रविवार, 1 मार्च 2009

वसंत की छुट्टियाँ

मैं बहुत देर से वसंत की छुट्टियों का इंतिज़ार कर रही थी | अपनी मौसी एवं भाई से मिले मुझे आठ महीने से ज्यादा हो गए थे | इस लिए मैं ने वसंत की छुट्टियों में कैलिफोर्निया की टिकेट बुक करा ली | मेरी मौसी कैलिफोर्निया में स्थित सैन होसे नमक शेहेर में रहती हैं | उनसे मिलने का मन शायद और भी ज्यादा इस लिए था क्योंकि मैं अपने घर से इतनी दूर हूँ की परिवार के किसी भी सदस्य से मिलने से घर से दूर होने का गम थोडा कम हो जाता है | मैं कैलिफोर्निया जाने के लिए इस लिए भी उत्सुक थी क्योंकि मुझे मिशिगन की ठण्ड से बचने का मौका मिल रहा था तथा कैलिफोर्निया एक ऐसी जगह है जिसपर सूर्य अपनी किरणे उदार भावः से फैलता है | सैन होसे पहुँचकर एवं मौसी और इशान से मिलकर मुझे बहुत अच्छा लगा | सैन होसे को सिलिकन वैली के नाम से भी जाना जाता है | वहां कम्प्यूटर से जुड़े दुनिया के सबसे बड़ी कंपनियों के दफ्तर हैं | उंच ऊंची इमारते, चारों ओर हरियाली, मंद बहती हुई समीर एवं नीला आकाश- सब कुछ जैसे बिलकुल एक सुन्दर छवि जैसा लगने लगा था | हवैअद्दे से घर जाते वक्त मैंने अपने भाई से काफी साडी बातें की | इशान अभी आठवी कख में पड़ता है और जीवविज्ञान में रूचि रखता है | केवल चौदह वर्ष होने के कारण वह काफी चंचल है परन्तु उसके उम्र के हिसाब से काफी प्रौढ़ है | ऐसा लगता है मनो वह कभी नहीं थकता | मेरी मौसी ने मेरे लिए कई तरह के पकवान बनाये थे और मुझे घर जैसे खाना खाकर बहुत अच्छा लगा | उनके साथ बिताये हुए यह सात दिन बहुत ही सुन्दर थे एवं मैं इसे कभी नहीं भूलूंगी |

गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009

करीब पांच साल पहले मैं अपने चाचा के परिवार के साथ बोस्टन गया था. हम बोस्टन के एक उपनगर में मेरे चाचा के दोस्त के घर पर रह रहे थे. हमने बोस्टन में एक पूरा हफ्ता काटा. चाचा के दोस्तों ने हमें बोस्टन का काफी सेर करवाया. बोस्टन में बहुत सारे महाविध्यालय हैं जैसे हारवर्ड उनिवेर्सित्य, मस्सचुसेत्तेस इन्स्तितुते ऑफ़ टेक्नोलॉजी, आदि.

चाचा की दुकान

दसवी की परीक्षा ख़तम होने के बाद मेरी चार महीने की छुट्टियां थी. मेरे माता पिता ने मुझे छुट्टी पर अमेरिका भेज दिया. यहाँ में अपने चाचा के परिवार के साथ दो महीनों के लिए रहा. मेरे चाचा के परिवार में उनकी पत्नी थी और उनके दो बेटे है. उन दो महीनों के दौरान मैं अमेरिका बहुत घूमा. मेरे चाचा इल्लिनोईस मैं वेर्नों हिल्स नमक एक शहर में रहते थे. मेरे चाचा चिकागो में एक ग.न.क की दूकान चलाते थे. जब मेरे चचेरे भाई स्कूल जाते थे में अपने चाचा के साथ उनकी दुकान जाकर उनकी मदत करता था. जब भी में दुकान पर था मैं चिकागो शहर की सेर करने निकलता था, चाचा की दुकान मिचिगन अवेनुए पर थी. चिकागो के इसी मिचिगन अवेनुए का हिस्सा 'मग्निफिसेंट मिले' बुलाया जाता था. इस हिस्से में बहुत बड़ी-बड़ी दुकानें हैं. इन दुकानों का सेर कर के मुझे बहुत मजा आता था. हर तरफ ऊँची इमारतों थी और मौसम भी बहुत सुहाना था. एसे माहौल में रह कर मुझे बहुत ख़ुशी होती थी.

गणेश चतुर्थी

हर साल अगस्त के महीने में भारत गणेश चतुर्थी का त्यौहार मनाता है. त्यूहर के दोरान मेरे घर पे गणेश की मूर्ति आती है. यह मूर्ति मिट्टी की बनी होती है. दो दिनों के लिए यह मूर्ति मेरे घर पर होती है. मेरा पूरा परिवार मिल कर मूर्ति की पूजा दिन में तीन बार करता हैं. मेरी बहुत सी यादें इस त्यौहार से जुडी है. जब भी गणेश भगवन घर आते है घर में हलचल सी मची होती है. मेहमानों का आना जाना रहता है. हर महमान मूर्ति के दर्शन कर के प्रसाद खता है. महमानों के लिए स्वादिष्ट खाना परोसा होता है.माहाराष्ट्र में खास कर गणेश भगवन के बहुत भक्त है. गणेश चतुर्थी के दोरान मोधक नाम की मिठाई बाटी जाती है. यह मिठाई सिर्फ त्यौहार दोरान मिलती है और मुझे बहुत पसंद है. मुझे यह त्यौहार पसंद आता है क्यों की घर में ख़ुशी का महूल होता है, पूरा परिवार साथ में होता है और स्वादिष्ट खाना और मिठाई खाने का मोका मिलता है. पिछले तीन सालों से मैंने यह त्यौहार एक बार भी नहीं मनाया है और मुझे वह त्यौहार मनानें का बहुत मन है.

शनिवार, 21 फ़रवरी 2009

जातिवाद

दुबई में साठ प्रतिशत के लोग भारतीय हैं. दस प्रतिशत के लोग यूरोप के आनेवाले हैं और सिर्फ़ बीस प्रतिशत के लोग अरबी हैं. एस कारण दुबई में बहुत जातिवाद होती है. मुझे ये कहने में दुःख होता है की अरबी लोग गोरे लोगों का सात लेते हैं और भारतीयों से जातिवाद करते हैं. अठारह साल के लिए मैं दुबई में रहा. अरबी लोग सोलह साल की उम्र में ही गाड़ी चला सकते हैं परन्तु विदेशी लोगों को अठारह साल की उम्र के बाद ही लाइसेंस लाने का मौका मिलता है. दुबई को स्वतंत्रता मिलने के पहले ही भारतीय लोग दुबई में थे. स्वतंत्रता के पहले दुबई की मुद्रा रुपया थी. दुबई की सफलता में दुबई के भारतीयों को ज़रूर श्रेय देना चाहिए परन्तु हमें ये श्रेय नहीं मिलती है. आज की नए ज़माने में दुबई में जातिवाद कम होती जा रही और दुबई में उन्नति ज़रूर हो रही है परन्तु फ़िर भी कभी कभी स्थिति बुरी होती है.

गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009

होली

मेरा सबसे प्रिय त्यौहार होली है l होली एक रंगों का त्यौहार है जिसे सारे रिश्तेदार और दोस्त मिल कर मनाते है l मेरे घर में जब होली मनाई जाती है तोह सबसे पहले परिवार के सारे लोग सुबह में पूजा करते है और उसके बाद एक दुसरे के माथे पर होली के रंग का टिक्का लगाते है और एक दुसरे को बधाई देते है l उसके बाद मैं अपने दोस्तों के साथ होली मनाने जाता हु l पहले होली सब सूखे रंगों से खेलते थे लेकिन अब होली के लिए ऐसे रंग आते है जोह एक बार लग जाए तोह एक हफ्ते तक मिटते नही है l ऐसे पक्के रंगों के साथ हम मनाते है होली l सारे दोस्त फ़िर अपनी गाड़ियों में निकल कर दूसरे दोस्तों के घर जाते है और रस्ते में होली मन्नते हुए जाते है l होली में रंगों के इलावा अण्डों का भी उपयोग होता है l अंत में सब होली खेल कर एकदम गंदे होकर घर जाते है और फ़िर रात तो सब मिलकर भोजन करते है l कुछ लोगों को लगता है की होली ख़राब होगई है क्योंकि लोग पक्के रंग, अंडे और बहुत ऐसी चीज़ों का प्रयोग करते है लेकिन होली मेरे लिए सबसे मनपसंद त्यौहार है l

