआ था.जब थक मेरा उम्र २ साल था तब तक मैं अँधेरी इलाके मैं रहता था. फ़िर मेरे माता-पिता ने मुंबई मैं ही माटुंगा इलाके में घर लिए और तब से हम माटुंगा में रहते हैं. मैंने अपनी दसवी तक की पडी स.इ.ऐ.स विद्यालय मैं किया था. फ़िर ग्यारवी और बारवी रिया महाविद्यालय मैं किया था. फ़िर अपने इंजीनियरी के पहले दो साल मानिपल विश्वविद्यालय मैं किया था. फ़िर अभी अपने तीसरा वर्ष मिशिगन विश्वविद्यालय मैं कर रहा हूँ. मुझे टेनिस खेलना बहुत पसंद हैं. जब बी वक़्त मिलता हैं ताब मैं खेलता हूँ. गाने सुनना बी मुझे बहुत पसंद हैं. मैं हमेशा यात्रा के शौकीन रहा हूँ! मुझे पुस्तक पड़ना पसंद नही हैं! मैं बहुत सारे फिल्मे देखता हूँ. हर रोज कम से कम एक देखता हूँ! मैं पुरा दिन फेसबुक मैं ऑनलाइन रहता हूँ. अमेरिका मैं मुझे कैलिफोर्निया सबसे ज्यादा पसंद हैं.मैं हिन्दी टीक से पड़, लिख और बोल सकता हूँ! मुझे हिंदी, मराठी, फ्रांसीसी अंग्रेजी और तमिल पता हैं. और आशा हैं कि मैं और बी भाषाओं सीखूंगा!

शहीद भगत सिंह

भारत की आज़ादी में लाखों लोग शहीद हुए लेकिन एक क्रन्तिकारी जिसने अपने देश के लिए हस्ते हस्ते अपनी जान न्योछावर करदी उसका नाम था भगत सिंह l भगत सिंह का जन्म २७ सितम्बर १९०७ को पंजाब में हुआ l बचपन से ही भगत सिंह एक देश भक्त आदमी थे l बचपन में वोह गाँधी जी के नॉन कोऑपरेशन मोवेमेंट में पूरा भाग लेते थे लेकिन चौरी चौरा के हात्से के बाद जब गाँधी जी ने नॉन कोऑपरेशन मोवेमेंट रोक दी तोह भगत सिंह ने निर्णय लिया नौजवान भारत सभा में शामिल होने का l भगत सिंह और उनके साथियों ने चाहे हिंसा से आज़ादी प् रहे थे लेकिन वोह एकदम सही था l जो भगत सिंह ने अपने २३ साल के जीवन में कर दिया था वोह कोई और ना कर सका l मुझे अगर किसी बात का अफ़सोस है तोह वोह यह की अगर गाँधी जी ने गाँधी-इर्विन गठबंधन पर अपनी मंजूरी ना दी होती तोह भगत सिंह शायद भारत को २० साल जल्दी ही आजादी दिला देते l २३ मार्च १९३१ को भगत सिंह और उनके साथी सुखदेव और राजगुरु शहीद होगये हस्ते हस्ते अपने देश के लिए l

