सोमवार, 29 सितंबर 2008

माता-पिता

सम्पूर्ण विश्व में माँ शब्द की व्याख्या करना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है बच्चा जब माँ के पेट में रहता है तब नौ महीने माँ को अनेक कष्ट उठाने पड़ते है फिर भी सभी कष्टों के बावजूद सुखद अहसास एवं स्वपनों के संसार में रहती है ताकि बच्चे की किलकारियाँ सुन सके। औरत को सम्पूर्णता का दर्जा तभी प्राप्त होता है जब वह माँ बन जाती है। माँ अपने बच्चों के लिए कठिनाई के समय दुर्गा, बच्चे को पढ़ाने के समय सरस्वती और अनेक रंग रूप, प्रेम भरने के लिए वात्सल्य की मूर्ति बन जाती है। मनुष्य तो क्या ईश्वर की भी जन्मदाती है। माताओं ने अनेक योद्धाओं को जन्म दिया और अपने देष, राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने प्यारे पुत्रों को भेजने का भी कार्य किया और वक्त आने पर देष पर न्योछावर भी कर दिया। माँ की ममता धरती से भी भारी है। माँ अपने सन्तान को पेट में खुन से सींचकर और पैदा होने पर अपना दूध पिलाकर पालन करती है और अपना सम्पूर्ण जीवन बच्चे का सुशिक्षित, सुयोग्य बनाने में न्योछावर कर देती है माँ का प्यार निस्वार्थ होता है माँ का प्यार सरोवर के स्वच्छ जल के समान है जिसे पीकर अति शीतलता प्राप्त होती है अगर बेटा पिषाच भी हो जाय तो भी माँ के द्वारा यह शब्द निकलते है।
‘‘ बेटा पिषाच बन जो ले कलेजा काट निकाल
तो भी उस कटे कलेजे से निकलेगा जीते रहो लाल‘‘
पिता का स्थान तो आकाश से भी ऊँचा है क्योंकि बेटे के लिए पिता के अरमान आकाष से भी ऊँचे होते है दूनिया में कोई भी किसी को अपने से आगे बढ़ता हुआ और ऊँचा उठता हुआ नही देख पाता है परन्तु एक पिता है जो अपनी संतान को अपने से ऊपर एवं बहुत ऊँचा देखना चाहता है तथा अपनी पूर्ण जिन्दगी संतानों के सुखों के लिए न्योछावर कर देता है।
‘‘धन्य है वे जो अपने माता-पिता का करते है मान
प्रभु भी करते है ऐसे लोगों का सम्मान‘‘

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