बुधवार, 18 फ़रवरी 2009

यहाँ के पुस्तकालय

कल रात की ही बात है जब मैं मिशिगन विश्वविद्यालय के उन्देर्ग्रदुएत पुस्तकालय गई थी | वैसे तो मैं कई बार पुस्तकालय जा चुकी हूँ परन्तु मिशिगन में यह मेरी पहली बार थी | भारत में पले बड़े होने के कारण मुझे हमेशा ऐसी तस्वीर दिखाई गई थी जहाँ पुस्तकालय एक ऐसी जगह है जहाँ कोई बात नही करता एवं चुप चाप अपना काम करता है और किताबें पड़ता है | शायद मुझे पुस्तकालय का यह बिल्कुल अलग झलक कभी न मिलता अगर मैं कल रात इधर के पुस्तकालय गई न होती | इस पुस्तकालय के तीन मंजिल थे एवं अन्दर एक भोजन करने का स्थान भी था| आज तक मैंने कभी ऐसा पुस्तकालय नही देखा था जहां अन्दर कैफे होता है अवं जहाँ लोग ज़ोर ज़ोर से बातें करते हैं| मैं भवन के पहेली मंजिल पर थी और चुप चाप अपना काम करने की कोशिश कर रही थी परन्तु ऐसा करना नमुमकिन था क्यूंकि मेरे चारों ओर लोग केवल बातें कर रहे थे | कोई अपनी पिछली रात के बारे में बता रहा था तो कोई कल की परीक्षा के बारे में बात कर रहा था| एक चीज़ तो मुझे माननी पड़ेगी, की यहाँ आकर अगर हम लोगों की बातें सुनते हैं तो हमारा मनोरंजन ज़रूर हो सकता है | मुझे एक चीज़ समझ में नही आई | यहाँ लोग अपने कमरे में इस लिए नही पड़ते क्यूंकि उन्हें लगता है की ऐसा करने से वे ठीक तरह से मन लगाकर नही पड़ पाएंगे लेकिन पुस्तकालय आने का मतलब अगर तीन घंटे में एक घंटा पड़ने का है तो मुझे यहाँ आने का कोई फायदा नही दिखाई देता | यह कहना सच ही होगा की यहाँ के पुस्तकालय का वातावरण भारत के पुस्तकालयों के वातावरण से बिल्कुल अलग है |

मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009

अनात्मा

बौद्ध धर्म में अनात्मा का सिद्धांत होता है। इस मत को स्थापित करने के लिये बौद्ध शास्त्र में बहुत न्याय इस्तेमाल किया जाता है। इसके सिवाय शास्त्र लोगों के अनु्भव भी परीक्षा करते है। परम द्र्ष्टि से आदमी का सार या तत्व मन से चला जाता है। इस मत को सिखाने के लिये बौद्ध शास्त्र हमें एक प्रसिद्ध द्रिष्टांत दिखाते है। एक बार नागसेन ने राजा मिलिन्द को बौद्ध धर्म के तरफ मोड लिया। इस शुभ फल को नागसेन ने कैसे प्राप्त किया? द्र्ष्टांत के द्वारा उसने अनात्मा मत को सिखाया। नागसेन ने राजा को उसके वाहन के बारे पुछा। प्रश्न था - "राजा, आप यहाँ कैसे आएँ? राजा ने जवाब दिया कि "मैं राजा हूँ और मैं पैदल से हर किस नहीं आया लेकिन रथ से।" नागसेन ने उसको पुछा कि "रथ क्या है-- धुरा, चक्र, रथ का मध्य अंश, या ध्वज?" "नहिं" राजा ने उत्तर दिया। अंत में नागसेन ने कहा कि "भाषा में और व्यवहार द्रिष्ट से रथ का सत्ता मान लीया जाता है। लेकिन जब निकट से विचार करते है, हम रथ या आत्मा को भी नहीं देख सखतें। फिर राजा मिलिन्द ने बौद्ध धर्म को अपनाया।

रविवार, 15 फ़रवरी 2009

ट्रेन यात्रा

मैंने अपना बचपन ज़्यादातर भोपाल में गुज़ारा है | वैसे तो मेरे माता पिता जी हैदराबाद के हैं और मेरा बाकी परिवार भी वहीँ पर है , परन्तु पिताजी के काम के कारण हमें भोपाल में बस जाना पड़ा | मुझे इस बात से कोई भी शिकायत नही | इसी बहाने मुझे हर छुट्टियों में हैदराबाद जाते वक्त ट्रेन में सफर करने को मिलता था | ट्रेन या रेलयात्रा बेशक मेरी ज़िन्दगी के सबसे महत्वपूर्ण अनुभवों में से एक रहा है | काफ़ी लोग इसे दुविधापूर्वक मानते हैं , उस बात से पूरी तरह असहमत भी नही हो सकती , लेकिन उस माहौल में ही अपने देश की काफ़ी झलकियाँ दिखती हैं | एक तरफ़ अमीर-गरीब का भेदभाव दिखता है तो दूसरी तरफ़ पुराणी और नई पीड़ी में फरक | जहाँ एक तरफ़ लोगों के चेहरे अपनों से दूर जाते हुए उदास हो जाते हैं तो दूसरी तरफ़ कुछ लोग अपनों से मिलने के इंतज़ार की खुशी में उत्सुक हो जाते हैं | एक तरफ़ खिड़की वाली सीट पर बैठने को लेकर मारपीट और झगडा करते बच्चे तो दूसरी तरफ़ परिवार में होती समस्याओ को लेकर बड़े बूढो में दमदार बहस | एक तरफ़ वे लोग जिन्हें अपनी व्यस्त ज़िन्दगी में आराम का समय भी नही मिलता था और यह रेलयात्रा एक बहाना है चैन से सोने का , दूसरी तरफ़ वे लोग जो इस रेल को अपने खेल और मनोरंजन का अड्डा बनाने की पूरी तय्यारी करके आए हुए हैं | जिस तरह इन्द्रधनुष में साथ साथ सातों रंग दिखाई देते हैं , रेलयात्रा के दौरान उन चंद घंटो में भारतीय रहन सहन की साड़ी झलकियाँ दिख जाती हैं |

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

फुटबॉल

इस फरवरी के २५ तारीख को
दुनिया के सबसे अच्छे फुटबॉल
तेअमो में से दो तेअमें मैच
खेलने वाली हैं. इटली से इंटर
मिलान नाम की फुटबॉल टीम
इंग्लैंड के मानचेस्टर
उनितेद से मिलान में मैच
खेलेगी. यह मैच इंटर मिलान के
लिए बहुत बढ़ी गेम हैं. अगर
इंटर मिलन ने मानचेस्टर को
हरा दिया, तो इंटर मिलान
चैंपियंस लीग की सेमिफिनाल्स
में पहोच जाएगी. इंटर मिलन
इटली की सबसे बढ़िया टीम हैं.
उन्होंने इस साल के इटालियन
ट्राफी जीत ली हैं. इंटर ने
मिलन के दूसरी टीम ए सी मिलन
को हराके यह ट्राफी जीत ली.
इंटर मिलान का सबसे अच्छा
खिलाड़ी जलातन इब्रहिमोविक
नाम का स्वीडन से खिलाड़ी हैं.
इब्रहिमोविक ने इस साल बीस से
ज्यादा गोल बना लिए हैं. अब,
अगर इंटर मिलान को मानचेस्टर
को हराना हैं तोह
इब्रहिमोविक को बहुत अच्छा
खेल खेलना पढेगा. चाहे इंटर
मिलान जीते या हारे, मेरा दिल
इन्ही के साथ हमेशा रहेगा.

मेरी राष्ट्रीयता

मेरे माता पिता भारतीय हैं. मेरे परिवार के सदस्य भी भारत के रहनेवाले हैं. परन्तु मैं दुबई का रहनेवाला हूँ. मैं दुबई में ही पला भरा और स्कूल की पढ़ाई भी दुबई में की थी. इसके ऊपर मेरी पासपोर्ट कनेडा की है और आज मैं अम्रीका में रहता हूँ. जब मैं लोगों को इसके बारे में बोलता हूँ तो उनको बड़ा अजीब लगता है और मेरी अभिज्ञान के बारे में बात उठाते हैं. जब मैं अंग्रेज़ी में बोलता हूँ तो ऐसा लगता है की मैं भारत का रहनेवाला हूँ. मेरे दोस्तों को बड़ा अजीब लगता है की मेरी पासपोर्ट कनेडा की है पर मेरी लहजा भारतीय की बराबर है. मिशिगन आने पर, और लोगों के पूछने पर मैंने कहा की मैं दुबई से हूँ. इसपर वे कहने लगे की मैं अरबी की तरह नहीं दिखता हूँ और भारतीय जैसा लगता हूँ. मैं अरबी भोल भी नहीं सकता हूँ. पढने और लिखने में मुझे कोई कठिनाई नहीं है परन्तु समझना और बोलना मुश्किल है. मिशिगन आने से पहले मुझे अपनी राष्ट्रीयता के बारे में शंका नहीं होती थी परन्तु आजकल कभी कभी शंका जरुर होती है.