दोस्ती

मेरा यह मानना है की दोस्त भगवन का रूप होता है | जब हमें ईश्वर की ज़रूरत होती है तो वे हमें दोस्त के रूप में मदद करते हैं | आजकल की दुनिया में सच्चा मित्र ढूँढना बहुत मुश्किल होता जा रहा है | इसका कारण यह है कि आजकल लोग केवल अपना उल्लू सीधा करना जानते हैं | सच्चा दोस्त वह होता है जो हमें अपनी बुराइयाँ बताता है एवं हमारा साथ कभी नहीं छोड़ता | कठिनाई के वक्त वह हमारा हौसला बढ़ाता है, फिर चाहे वह हमारे सुख की घड़ियों में हमारे साथ न हो | बिना सच्चे दोस्त के, ज़िन्दगी का यह सफर असंभव सा हो जाता है | मेरे दोस्त मेरी ज़िन्दगी में मेरे लिए बहुत एहमियत रखते हैं | उनके बिना मेरा मन नहीं लगता और उनके बिना जीवन व्यतीत करना मेरे लिए सम्भव नहीं है | मेरे सबसे अच्छे दोस्त मेरे कॉलेज में नहीं पढ़ते | इस लिए मैं उनसे फ़ोन पे या फिर इन्टरनेट द्वारा बात करती हूँ | उनसे एक दिन भी अगर न बात हो तो मेरा दिन पूरा नहीं होता | मुझे उनकी बहुत याद आती है परन्तु यह दूरी शायद हमारे दोस्ती की परीक्षा है | अगर हम अलग देशों में रहकर भी अपनी दोस्ती पर आँच न आने दे तो फिर हम यह कह सकते हैं की हमारी दोस्ती शायद कभी न टूटेगी और हम जीवन भर अच्छे दोस्त बने रहेंगे |

गणतंत्र दिवस

भारत के इतिहास में २६ जनवरी १९५० एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है. इस दिन, भारत ने संविधान को अपनाया. यह संविधान उद्रेख समिति ने पूरे देश के लिए कानून लिखे जिनके अध्यक्ष श्री आंबेडकर जी थे. संविधान को अपनाने के बाद, राजेंद्र प्रसाद जी हमारे देश के पहले राष्ट्रपति बनाये गए. इसीलिए हर साल भारतीयों इस दिन को स्वतंत्र दिवस के समान मानते है.
हर साल हमारे देश के राष्ट्रपति जो कि भारतीय सेना के प्रमुख कमांडर है वे नौसेना से लेकर वायु सेना के परेड के सलामी लेते है. यह परेड दिल्ली में राष्ट्रपति भवन से लेकर लाल किल्ला तक होता है जहा राष्ट्रपति पूरे देश को भाषण देते है, उनके धैर्य को जागने के लिए, उन लोगो को याद करने के लिए जिन्होंने हमारे देश कि स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन सौंप लिया.
देश के पाठशालाओ में भी स्वतंत्र दिवस के दिन पर झंडावंदन होता है. भाषण होते है और अतिथि वक्ता को आमंत्रित किया जाता है.
इस साल दुर्भाग्य से हमारे राष्ट्रपति उनके कर्तव्य कर न पाए क्यूंकि उनको दिल के सर्जरी गुजरना पड़ा. लेकिन हम उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्राथना करते है ताकि वे जल्द से जल्द अपना कम शुरू कर सके और हमारे महँ देश को और आगे बढाये.

Mitti ka shampoo

शनिवार, 24 जनवरी 2009

पेटूमल-राजकुमारी

एक राजभवन में एक जवान और ख़ूबसूरत इक्कीस उमर की राजकुमारी रहती है. हर रात राजकुमारी का पलंग में दोनों बाजू एक प्राणी और एक चीज थे। किंतु कौन और क्या थे वे? देखीये तो, आपका मन में यह चित्र बनाइए - पलंग के मध्य में राजकुमारी। उसका नाम है कैंडी जिसका अर्थ है औरत जिसका शौक है कैंडी खाना। जब वह दो साल की उमर थी, उसके पिताजी ने उसका नाम बदल दिया और वजह यह है कि चोटी राजकुमारी ने कैंडी खाने का आदत शुरू किया। और सुनो - आज तक इस आदत चल रहा है। जन्म का वक्त, गुरूजी ने कहा कि अगर शिशु का नाम 'कई' ध्वनी से शुरू होगी तो हर रात वह एकाएक उठेंगी और इसकी एक चीज की जरुरत पड़ेंगी. कैंडी के पिताजी ने गुरूजी को पागल समझकर उसकी प्यारी बेटी का नाम कैंडी ही रखा - मगर दो साल के बाद। गुरूजी ने कुच्छ और भी कहा। कैंडियाँ ऐन मौके पर उसको खिलाना पडेगा.

