रविवार, 14 सितंबर 2008

आतंकवाद

तेरह सितम्बर दो हजार आठ को दिल्ली मे पाँच ज़बरदस्त बम विस्फोटों ने त्राही-त्राही मचा दी। इन धमाकों के कारण इक्कीस बेकसूर लोग मारे गए और सौ से अधिक लोग बुरी तरह घायल हुए। इंडियन मुजाहिद्दीन नाम के आतंकवादी संगठन ने इन धमाकों के लिए ज़िम्मेदारी ली है।

मेरा पूरा परिवार दिल्ली मे रहता है। जैसे ही मैने बम विस्फोट की खबर सुनी, मेरा मन घबरा गया। खबर मिली थी कि धमाके अधिक आबादी वाले इलाकों में हुए थे। मैने तुरन्त अपनी माँ को फोन लगाया, परन्तु किसी कारण फोन लग नही रहा था। चिंतित होकर मैने लगतार पंद्रह मिनट तक फोन लगाया। ऐसी स्थिती मे एक क्षण भी अर्सा लगता है। अंत मे माँ से बात हो ही गयी और पता चला कि घर मे सब लोग ठीक हैं।

आतंकवादियों की कुछ माँगे होती हैं। वे चाहते हैं कि लोग उनकी माँगों को पूरा करें। वे सोचते हैं कि इन हादसों द्वारा उनकी आवाज़ सामाज तक पहुँचती है और लोग उनकी बात सुन्ने के लिए राज़ी हो जाते हैं। परंतु, उनकी सोच बिलकुल गलत है। इन हादसों से सामाज मे भय और आतंकवादियों के प्रति घृणा पैदा होती है। आतंकवादियों का उद्देश बीच मे कहीं खो जाता है। अंत मे बेकसूर लोगों को ही हानि पहुँचती है।

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