मेरा पहला प्यार !

आज मैं सुबह सुबह कुछ कुछ होता है नमक फ़िल्म देख रही थी. उसमे सब अपने पहले प्यार की बातें कर रहे थे . इससे मैं भी अपने पहले प्यार के बारे में सोचने आर मजबूर हो गई. मैं ६ साल की थी जब एक दिन मैं यूँही घर बैठे दूरदर्शन देख रही थी . तभी मेरे मामा एक बड़ी सी थैली घर लाये. वह थैली बिल्कुल खाली लग रही थी. जब मैंने उसे खोला तो देखा उसमें दो छोटे रूई के गोले जैसे नन्हे मुन्ने से खरगोश के बच्च्रे थे.जब मैंने उन्हें थैली से निकाला तो एक सीधे रसोईघर में जा कर सामान गिराने लगा, पर दूसरी एक कोने में जाकर बैठ गई. उस पल से मुझे उससे प्यार हो गया ! मैंने उसे अपने लिए रख लिया और नटखट वाला अपनी दीदी को दे दिया. ३ सालों तक मैंने उसका बहुत ख़याल रखा , और वो भी मुझे बहुत चाहने लगी थी. जब में पाठशाला से घर वापस आती तो वह उछलते कुद्द्ते दरवाज़े पर मेरा स्वागत करने आती थी. हर रात वह चुपके से मेरी कम्बल के नीचे आकर मेरे साथ सो जाती. उन ३ सालों के बाद हम भारत छोड़ कर जब शारजाह जाने लगे तो मुझे दोनों खरगोश को अपनी अध्यापिका को देना पडा. पहले प्यार को खोने का दर्द तो आप जानतें ही होंगे. महीनो तक मैं हर रात उसे याद करके सोती थी और आज भी कभी कभी मुझे वो बहुत याद आती है.

सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

स्कूल के दिन

मुझे आज भी वह दिन याद है जब मैं स्कूल में थी और मेरे सेनियेर्स का स्कूल में आखरी दिन था | हमने उनके लिए एक बहुत बढ़िया कार्यक्रम तैयार किया था और भोजन का भी प्रबंध किया था | सब लड़कियां सरियों में बहुत सुंदर लग रही थी | कार्यक्रम के शुरुवात में सब हँसती हुई नज़र आ रही थी लेकिन जैसे जसे हम अंत की ओर बढ़े सबकी आँखें भर आने लगी | कोई भी अपनी जीवन मार्ग पर स्कूल छोड़कर आगे नहीं बढ़ना चाहती थी | तब मुझे यह बहुत अजीब लगा और मन ही मन मैंने सोचा की जब मेरा स्कूल का आखरी दिन होगा तो में तो बल्कि बहुत खुश होंगी क्यूंकि आखिरकार तेरह साल बाद मैंने अपना स्कूल ख़त्म कर लिया था | परन्तु मुझे तब क्या पता था की स्कूल छोडके आगे बढ़ना कितना मुश्किल होता है | जिन दोस्तों के साथ मैं ने अपने ज़िन्दगी के तेरह साल काटे थे अब में उनको रोज़ देख भी न पाऊंगी | स्कूल का मेरे जीवन में कितना महत्वपूर्ण स्थान है यह तो मैं शायद अपने स्कूल के आखरी दिन पर भी न समझ पाई, लेकिन जैसे जैसे हम सब अपनी अपनी जीवन राह पर आगे बढ़े, कॉलेज में दाखिल हुए और धीरे धीरे सब बदलने लगा, तब मुझे एहसास हुआ की स्कूल एक ऐसी जगह थी जहाँ हम असली दुनिया से दूर थे | मैं अपनी दोस्तों से बहुत दोर्र हूँ परन्तु फिर भी हम दो दिन में एक बार बात तो कर ही लेतें हैं | स्कूल के दोस्त ऐसे होते हैं की अगर हम एक साल के बाद भी मिले तो भी सब कुछ वैसे ही रहता है जैसा हम उसे छोड़कर गए थे | विचित्र तरह की दोस्ती है यह | और क्या है, जब हम सब फिर मिलते हैं तो स्कूल के बातें जैसे ख़त्म ही नहीं होती | कभी कभी तो ऐसा लगता है के अगर मुझे मौका मिलता तो में फिर से स्कूल के दिनों में वापस चली जाती |

आई डोंट नो

अगर आप मेरे पिछले ब्लॉग से परेशान नही हुए तो यह लीजिये , एक और नई ताज़ी पकाऊ ब्लॉग तैयार है | पिछले ब्लॉग में परीक्षा का ज़िक्र करते हुए याद आया वह समय ज़िन्दगी का जब मैं बेहद असमंजस की स्तिथि में थी | मनिपाल के आखिरी सेमिस्टर की बात थी जब उनीवेरसितीस से जवाब आने शुरू हो गए थे | याद है मुझे वह दिन जब मिचिगन से एडमिट की ख़बर आई थी , खुशी तो बहुत हुई थी परन्तु चंद घंटो के लिए ही , उसके बाद सब कुछ धुन्दला लगने लगा | दोस्त बधाई देते थे , पूछते थे मुझे कैसा लग रहा है और अन्दर ही अन्दर मेरे " आई डोंट नो " गूंजता था | मुझे पता ही नही था आख़िर मैं चाहती क्या हूँ ज़िन्दगी से | बस हर दिन को वन - डे की तरह खेलती जा रही हूँ , कभी डक आउट तो कभी एक आद रन बन जाते हैं | कोई उत्साह नही , कोई उल्लास नही | सच कहूं तो हालत अभी भी वैसी ही है | वैसे बिना डेस्टिनेशन के ज्ञान से कभी कोई ट्रेन या बस नही पकड़ी , तो फिर बिना मंजिल के इस सफर में कैसे चल पड़ी , मैं नही जानती | जानती हूँ तो बस इतनकी कुछ करना है , जिससे कि दस साल बाद किस भी सवाल का जवाब " आई डोंट नो " ना हो | वैसे आपको कोई और काम नही है करने को जो आप इतनी फुर्सत से यह ब्लॉग पढ़ रहे हैं ? " यू टू डोंट नो , राइट ?" इश !

ओह नो !

ओह नो ! परीक्षाएँ मनुष्य की मानसिक स्थिति को बिगाड़ देते हैं | वे डराते हैं , मुह पर मुक्का मारते हैं और पेट में लात | मेज़ पर रखी मोटी मोटी किताबो और हाथ में बचे वक्त का कोई तोल नही | परीक्षाएँ तुम्हे धरती पर वापस ले आती हैं और सचाई से सामना कराती हैं | हाँ भाई , जब रॉकेट की रफ़्तार से क्लासेस बंक करोगे और जितने गिने चुनो में जाओ उसमे भी आख़िर बेंच में बैठ सपने देखोगे तो यही हाल होता है | हाँ आपने सही पहचाना , मेरा अभी यही हाल है , दो दिनों में इम्तिहान है और मैंने किताबों का चेहरा भी नही देखा | वैसे सोचे तो , बचपन कितना अच्छा था ना , हम अपना काम कितना वक्त पर करते थे | हर दिन अपनी प्यारी सी पेंसिल लेकर अपने आप होम वर्क शुरू कर देते थे और अगर कुछ नही आए तो झट से कविता या सुनीता को फ़ोन लगाकर " अरे , तुने वोह किया ? कैसे किया ? बतादे ना " कहते थे | फिर हमें बड़े होते होते क्या हो जाता है ? आलस क्यूँ हमारे अन्दर पनाह ले लेता है और पेरासाईट की तरह बढ़ने लगता है ? और हम उसे निकालने की कोई कोशिश भी तो नही करते | खैर छोडिये , अब मुझे जाके सच्चाई का सामना करना होगा , किताबें खोलनी होंगी | अपनी ज़िन्दगी की दुःख भरी गाथा बाद में सुनाती रहूंगी |