जब वह दस साल की उमर पाहुची, राजा ने उसको एक बड़ा उपहार दिया - चार पैर का ऊंच्चा डिब्बा और क्या थे डिब्बे में? कैंदियाँ! कैंडी ने उपहार खोला और संतोष से वह बेहोश हो गयी. मैं कैंडी की सबसे अच्छी दासी
हूँ और उस आपातकाल में, फट से सवाल सोचकर, मैं नाहर से ठंडी पानी ले आयी। उसके बाद मैंने राजकुमारी की चहरे की तरफ पानी फेंका. जो कुच्छ मैंने किया इस राजभवन में, मैं कैंडी की बला से करती थी ओर आज भी. कैंडी अपनी जिम्मेदारी समझकर, मैंने विधाता के हथों में कैंडी की देखबाल छोडी।

राजा को शांत करने के बाद, कुच्छ और बखेडा हुआ। मैनें राजकुमारी की तरफ देखी और डर गयी। रह-रहकर वह पेटूमल बंगयी। उसका पेट कितना बड़ा होगया जैसे किसी ने उसका पेट पर लात मारा और नही उसके पास पेट भरने का समान। उस पल में, वह गरीब और भूकी बच्ची जैसी लगती थी। राजा का चेहरा उतर गया और उन्होंने उसकी बेटी कि परवाह किया। परन्तु राजा और मैं भी बेवकूफ बन गए.... सुनो कैसे।

थोड़े वक्त के बाद, मंजील पर मैनें कैंडी का उपहार देखा, खोला और कैंडी को दो-तीन कैंडीयाँ खिलाया। वह बेहोशी से लौटी और रात में उसकी पेट भी कम होगायी। लेकिन आज तक हर रत, जैसे गुरुजी ने कहा कैंडी की जन्म पत्री देखकर, कैंडी सहसा उठ जाती है बड़ा पेट के कारण। वैसे मैं उसकी दासी हुँ इसलिए मुझे उसके कमरे में सोने पड़ती हुँ उसको कैंडी खिलाने के लिए।

तो फिर अंत में, राजकुमारी पलंगे के मध्य, मैं बाये बाजू, और कैंदीयाँ दायें बाजू। कल रात राजकुमारी का पेट फट गया जैसे बलून फट जाते है। ओहो मैंने कहा। पेट की बिमारी की आड़ में कैंडी हर रात को कैंडी खाती है उसने अपना उल्लू सीधा किया और मैं शर्म से गड़ गयी। आज राजा ने दूसरा बार राजकुमारी का नाम बदल दिया - पेटुमल राजकुमारी!


शुक्रवार, 23 जनवरी 2009

मिचिगन की सर्दी

मैं मिचिगन में तीन साल से पढ़ रहा हु और इस बार की सर्दी सबसे ज़्यादा कठोर है l इस साल बहुत ज़्यादा जल्दी ठण्ड हुई और लगता है की काफ़ी लंबे समय तक ठण्ड रहेगी l मैं दिल्ली का नागरिक हु और इतनी सर्दी की आदत मुझे नही है l मुझे लगा था की दो बार इधर की सर्दी में रह कर मुझे आदत पढ़ जायेगी लेकिन ऐसा नही हुआ l इस बार बहुत जल्दी ही तापमान -३० celsius पहुँच गया l एक ही दिन में करीबन ३ फ़ुट बर्फ गिरी l इस बार मौसम इतना ख़राब हुआ की आस पास के इलाकों में २ दिन बिजली भी नही थी एक बहुत तेज बर्फ के तूफ़ान की वजह से l मुझे इंतज़ार है जब मेरी यहाँ पर पढ़ाई समाप्त होगी और मन वापिस दिल्ली जा सकता हु जहाँ पर तापमान हमेशा शून्य के पर रहता है l

हजारों ख्वाहिशें ऐसी...

"हजारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले,

बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले."