जवानी

कल रात जब "ग्रामि अवोर्दस" का दूरदर्शन प्रसारण चल रहा था, मेरा स्मरण उठ गया और जब तक में जागी थी तब तक मेरा चित्त विगत दिनों के याद में रुक गया था। जवानी में मुझे लगता था कि काल धीरे-धिरे चल रहा है ख़ास तौर से गरमी के छुट्टियों में जिस्मे हर दिन पक्षी की बोलीयाँ दो-तीन घंटे के लिये सुन सकते थे। उस समय में, हम जिवन की छोटे सुख अछी तरह से अनुभव कर सकते थे क्योंकि सब कुछ करने के लिये समय था। अगर में दूरदर्शन देखना चाहती थी या मुझे दिवा-स्वप्न में खो जाने की इछा थी तो दिन में मुझे समय मिल जाता था। सुबह को में और मेरे भाई नौ या दस बजें उठ जाते थे। जब में जवान थी गरमी में मुझे बाइसिकल चलाना बहुत शौक था इस लिये हर सवेरा, जाग-कर, में तीन-चार मिल के लिये बाइसिकल चलाती रहती थी। दोपहर को में कुछ भी मनपसंद कर्म करती थी जैसे किताब पड़ना या दोस्तों से मिलना।

दुख की बात है कि आजकल हमारे मन में सिर्फ एक ही विचार है - यह करना है, उस्से मिलना है वगरह। लेकिन हम सब जानते है कि दिन में सब कुछ करने के लिये समय नहीं होता है। कारण जो भी हो मुझे यकीन है कि हम को पक्षी सुनने के लिये कुछ समय रखना चाहिये। हमरी पागल सी ज़िंदगी को रोखना हमारे हथों में है।

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

मुंबई भारत का सबसे बड़ा शहर हैं .यह भारत की वित्तीय राजधानी है. इसका आबादी तेरह मिलियन हैं जिसके साथ यह, विश्व की दूसरी सर्वाधिक आबादी वाली नगरी है। मुंबई पहले बॉम्बे नाम से जाना जाता था. १९९६ मैं इसका नाम बॉम्बे से मुंबई बनाया गया था. मुंबई दो शब्दों से बनाया हुआ हैं. मुम्बा और आई. मुम्बा का मतलब मुंबा या महा-अंबा हिन्दू देवी दुर्गा, जिनका नाम मुंबा देवी है और आई जो मराठी मैं माँ को कहाँ जाता हैं. यहाँ पर आपको सबी जात-धर्म के लोग मिलेंगे. यहाँ सभी धर्म के लोग भाई चारा मैं रहते हैं. मुंबई का गेटवे ऑफ़ इंडिया बहुत जाना जाता हैं. यहाँ का सिद्धिविनायक मन्दिर और महालक्ष्मी मन्दिर भी बहुत जाना जाता हैं. यहाँ पर आपको बहुत सारे मॉल मिलेंगे. यहाँ पर आपको बड़े बड़े इमारतें देखने मिलेंगे. अगर आप भाग्यशाली रहे, थो आप बॉलीवुड के जाने माने हस्तियाँ देख सकते हो. जुलाई से सितम्बर मैं यहाँ पर बहुत बारिश होता हैं. कभी कभी बाढ़ बी होता हैं.

गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

माँ

कल मेरी माँ का जन्मदिन था.वह दोहा, कतर में मेरे पिता के साथ रहती हैं. मिशिगन और वहाँ के समय में आठ घंटो का अन्तर है. इस समय के अन्तर के कारन बारह बजे के बदला मैंने उन्हें शाम के चार बजे फ़ोन लगाया. उनकी आवाज़ सुन के मेरे ख़याल में बहुत सारे बीते हुआ पल याद आए. मैं जब भी घर होती हूँ तोह हम बड़ी धूम-धाम से माँ का जन्मदिन मनाते थे. घर में तो अभी भी उनका जन्मदिन मनता है, पर मेरे बिना कुछ मज़ा नही आता होगा. घर से इतनी दूर रहकर घर की बहुत याद आती है. आज भी जब घर के बारे में सोचती हूँ तो मेरे दोहा छोड़ने के दिन के हवाई अड्डे का दृश्य याद आता है.मुझे अपने माँ की आंसू से भरी आँखें याद आती हैं और मेरा गिल उन्हें देखने को तड़प जाता है. मेरी माँ मेरी सबसे अच्छी सहेली है. हम आज भी फ़ोन पर घंटों बातें करते है. उनके हाथ का बना खाना खाने के लिए तोह मेरा जी ललचा जाता है. मैं इस अगस्त उन्हें एक साल बाद देखूंगी. अब तो मुझे बस उस दिन का इंतज़ार है जब मुझे हवाई अड्डे पर उनका हस्ता हुआ चेहरा नज़र आएगा.

संगीत

जब मैं पॉँच साल का था, मेरे माता पिता ने मुझे कार्नाटिक संगीत की कक्षा शुरू करने का आदेश दिया. मैं सिर्फ़ पाँच साल का था और घर छोड़कर किसी अनजान के घर जाकर गाना नहीं चाहता था. परन्तु उनकी विवशता पर मेरा और कोई राह नहीं था. पहले दिन जाने पर मैंने देखा की मेरी उम्र के लड़के और लड़कियां थी.

मेरे अध्यापिका का नाम इंद्रा कृष्णन था. थोड़े हफ्तों के बाद में ही मुझे संगीत पसंद आने लगा और गाने की इच्छा बड़ने लगी. मुझे पता चला की हिन्दुस्तानी और कार्नाटिक संगीत सीखने पर गाने की नींव बढ़ जाती है और गाते गाते मैं उन्नति करने लगा.

आज पन्द्रह साल के बाद, मैं अपने विश्वविद्यालय में भी गाता हूँ. हमारा एक संगीत का झुंड है जिसको हम मेज मिर्ची बुलाते हैं. दो साल पहले अप्रैल में हम गाने लगे और शीग्र ही लोग हमारे बारे में सुनने लगे. हम हिन्दुस्तानी गाने गाते हैं और अमरीकी गाने भी. कर्नाटिक संगीत सीखने से गाना आसानी से आती है और में खुश हूँ की मैंने अपने माता पिता की बात सुनली, और पन्द्रह साल पहले श्रीमती इंद्रा जी से गाना सीख ली.

बुधवार, 4 फ़रवरी 2009

अमृतसर

मेरा जन्म पंजाब के शहर अमृतसर में हुआ था l अमृतसर पंजाब का महत्वपूर्ण शहर है l अमृतसर की ज्यादी तर जनता सिख है और दरबार साहिब या "गोल्डन टेम्पल" जो अमृतसर में स्तिथ है वह सिखों का सबसे धर्मत्मिक स्थान है ल मैं बचपन से हर साल अमृतसर जाता हु और मेरी उधर की सबसे मनपसंद चीज़ है उधर का खाना l अमृतसर का खाना बहुत मशुर है l अमृतसरी कुलचे, अमृतसरी मची और वहां की लस्सी का कोई मुकाबला ही नही है l अमृतसर एक बहुत इतिहासिक जगह है l १९१९ में जल्लिअवाला बाघ का हादसा अमृतसर में ही हुआ था l अमृतसर का मुख्य उद्योग है पर्यटन , कपड़ा और मेरे हिसाब से खाना l मुझे याद है जब मैं छोटा था और अपने चाचा से पुछा की अमृतसर में लोग क्या करते है तोह उन्होंने जवाब दिया की " आधे लोग खाना बनाते है और बाकी आधे खाना खाते है l "

सोमवार, 2 फ़रवरी 2009

मेरी पाठशाला

मैं दसवी कक्षा तक बॉम्बे स्कॉटिश स्कूल नमक एक विद्यालय में पढता था | मेरी पाठशाला मुंबई के महिम इलाके में थी | मेरे स्कूल के सामने एक समुद्रतट था | स्कूल के चरों तरफ़ खजूर के लंबे लंबे पेड़ थे | ५ सालों से में अपने स्कूल वापस नहीं गया हूँ | परंतु मुझे अपने शूल से बहुत प्यार हैं | मुझे मेरे स्कूल के दिनों की बहुत याद आती है | स्कूल के मैदान पर खेलना, अध्यापकों से डाट खाना और ऐसी बहुत सी छूटीं छूटीं चीजों के बारे में सोच कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ जाती है | स्कूल के दोरान मेरे बहुत अच्छे दोस्त बने थे| आज तक मैं उन दूस्तों के बहुत करीब हूँ | जब भी हम मिलतें हैं हम सब को बहुत मज़ा आता है | स्कूल के दोरान मैंने बहुत कुछ सीखा जैसे की आपने बड़ों का आदर करना, परिश्रम का हर किसी को फल मिलता है और ऐसी बहुत सी चीजें | मैं अपने स्कूल का आभारी हूँ | आज मैं जो भी काफी हद तक अपने स्कूल की बदोलत हूँ | मेरी एक आशा है की मैं आपने स्कूल के लिए कुछ कर के अपना शुक्रिया अदा कर पाऊँ |