प्रस्तुत पंक्तियाँ मिर्जा गालिब की ग़ज़ल से ली गयीं हैं. इन पंक्तियों में मिर्जा गालिब ने बड़ी ही सुन्दरता से मनुष्य के असंतोषी स्वभाव का वर्णन किया है.

मानव हिर्दय बड़ा ही लोभी और असंतोषी होंता है. उसके दिल में इक्छायें अकान्शाएं और अभिलाषाएं निरंतर जनम लेती रहती हैं,और उनका कहीं अंत नहीं होता है. मनुष्य जब किसी वस्तू, धन या मान मर्यादा को पाने की कामना करता है तो उसको पाने के बाद भी उसे संतोष नहीं होता है. फिर मनुष्य उससे ज़्यादा और बेहतर की कामना करने लगता है. उद्हारण के लिए, किसी मनुष्य के पास अगर घर नहीं है तो वह अपनी सर पर एक छत की कामना करता है. जब वह मिल जाता है तब फिर वह उससे बड़े घर, गाड़ी, बंगला नौकर चाकर सबकी कामना करने लगता है. इस तरह उसके अरमान जितने भी पूरे हों उसे कम ही लगते हों कहीं न कहीं मनुष्य की यही प्रकृति उसे सफलता की तरफ़ बढाती है.

इस प्रकार गालिब की ये पंक्तियाँ हमें यह सीख देती हैं कि हम ज़िन्दगी में ख्वाहिशें ज़रूर रखें लेकिन उनकी प्राप्ति के बाद उन पर संतुष्टठ होना सीख लें.

गुरुवार, 22 जनवरी 2009

"क्या सही और क्या ग़लत?"

क्या आप जानते हैं सही और ग़लत में अन्तर? क्या कभी आपका सही दूसरों को ग़लत और दूसरों का सही आपको ग़लत लगा है? अगर आपका जवाब 'हाँ' नही है तो वह बेशक एक सफ़ेद झूठ होगा | हम अपनी ज़िन्दगी का कितना समय दूसरों के सही-ग़लत को पकड़ने में लगा देते हैं | परन्तु सोचने वाली बात यह है की यह सही-ग़लत का ज्ञान हमें वैसे तो बचपन में अपने माता पिता या किसी धार्मिक किताब या फिर किसी कानूनी नियम के द्बारा शुरुआत में मिली थी परन्तु वक्त के साथ साथ हमारी ख़ुद की भी अलग सोच बनने लगी, वही सोच बदलने लगी और हालात भी बदलते गए , ऐसे में सही ग़लत का फ़ैसला किस तराजू में तोलकर किया जाए? इन सवालों के जवाब बेशक न आपके पास हैं और न ही मेरे पास | इस बात को यह कहके दफनाना सही होगा की हम इस दुनिया में दूसरों पर टिप्पणी करने नही आए हैं | सुनने में यह बात काफ़ी सरल और साफ़ सुनाई देती है परन्तु आप और मैं यह अच्छी तरह जानते हैं की ये सही ग़लत का दलदल कितना गेहरा और भयंकर है , अब क्या आप उसमे पड़ना चाहेंगे? नही ना ?

फेसबुक!!!

आज की पीढ़ी के नवीनतम लत फेसबुक है. आज हर स्कूल के बच्चे के पास एक फेसबुक का अकाउंट होता ही हैं . मुझे खुद फेसबुक बहुत ज्यादा पसंद है. इतना ज्यादा कि मैं आसानी से दिन मैं दो से तीन घंटा बैठ जाता हूँ. इतना ज्यादा पसंद हैं कि कक्षा में भी अपने लैपटॉप के सात बैठ जाता हूँ!!अमेरिका में आप भाषण के दौरान अपने लैपटॉप का उपयोग कर सकते हो! इसमे आप दूसरों के बारें में जान सकते हो! पच्क्मान ,पोकर वगैरा खेल सकते हो! जब कुछ काम नही होता है थो फ़िर नए लोगों के साथ बात कर सकते हो! अपने नए चित्र लगा सकते हो ! जब कोइ यात्रा के लिए जाता हूँ. तो पहले आकर मैं अपनी एलबम अद्यतन करता हूँ. यहाँ पर आप चत्तिंग भी कर सकते हो! अपने पुराने दोस्तों के सात बात करने का सबसे आसन तरीका हैं ऐसा मुझे लगता हैं.चलो अब थोड़े देर के लिए मैं फसबूक करने वाला हूँ! अगले हफ्ते तक अलविदा!!!