रविवार, 1 फ़रवरी 2009

मेरा सबसे प्रिय अभिनेता

मेरा सबसे प्रिया अभिनेता शाह रुख खान है | उन्हें बॉलीवुड का बादशाह माना जाता है और यह मानना शायद बिल्कुल ठीक ही है | जब से मैं पाँच साल की थी और मैंने उनकी फ़िल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे' देखा, तब से वे मेरे सबसे प्रिय अभिनेता रहे हैं | मुझे उनका काम सबसे जाया पसंद आया 'स्वदेस' और 'कभी अलविदा ना कहना' नामक फिल्मो में | बहुत लोग ऐसे हैं जो आसमान की ऊंचाइयों को छूने के बाद अपना अतीत भूल जाते हैं और अहंकारी हो जाते हैं, परन्तु बादशाह खान उन लोगों में से नहीं है | उनका कहना है की आज भी जब वे फ़िल्म शूट करते हैं तो इस तरह करते हैं जैसे यह उनकी पहली ही फ़िल्म है और उनका मानना है की लोग उन्हें इसी कारण प्यार करते हैं | वे अपनी जनता को अपना सब कुछ मानते हैं और यह कहते हैं की आज वे सफलता की जिस चोटी पर पहुँचे हैं वह केवल जनता के कारण है | उनका जन्म २ नवम्बर को १९६१ को हुआ था | उनकी पत्नी का नाम गौरी खान है | उन्होंने करीब ५० फिल्मों में काम किया है | उनकी हर फ़िल्म बहुत कामयाबी हासिल करती है | उनकी जोड़ी मुझे काजोल और रानी मुखर्जी के साथ बहुत अच्छी लगती है |

मंगलवार, 27 जनवरी 2009

सचिन तेंदुलकर

सचिन तेंदुलकर का जनम अप्रैल २४, १९७३ को हुआ था | बड़ी कम उम्र से ही सचिन ने क्रिकेट खेलना शुरू किया था | बहुत जल्द लोगों को पता चल गया की सचिन के पास क्रिकेट खेलने के लिए भगवन से तोफा मिला था | क्रिकेट पर अपना पूरा ध्यान अर्पण करने के लिए सचिन ने कम उम्र में ही सचिन ने अपना स्कूल बदली कर दिया | सचिन शारदाश्रम नाम के स्कूल में भरती हो गया | यह स्कूल अपने विध्यार्थियूं को खेल खेलने के लिए उत्साहित करता था | सचिन का ख़ास मित्र विनोद काम्बली भी यह स्कूल ही जाता था | इन दोनों ने मिल कर स्कूल में क्रिकेट के काफी रिकॉर्ड तोडे थे | स्कूल के दोरान सचिन हर सुबह छे बजे क्रिकेट का अभ्यास अपने कोच रमाकांत अचरेकर से लेने शिवाजी पार्क जाता था | सचिन जब पहली बार इंडिया के लिए खेला वह सिर्फ़ १६ साल का था | उनका पहला मैच पाकिस्तान के खिलाफ कराची में था | उनको अपने पहले मैच में खेलते हुए देखकर ही लोग जन गए थे की सचिन क्रिकेट की दुनिया का एक सितारा बन ने वाला है | आज इंडिया में सचिन के जोड़ का कोई खिलाड़ी नहीं | लोग उसे भगवन के समान मानते है और क्रिकेट को एक धर्म समान |

मुंबई आतंकी हमले

26 नवंबर 2008 की रात मुंबई पे सबसे भयानक आतंकी हमले हुए। दस आतंकी ‘गेटवे ऑफ़ इंडिया पे समंदर द्वारा पहुचे। दहशत फ़ैलाने के लीये एक नाव का अपहरण करके वे लोग उधर पहुँचें । अजमल अमीर कसाब जो लश्कर-ए-तोइबा के लिये काम करता है जिंदा पकडा गया और तब से उसपर सख्त कारवाई की जा रही है। लश्कर-ए-तोइबा एक पाकिस्तानी कश्मीर का हिस्सा माना जाता है। इसको पकडते वक्त महराष्ट्र पुलिस के तुकाराम ओमब्ले को अपनी जान गवानी पडी। भारत का आर्थिक मुख्य शहर मुंबई के कई स्थलों पर इन गुंडों ने दहशत फ़ैलाया और ज्यादातर पश्चिम देशों के नागरिकों पर हमला किया। ताज महल होटल जो मुंबई की तो शान हैं को भी इन आतंकियों ने नहीं छोडा और उधर 197 लोग मर गये और 308 लोग घायल हुए। 36 घंटों से ज्यादा समय तक शहर मानो थम सा गया था और अगर एन-एस-जी के वीर जवानों ने अपनी जान दावे पर लगा के देश की सुरक्षा के लिये लढाई नहीं की होती तो और भी कयी लोग अपनी जान गवा बैठते। इस से यहीं साफ़ होता हैं की भारत अपनी सुरक्षा अभी तक नहीं कर सकता है और समय आ गया है कि आम नागरिक जाग उठे और सब से पहले अपने नेताओं को सबक सिखायें। जागो भारत जागो।

"बारिश में टेहेलना"

मुझे अकेले टेहेलने का बहुत शौक है | टेहेलते वक्त मुझे कुछ अलग और अच्छा महसूस होता है | ऐसा लगता ही जैसे कितने दिनों बाद खुल के साँस लेने का मौका मिला हो | मुझे सबसे ज्यादा मज़ा बारिश में टेहेलने से आता है | बारिश की बात ही अलग है | जब भी मैं तेज़ बारिश में ( छाते के साथ हाँ !) चलती हूँ , मुझे एक तरफ़ सृष्टि के इस ऐश्वर्य का तेज दिखाई देता है और दूसरी तरफ़ इस जगत की शक्ति के सामने अपना छोटापन | बारिश में जाने ऐसा क्या है जिससे वह सब कुछ निर्मल कर देती है , चारों और शीतलता ले आती है , हवा में एक तरह का हल्कापन महसूस होने लगता है | वैसे देखा जाए तो बारिश दो तरह के होते हैं - एक जो चारो ओर तबाही मचाता है ओर दूसरा जो मन को खुश ओर आत्मा को हल्का कर देता है | मैं उस दूसरे तरह के बारिश की बात कर रही हूँ जिसमे चलते वक्त चाल में स्फूर्ति आ जाती है , चारो ओर हवा में महक ओर मिटटी की खुश्बू समां जाती है , ओर जब यह हवा बदन को छूती है तो लगता है प्रकृति ने गले लगा के अपने लपेट में ले लिया हो | ऐसे वक्त में लगता है सारी उलझने दूर हो गई हों, महसूस होता है सारी परेशानिया झेल लेंगे , कल जो भी हों, सामना कर लेंगे | आज बस मौसम के इस ग़ज़ल में डूब जाओ , कल जो भी हों | इस अनुभूति को आप भी ज़रूर महसूस कीजियेगा | ( !! बारिश में भीगना सेहत के लिए हानिकारक है !! )

विश्वविद्यालय

दो साल पहले, पाठशाला ख़त्म करने के बाद मैं विश्वविद्यालय की तैयारियां करने लगा. विदेशी विद्यार्थी होते हुए मैं अनेक विश्वविद्यालयों को देख न सका. मिशिगन की स्थान मेरे क्षेत्र के लिए सबसे ऊंची थी और इस कारण मैंने मिशिगन आने का फ़ैसला किया. परन्तु मिशिगन आने पर मुझे बहुत गृहातुर महसूस हुई. मैं दुबई का रहना वाला हूँ और मिशिगन की सर्दी अच्छी नहीं लगी. माता पिता के बारे में सोचता रहा. पढ़ाई छोड़कर वापस घर जाने की इच्छा थी.

दुबई में, मैं एक भारतीय पाठशाला में पढ़ता था. मेरे सारे दोस्त भारतीय थे और अम्रीका आने के बाद मेरे सारे पड़ोसी अमरीकी थे. पहले दो हफ्तों के लिए मुझे बहुत अजीब लगा की आस पास कोई भी भारतीय नहीं थे. यह सोचते हुए मुझे डर लगा की शायद कालेज में मेरे कोई भारतीय दोस्त नहीं होंगे.