अपने बारे मैं

मेरा नाम आदित्य छाबरिया है. मई यहाँ मिशिगन मे मेकनिकल इंजीनियरिंग कर रहा हूँ. यह मेरा मिशिगन में दूसरा सेमेस्टर है. इंजीनियरिंग के पहले दो साल मैंने दक्षिण भारत मे मनिपाल नामक एक जगह में किया था. मैंने अपना पूरा जीवन बेंगलोर में गुजारा है. मेरे पिताजी बेंगलोर में पैदा हुए थे और माताजी मुम्बई में. मेरी एक छोटी बहन है जो अब बार्वी कक्षा मे पढ़ रही है.
मै हिन्दी दसवी कक्षा तक पढ़ा हूँ. पढने लिखने और समझने में मुझे कोई कठिनाई नही परंतु सिर्फ़ बातचीत करते समय मुझे हिन्दी बोलने में आत्मविश्वास नही. इसी आशा में मैंने यह कक्षा में पंजीकरण किया हूँ कि मै हिन्दी ठीक से बोल सकू.
मेरे शौक हैं गाने सुनना, गाड़ी चलाना, दोस्तों के साथ मस्ती करना और खेल कूद करना. मैं फिल्मो का बड़ा शौकीन हूँ. सबसे नई फ़िल्म जो मैंने दखी वोह घजनी है. मेरे अनुसार घजनी इतनी खूब नही. इससे बेहतर है स्ल्म्दोग मिल्लिओनर है जो मेरे अनुसार परदेसियों को भारत वर्ष में गरीबों के जीवन में कठिनाइयों कि झलक देता हैं.

इसी विषय पर में आप से विदा लेता हूँ. तब तक के लिए अलविदा.

बुधवार, 21 जनवरी 2009

बराक का बड़ा दिन

कल बहुत खुशी का दिन था क्योकि इस देश, अमेरीका, में बराक ओबामा नया राष्ट्रपति बन गए। उनके पहले, तैंतालीस राष्ट्रपति सफेद महल में रहे थे... लेकिन साथ-साथ नहीं! कल मैं सोच रही थी की बराक और उनके पत्नी पहेली रात उस महल में क्या करेंगें? मुझे लगा की जब रात पहुँचेगी तब दोनों बहुत थकें होंगें और मेरे ख़याल में, वे जल्दी से सोयेंगें... लेकिन सोने के पहले क्या सोचेंगें? शायद वे अपने आप से कहेंगें कि "आज हम सब लोगों ने इतिहास बनाया. आशा है की हमारे नये अधिपति ने काफी आराम मिला।

कल टीवी देख-देखकर, मेरी आंखे से कभी आंसू आगये और कभी मेरी दिल में हमारा देश की शान्ति के लिए प्रार्थना आजाता था। इस पल में, मेरा प्रार्थना है की बराक ओबामा उनका स्वधर्म करें और इस देशा की कटिनाइयाँ दूर करें। लेकिन बराक भी हमें याद दिलाते है कि इस देश का सुधार करने के लिए, हम अपने आप को बदलना चाहिये। उनका कहना है कि हमारे जीवन में जिम्मेदारी, महनत और साहस होना जरूरी हैं। जैसे पायलट ने हवाई जहाज का दुर्घटना में उनके सवारियों को बचा, वैसे हम भी दया और अभय से हमारा जीवन सफल होगा ।

आज तक आप भी कल के बारे में टीवी में देखा और सुना होगा । कहते है- कल वोशिंग्टन दी. सी. मॉल में दो करोड़ लोगों ने तंड में नया राष्ट्रपति का बड़ा दिन मना रहे थे। लोगो के चहरे पे तंड के इलावा खुशी थे और सब लोगो की मुस्कुराते से मैं भी पूरा दिन मुस्कुरा रही थी .

मंगलवार, 20 जनवरी 2009

प्रकृति से शिक्षा

प्रकृति हमें बहुत कुछ सिखाती है | अगर हम अपनी आँखें खोलकर अपने चारों ओर देखेंगे तो हमें पता चल जाएगा की प्रकृति हर रूप में हमारी शिक्षिका है एवं ज़िन्दगी के कई ज़रूरी बातें हमें प्रकृति ही सिखाती है | किसी कवि ने ठीक ही कहा है --

फूलों से नित हसना सीखो, भौंरों से नित गाना,
तरु की झुकी डालियों से सिखों शीश झुकाना |

कवि अपने पाठको से यही कहना चाहते हैं की जिस प्रकार फूल हमेशा मुस्कराते रहेत हैं एवं खिले हुए नज़र आते हैं, हमें भी उनसे यही प्रेरणा लेनी चाहिए एवं ज़िन्दगी में हमेशा हँसते-मुस्कराते रहना चाहिए | जिस प्रकार भवरे हर घड़ी गाते हुए नज़र आते हैं, उसी प्रकार हमें भी हमेशा हँसते गाते रहना चाहिए | अरथार्ट हमें ज़िन्दगी के हर पल को पूर्ण रूप से जीना चाहिए | कहने का भावः यही है की हमारे जीवन रुपी मार्ग में कई बाधाये आएँगी, परन्तु हमें उन्हें पार कर आगे बढ़ते रहना चाहिए एवं हमेशा खुश रहना चाहिए | कवि यह भी कहते हैं की जिस प्रकार वृक्ष अपनी डालियों को नीचे झुकाता है, उसी प्रकार हमें भी अपना सर नीचे झुकने से शर्माना नहीं चाहिए | कवि के कहने का भावः यह है कि अपना भूल स्वीकार करने में कोई बुराई नहीं है | हम अपनी भूल स्वीकार कर बड़प्पन दिखाते हैं | इस प्रकार अगर हम प्रकृति के सिखाये हुए सिद्धान्तों को अपने ज़िन्दगी का अंग बना लेते हैं तो हम सफलता की राह पर चलेंगे |

सोमवार, 19 जनवरी 2009

मेरी कमजोरी

मैंने दसवी कक्षा तक हिन्दी पढ़ा था. परन्तु मैं दक्षिणी भरतीय हूँ और मेरी हिन्दी बहुत कमज़ोर है. पड़ने, लिखने और समझने में कोई कठिनाई नहीं है पर बोलने में थोड़ी कमजोरी है. दसवी कक्षा तक हमारी परीक्षाओं में हमें निबंध लिखने पड़ते थे. इस कमजोरी को पराजय करने के लिए मैंने एक निबंधों का पुस्तक खरीद लिया और पहले से ही निबंधों को रट करने लगा. इस तरह मेरी भाषा में कोई उन्नति न हुई पर परीक्षाओं में अच्छे अंक मिलने लगे. मैं दुबई का रहने वाला हूँ और अरबी अच्छी तरह से आती है. मेरे माता पिता मद्रास के रहने वाले हैं और इस के कारण मुझे तमिल भी अच्छी तरह से आती है. भारत की राष्ट्रीय भाषा हिन्दी है और हिन्दुस्तानी होते हुए मैं शर्मिंदा हूँ कि मुझे हिन्दी अच्छी तरह से नहीं आती है. इस वजह मैं कॉलेज में हिन्दी की कक्षा लेना चाहता हूँ. इस तरह मेरी भाषा बढ़ जाएगी और मैं गर्व से बोल सकता हूँ कि मुझे हिन्दी में बात करने में कोई कठिनाई महसूस नहीं होती है.