परन्तु शीग्र मेरे बहुत दोस्त बने. मिशिगन में आज मेरे सबसे अच्छे दोस्त अमरीकी हैं. उन्होंने मेरा संक्रमण बहुत आसान बना दिया. आजकल घर की याद इतनी नहीं आती है और मिशिगन में मुझे जीवन भर के मित्र बने हैं.

सोमवार, 26 जनवरी 2009

गोवा

भारत में घूमने फिरने की हजारों जगहें हैं पर मेरा सबसे पसंदीदा स्थान गोवा है. मैं वहाँ अपने दोस्तों के साथ दो बार घूमने गयी हूँ. दोनों बार मुझे बहुत ज्यादा मज़ा आया. यूं तो दोस्तों के साथ कहीं भी जाने का अनुभव ही कुछ ख़ास होता है और जगह जब गोवा जैसी हो तो मज़ा कुछ और बढ़ जाता है.शायद गोवा की हवाओं में ही कुछ ऐसा जादू है कि वहाँ पहुँचते ही सारी परेशानियाँ गायब हो जाती हैं. पल में मन को शान्ति सी लगती है और मस्ती का सोच कर उसमें हलचल भी होने लगती है. वहाँ बहुत कुछ करने को है. आप शान्ति से छुट्टी बिताना चाहें या फिर मौज मस्ती करना चाहते हैं,बीचों पर जा कर खेलना चाहतें हैं या नाईट क्लब में मज़ा करना चाहते हैं.किसी भी बात में गोवा का मुकाबला नहीं है.यहाँ आपको सब कुछ प्राप्त होगा, गोवा में हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध हैं. गोवा में छुट्टी का मज्जा करने के लिए बहुत पैसे भी नही लगते. हम आसानी से २००० रुपयों में अच्छी छुट्टी गुजार सकते हैं. गोवा की शान को शब्दों में व्यक्त करना कठिन है, इसलिए मेरा विचार है की जीवन में एक बार भी गोवा की सैर ज़रूर करनी चाहिए.

खुद के बारे में!!

नमस्ते! मेरा नाम आनंद नवनीता हैं. मेरा जन्म १३ जुलाई १९८८ मुंबई मैं नानावटी अस्पताल मैं हुआ था.जब थक मेरा उम्र २ साल था तब तक मैं अँधेरी इलाके मैं रहता था. फ़िर मेरे माता-पिता ने मुंबई मैं ही माटुंगा इलाके में घर लिए और तब से हम माटुंगा में रहते हैं. मैंने अपनी दसवी तक की पडी स.इ.ऐ.स विद्यालय मैं किया था. फ़िर ग्यारवी और बारवी रिया महाविद्यालय मैं किया था. फ़िर अपने इंजीनियरी के पहले दो साल मानिपल विश्वविद्यालय मैं किया था. फ़िर अभी अपने तीसरा वर्ष मिशिगन विश्वविद्यालय मैं कर रहा हूँ. मुझे टेनिस खेलना बहुत पसंद हैं. जब बी वक़्त मिलता हैं ताब मैं खेलता हूँ. गाने सुनना बी मुझे बहुत पसंद हैं. मैं हमेशा यात्रा के शौकीन रहा हूँ! मुझे पुस्तक पड़ना पसंद नही हैं! मैं बहुत सारे फिल्मे देखता हूँ. हर रोज कम से कम एक देखता हूँ! मैं पुरा दिन फेसबुक मैं ऑनलाइन रहता हूँ. अमेरिका मैं मुझे कैलिफोर्निया सबसे ज्यादा पसंद हैं.मैं हिन्दी टीक से पड़, लिख और बोल सकता हूँ! मुझे हिंदी, मराठी, फ्रांसीसी अंग्रेजी और तमिल पता हैं. और आशा हैं कि मैं और बी भाषाओं सीखूंगा!

शहीद भगत सिंह

भारत की आज़ादी में लाखों लोग शहीद हुए लेकिन एक क्रन्तिकारी जिसने अपने देश के लिए हस्ते हस्ते अपनी जान न्योछावर करदी उसका नाम था भगत सिंह l भगत सिंह का जन्म २७ सितम्बर १९०७ को पंजाब में हुआ l बचपन से ही भगत सिंह एक देश भक्त आदमी थे l बचपन में वोह गाँधी जी के नॉन कोऑपरेशन मोवेमेंट में पूरा भाग लेते थे लेकिन चौरी चौरा के हात्से के बाद जब गाँधी जी ने नॉन कोऑपरेशन मोवेमेंट रोक दी तोह भगत सिंह ने निर्णय लिया नौजवान भारत सभा में शामिल होने का l भगत सिंह और उनके साथियों ने चाहे हिंसा से आज़ादी प् रहे थे लेकिन वोह एकदम सही था l जो भगत सिंह ने अपने २३ साल के जीवन में कर दिया था वोह कोई और ना कर सका l मुझे अगर किसी बात का अफ़सोस है तोह वोह यह की अगर गाँधी जी ने गाँधी-इर्विन गठबंधन पर अपनी मंजूरी ना दी होती तोह भगत सिंह शायद भारत को २० साल जल्दी ही आजादी दिला देते l २३ मार्च १९३१ को भगत सिंह और उनके साथी सुखदेव और राजगुरु शहीद होगये हस्ते हस्ते अपने देश के लिए l

दोस्ती

मेरा यह मानना है की दोस्त भगवन का रूप होता है | जब हमें ईश्वर की ज़रूरत होती है तो वे हमें दोस्त के रूप में मदद करते हैं | आजकल की दुनिया में सच्चा मित्र ढूँढना बहुत मुश्किल होता जा रहा है | इसका कारण यह है कि आजकल लोग केवल अपना उल्लू सीधा करना जानते हैं | सच्चा दोस्त वह होता है जो हमें अपनी बुराइयाँ बताता है एवं हमारा साथ कभी नहीं छोड़ता | कठिनाई के वक्त वह हमारा हौसला बढ़ाता है, फिर चाहे वह हमारे सुख की घड़ियों में हमारे साथ न हो | बिना सच्चे दोस्त के, ज़िन्दगी का यह सफर असंभव सा हो जाता है | मेरे दोस्त मेरी ज़िन्दगी में मेरे लिए बहुत एहमियत रखते हैं | उनके बिना मेरा मन नहीं लगता और उनके बिना जीवन व्यतीत करना मेरे लिए सम्भव नहीं है | मेरे सबसे अच्छे दोस्त मेरे कॉलेज में नहीं पढ़ते | इस लिए मैं उनसे फ़ोन पे या फिर इन्टरनेट द्वारा बात करती हूँ | उनसे एक दिन भी अगर न बात हो तो मेरा दिन पूरा नहीं होता | मुझे उनकी बहुत याद आती है परन्तु यह दूरी शायद हमारे दोस्ती की परीक्षा है | अगर हम अलग देशों में रहकर भी अपनी दोस्ती पर आँच न आने दे तो फिर हम यह कह सकते हैं की हमारी दोस्ती शायद कभी न टूटेगी और हम जीवन भर अच्छे दोस्त बने रहेंगे |

गणतंत्र दिवस

भारत के इतिहास में २६ जनवरी १९५० एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है. इस दिन, भारत ने संविधान को अपनाया. यह संविधान उद्रेख समिति ने पूरे देश के लिए कानून लिखे जिनके अध्यक्ष श्री आंबेडकर जी थे. संविधान को अपनाने के बाद, राजेंद्र प्रसाद जी हमारे देश के पहले राष्ट्रपति बनाये गए. इसीलिए हर साल भारतीयों इस दिन को स्वतंत्र दिवस के समान मानते है.
हर साल हमारे देश के राष्ट्रपति जो कि भारतीय सेना के प्रमुख कमांडर है वे नौसेना से लेकर वायु सेना के परेड के सलामी लेते है. यह परेड दिल्ली में राष्ट्रपति भवन से लेकर लाल किल्ला तक होता है जहा राष्ट्रपति पूरे देश को भाषण देते है, उनके धैर्य को जागने के लिए, उन लोगो को याद करने के लिए जिन्होंने हमारे देश कि स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन सौंप लिया.
देश के पाठशालाओ में भी स्वतंत्र दिवस के दिन पर झंडावंदन होता है. भाषण होते है और अतिथि वक्ता को आमंत्रित किया जाता है.
इस साल दुर्भाग्य से हमारे राष्ट्रपति उनके कर्तव्य कर न पाए क्यूंकि उनको दिल के सर्जरी गुजरना पड़ा. लेकिन हम उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्राथना करते है ताकि वे जल्द से जल्द अपना कम शुरू कर सके और हमारे महँ देश को और आगे बढाये.

Mitti ka shampoo

शनिवार, 24 जनवरी 2009

पेटूमल-राजकुमारी

एक राजभवन में एक जवान और ख़ूबसूरत इक्कीस उमर की राजकुमारी रहती है. हर रात राजकुमारी का पलंग में दोनों बाजू एक प्राणी और एक चीज थे। किंतु कौन और क्या थे वे? देखीये तो, आपका मन में यह चित्र बनाइए - पलंग के मध्य में राजकुमारी। उसका नाम है कैंडी जिसका अर्थ है औरत जिसका शौक है कैंडी खाना। जब वह दो साल की उमर थी, उसके पिताजी ने उसका नाम बदल दिया और वजह यह है कि चोटी राजकुमारी ने कैंडी खाने का आदत शुरू किया। और सुनो - आज तक इस आदत चल रहा है। जन्म का वक्त, गुरूजी ने कहा कि अगर शिशु का नाम 'कई' ध्वनी से शुरू होगी तो हर रात वह एकाएक उठेंगी और इसकी एक चीज की जरुरत पड़ेंगी. कैंडी के पिताजी ने गुरूजी को पागल समझकर उसकी प्यारी बेटी का नाम कैंडी ही रखा - मगर दो साल के बाद। गुरूजी ने कुच्छ और भी कहा। कैंडियाँ ऐन मौके पर उसको खिलाना पडेगा.

जब वह दस साल की उमर पाहुची, राजा ने उसको एक बड़ा उपहार दिया - चार पैर का ऊंच्चा डिब्बा और क्या थे डिब्बे में? कैंदियाँ! कैंडी ने उपहार खोला और संतोष से वह बेहोश हो गयी. मैं कैंडी की सबसे अच्छी दासी
हूँ और उस आपातकाल में, फट से सवाल सोचकर, मैं नाहर से ठंडी पानी ले आयी। उसके बाद मैंने राजकुमारी की चहरे की तरफ पानी फेंका. जो कुच्छ मैंने किया इस राजभवन में, मैं कैंडी की बला से करती थी ओर आज भी. कैंडी अपनी जिम्मेदारी समझकर, मैंने विधाता के हथों में कैंडी की देखबाल छोडी।

राजा को शांत करने के बाद, कुच्छ और बखेडा हुआ। मैनें राजकुमारी की तरफ देखी और डर गयी। रह-रहकर वह पेटूमल बंगयी। उसका पेट कितना बड़ा होगया जैसे किसी ने उसका पेट पर लात मारा और नही उसके पास पेट भरने का समान। उस पल में, वह गरीब और भूकी बच्ची जैसी लगती थी। राजा का चेहरा उतर गया और उन्होंने उसकी बेटी कि परवाह किया। परन्तु राजा और मैं भी बेवकूफ बन गए.... सुनो कैसे।

थोड़े वक्त के बाद, मंजील पर मैनें कैंडी का उपहार देखा, खोला और कैंडी को दो-तीन कैंडीयाँ खिलाया। वह बेहोशी से लौटी और रात में उसकी पेट भी कम होगायी। लेकिन आज तक हर रत, जैसे गुरुजी ने कहा कैंडी की जन्म पत्री देखकर, कैंडी सहसा उठ जाती है बड़ा पेट के कारण। वैसे मैं उसकी दासी हुँ इसलिए मुझे उसके कमरे में सोने पड़ती हुँ उसको कैंडी खिलाने के लिए।

तो फिर अंत में, राजकुमारी पलंगे के मध्य, मैं बाये बाजू, और कैंदीयाँ दायें बाजू। कल रात राजकुमारी का पेट फट गया जैसे बलून फट जाते है। ओहो मैंने कहा। पेट की बिमारी की आड़ में कैंडी हर रात को कैंडी खाती है उसने अपना उल्लू सीधा किया और मैं शर्म से गड़ गयी। आज राजा ने दूसरा बार राजकुमारी का नाम बदल दिया - पेटुमल राजकुमारी!


शुक्रवार, 23 जनवरी 2009

मिचिगन की सर्दी

मैं मिचिगन में तीन साल से पढ़ रहा हु और इस बार की सर्दी सबसे ज़्यादा कठोर है l इस साल बहुत ज़्यादा जल्दी ठण्ड हुई और लगता है की काफ़ी लंबे समय तक ठण्ड रहेगी l मैं दिल्ली का नागरिक हु और इतनी सर्दी की आदत मुझे नही है l मुझे लगा था की दो बार इधर की सर्दी में रह कर मुझे आदत पढ़ जायेगी लेकिन ऐसा नही हुआ l इस बार बहुत जल्दी ही तापमान -३० celsius पहुँच गया l एक ही दिन में करीबन ३ फ़ुट बर्फ गिरी l इस बार मौसम इतना ख़राब हुआ की आस पास के इलाकों में २ दिन बिजली भी नही थी एक बहुत तेज बर्फ के तूफ़ान की वजह से l मुझे इंतज़ार है जब मेरी यहाँ पर पढ़ाई समाप्त होगी और मन वापिस दिल्ली जा सकता हु जहाँ पर तापमान हमेशा शून्य के पर रहता है l

हजारों ख्वाहिशें ऐसी...

"हजारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले,

बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले."


प्रस्तुत पंक्तियाँ मिर्जा गालिब की ग़ज़ल से ली गयीं हैं. इन पंक्तियों में मिर्जा गालिब ने बड़ी ही सुन्दरता से मनुष्य के असंतोषी स्वभाव का वर्णन किया है.

मानव हिर्दय बड़ा ही लोभी और असंतोषी होंता है. उसके दिल में इक्छायें अकान्शाएं और अभिलाषाएं निरंतर जनम लेती रहती हैं,और उनका कहीं अंत नहीं होता है. मनुष्य जब किसी वस्तू, धन या मान मर्यादा को पाने की कामना करता है तो उसको पाने के बाद भी उसे संतोष नहीं होता है. फिर मनुष्य उससे ज़्यादा और बेहतर की कामना करने लगता है. उद्हारण के लिए, किसी मनुष्य के पास अगर घर नहीं है तो वह अपनी सर पर एक छत की कामना करता है. जब वह मिल जाता है तब फिर वह उससे बड़े घर, गाड़ी, बंगला नौकर चाकर सबकी कामना करने लगता है. इस तरह उसके अरमान जितने भी पूरे हों उसे कम ही लगते हों कहीं न कहीं मनुष्य की यही प्रकृति उसे सफलता की तरफ़ बढाती है.

इस प्रकार गालिब की ये पंक्तियाँ हमें यह सीख देती हैं कि हम ज़िन्दगी में ख्वाहिशें ज़रूर रखें लेकिन उनकी प्राप्ति के बाद उन पर संतुष्टठ होना सीख लें.

गुरुवार, 22 जनवरी 2009

"क्या सही और क्या ग़लत?"

क्या आप जानते हैं सही और ग़लत में अन्तर? क्या कभी आपका सही दूसरों को ग़लत और दूसरों का सही आपको ग़लत लगा है? अगर आपका जवाब 'हाँ' नही है तो वह बेशक एक सफ़ेद झूठ होगा | हम अपनी ज़िन्दगी का कितना समय दूसरों के सही-ग़लत को पकड़ने में लगा देते हैं | परन्तु सोचने वाली बात यह है की यह सही-ग़लत का ज्ञान हमें वैसे तो बचपन में अपने माता पिता या किसी धार्मिक किताब या फिर किसी कानूनी नियम के द्बारा शुरुआत में मिली थी परन्तु वक्त के साथ साथ हमारी ख़ुद की भी अलग सोच बनने लगी, वही सोच बदलने लगी और हालात भी बदलते गए , ऐसे में सही ग़लत का फ़ैसला किस तराजू में तोलकर किया जाए? इन सवालों के जवाब बेशक न आपके पास हैं और न ही मेरे पास | इस बात को यह कहके दफनाना सही होगा की हम इस दुनिया में दूसरों पर टिप्पणी करने नही आए हैं | सुनने में यह बात काफ़ी सरल और साफ़ सुनाई देती है परन्तु आप और मैं यह अच्छी तरह जानते हैं की ये सही ग़लत का दलदल कितना गेहरा और भयंकर है , अब क्या आप उसमे पड़ना चाहेंगे? नही ना ?

फेसबुक!!!

आज की पीढ़ी के नवीनतम लत फेसबुक है. आज हर स्कूल के बच्चे के पास एक फेसबुक का अकाउंट होता ही हैं . मुझे खुद फेसबुक बहुत ज्यादा पसंद है. इतना ज्यादा कि मैं आसानी से दिन मैं दो से तीन घंटा बैठ जाता हूँ. इतना ज्यादा पसंद हैं कि कक्षा में भी अपने लैपटॉप के सात बैठ जाता हूँ!!अमेरिका में आप भाषण के दौरान अपने लैपटॉप का उपयोग कर सकते हो! इसमे आप दूसरों के बारें में जान सकते हो! पच्क्मान ,पोकर वगैरा खेल सकते हो! जब कुछ काम नही होता है थो फ़िर नए लोगों के साथ बात कर सकते हो! अपने नए चित्र लगा सकते हो ! जब कोइ यात्रा के लिए जाता हूँ. तो पहले आकर मैं अपनी एलबम अद्यतन करता हूँ. यहाँ पर आप चत्तिंग भी कर सकते हो! अपने पुराने दोस्तों के सात बात करने का सबसे आसन तरीका हैं ऐसा मुझे लगता हैं.चलो अब थोड़े देर के लिए मैं फसबूक करने वाला हूँ! अगले हफ्ते तक अलविदा!!!

अपने बारे मैं

मेरा नाम आदित्य छाबरिया है. मई यहाँ मिशिगन मे मेकनिकल इंजीनियरिंग कर रहा हूँ. यह मेरा मिशिगन में दूसरा सेमेस्टर है. इंजीनियरिंग के पहले दो साल मैंने दक्षिण भारत मे मनिपाल नामक एक जगह में किया था. मैंने अपना पूरा जीवन बेंगलोर में गुजारा है. मेरे पिताजी बेंगलोर में पैदा हुए थे और माताजी मुम्बई में. मेरी एक छोटी बहन है जो अब बार्वी कक्षा मे पढ़ रही है.
मै हिन्दी दसवी कक्षा तक पढ़ा हूँ. पढने लिखने और समझने में मुझे कोई कठिनाई नही परंतु सिर्फ़ बातचीत करते समय मुझे हिन्दी बोलने में आत्मविश्वास नही. इसी आशा में मैंने यह कक्षा में पंजीकरण किया हूँ कि मै हिन्दी ठीक से बोल सकू.
मेरे शौक हैं गाने सुनना, गाड़ी चलाना, दोस्तों के साथ मस्ती करना और खेल कूद करना. मैं फिल्मो का बड़ा शौकीन हूँ. सबसे नई फ़िल्म जो मैंने दखी वोह घजनी है. मेरे अनुसार घजनी इतनी खूब नही. इससे बेहतर है स्ल्म्दोग मिल्लिओनर है जो मेरे अनुसार परदेसियों को भारत वर्ष में गरीबों के जीवन में कठिनाइयों कि झलक देता हैं.

इसी विषय पर में आप से विदा लेता हूँ. तब तक के लिए अलविदा.

बुधवार, 21 जनवरी 2009

बराक का बड़ा दिन

कल बहुत खुशी का दिन था क्योकि इस देश, अमेरीका, में बराक ओबामा नया राष्ट्रपति बन गए। उनके पहले, तैंतालीस राष्ट्रपति सफेद महल में रहे थे... लेकिन साथ-साथ नहीं! कल मैं सोच रही थी की बराक और उनके पत्नी पहेली रात उस महल में क्या करेंगें? मुझे लगा की जब रात पहुँचेगी तब दोनों बहुत थकें होंगें और मेरे ख़याल में, वे जल्दी से सोयेंगें... लेकिन सोने के पहले क्या सोचेंगें? शायद वे अपने आप से कहेंगें कि "आज हम सब लोगों ने इतिहास बनाया. आशा है की हमारे नये अधिपति ने काफी आराम मिला।

कल टीवी देख-देखकर, मेरी आंखे से कभी आंसू आगये और कभी मेरी दिल में हमारा देश की शान्ति के लिए प्रार्थना आजाता था। इस पल में, मेरा प्रार्थना है की बराक ओबामा उनका स्वधर्म करें और इस देशा की कटिनाइयाँ दूर करें। लेकिन बराक भी हमें याद दिलाते है कि इस देश का सुधार करने के लिए, हम अपने आप को बदलना चाहिये। उनका कहना है कि हमारे जीवन में जिम्मेदारी, महनत और साहस होना जरूरी हैं। जैसे पायलट ने हवाई जहाज का दुर्घटना में उनके सवारियों को बचा, वैसे हम भी दया और अभय से हमारा जीवन सफल होगा ।

आज तक आप भी कल के बारे में टीवी में देखा और सुना होगा । कहते है- कल वोशिंग्टन दी. सी. मॉल में दो करोड़ लोगों ने तंड में नया राष्ट्रपति का बड़ा दिन मना रहे थे। लोगो के चहरे पे तंड के इलावा खुशी थे और सब लोगो की मुस्कुराते से मैं भी पूरा दिन मुस्कुरा रही थी .

मंगलवार, 20 जनवरी 2009

प्रकृति से शिक्षा

प्रकृति हमें बहुत कुछ सिखाती है | अगर हम अपनी आँखें खोलकर अपने चारों ओर देखेंगे तो हमें पता चल जाएगा की प्रकृति हर रूप में हमारी शिक्षिका है एवं ज़िन्दगी के कई ज़रूरी बातें हमें प्रकृति ही सिखाती है | किसी कवि ने ठीक ही कहा है --

फूलों से नित हसना सीखो, भौंरों से नित गाना,
तरु की झुकी डालियों से सिखों शीश झुकाना |

कवि अपने पाठको से यही कहना चाहते हैं की जिस प्रकार फूल हमेशा मुस्कराते रहेत हैं एवं खिले हुए नज़र आते हैं, हमें भी उनसे यही प्रेरणा लेनी चाहिए एवं ज़िन्दगी में हमेशा हँसते-मुस्कराते रहना चाहिए | जिस प्रकार भवरे हर घड़ी गाते हुए नज़र आते हैं, उसी प्रकार हमें भी हमेशा हँसते गाते रहना चाहिए | अरथार्ट हमें ज़िन्दगी के हर पल को पूर्ण रूप से जीना चाहिए | कहने का भावः यही है की हमारे जीवन रुपी मार्ग में कई बाधाये आएँगी, परन्तु हमें उन्हें पार कर आगे बढ़ते रहना चाहिए एवं हमेशा खुश रहना चाहिए | कवि यह भी कहते हैं की जिस प्रकार वृक्ष अपनी डालियों को नीचे झुकाता है, उसी प्रकार हमें भी अपना सर नीचे झुकने से शर्माना नहीं चाहिए | कवि के कहने का भावः यह है कि अपना भूल स्वीकार करने में कोई बुराई नहीं है | हम अपनी भूल स्वीकार कर बड़प्पन दिखाते हैं | इस प्रकार अगर हम प्रकृति के सिखाये हुए सिद्धान्तों को अपने ज़िन्दगी का अंग बना लेते हैं तो हम सफलता की राह पर चलेंगे |

सोमवार, 19 जनवरी 2009

मेरी कमजोरी

मैंने दसवी कक्षा तक हिन्दी पढ़ा था. परन्तु मैं दक्षिणी भरतीय हूँ और मेरी हिन्दी बहुत कमज़ोर है. पड़ने, लिखने और समझने में कोई कठिनाई नहीं है पर बोलने में थोड़ी कमजोरी है. दसवी कक्षा तक हमारी परीक्षाओं में हमें निबंध लिखने पड़ते थे. इस कमजोरी को पराजय करने के लिए मैंने एक निबंधों का पुस्तक खरीद लिया और पहले से ही निबंधों को रट करने लगा. इस तरह मेरी भाषा में कोई उन्नति न हुई पर परीक्षाओं में अच्छे अंक मिलने लगे. मैं दुबई का रहने वाला हूँ और अरबी अच्छी तरह से आती है. मेरे माता पिता मद्रास के रहने वाले हैं और इस के कारण मुझे तमिल भी अच्छी तरह से आती है. भारत की राष्ट्रीय भाषा हिन्दी है और हिन्दुस्तानी होते हुए मैं शर्मिंदा हूँ कि मुझे हिन्दी अच्छी तरह से नहीं आती है. इस वजह मैं कॉलेज में हिन्दी की कक्षा लेना चाहता हूँ. इस तरह मेरी भाषा बढ़ जाएगी और मैं गर्व से बोल सकता हूँ कि मुझे हिन्दी में बात करने में कोई कठिनाई महसूस नहीं होती है.