मंगलवार, 30 सितंबर 2008

इस हफ्ते

इस हफ्ते मुझे बहुत काम करनी है. हर दिन मुझे नाचने का अभ्यास है. अब मुझे दो डांस ग्रुप्स में है. पहला मेरी डांस टीम है, मिशीगन भंगरा टीम. में इस टीम का कप्टिन हु. हर साल हम कोम्पीटिशोंस में नाचते हे. दूसरा ग्रुप IASA में है, यानी इंडियन अमरीकन स्ट्दंट असोसिएशन. हर साल वे एक प्रोग्राम बनाते है. इस प्रोग्राम में दस डांस है. मुझे एक डांस में हु. मेरी डांस जिप्सी है. मुझे बहुत मजे अथी है. इस हफ्ते मुझे बहुत काम भी करनी है. अगले हफ्ते मुझे तीन परीक्षे है. में छुट्टी के लिए और इंतजार नही करनी.

‘बापू’

भारत के आज़ादी के आंदोलन ने बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों को जन्म दिया। मै बिना किसी आशंका के कह सकता हूं कि उनमें से सबसे प्रभावशाली थे हमारे राष्ट्रपिता, महात्मा गांधी। उनका जन्म 2 अक्तूबर, 1869 को हुआ था। बृहस्पतिवार को उनके जन्म की एक सौ उनचालीसवी सालगिरह है।

गांधी जी के सम्मान मे 2 अक्तूबर भारत मे राष्ट्रीय छुट्टी होती है। शहर-शहर मे लोग ‘बापू’ और उनके आदर्शों को याद करते हैं। दिल्ली मे राजघाट पर अन्य धर्म के लोग एक साथ मिलकर पूजा करते हैं। सभी धर्मों की पवित्र पुस्तकों से पाठ पढ़े जाते है।

बापू का सपना था कि हिंदु, मुसलमान, सिख, इसाई आदि धर्म के लोग भारत मे एक साथ अमन से रहें। आज़ादी के दिन उनका सपना टूट गया। आज़ादी के दिन, हिंदु और मुसलमानों के बीच दंगों के कारण सैकड़ो लोगों की जान गयी। उस दिन से हालात मे थोड़ा सुधार तो आया है, परंतु अभी भी दोनो धर्मों के लोगों के बीच तनाव की स्थिति बन जाती है। परंतु, बापू के जन्मदिन पर सब लोग अपने मतभेद भूलकर एक साथ उनके आदर्शों को याद करते हैं।

यही है हमारे राष्ट्रपिता की ताकत। उनका शरीर हमें बहुत साल पहले छोड़ गया, परंतु आज भी, केवल उनकी सोच हमारे देश को एक कर सकती है।

सोमवार, 29 सितंबर 2008

गुरू की महिमा

गुरू की महिमा को प्रत्येक धर्म एवं शास्त्रों में अनेक व्याख्यायें की गई है। गुरू ही सुशिक्षित कर मनुष्य को मनुष्य बनाते है तथा संयम से चलने और मर्यादाओं में रहने की राह बताते है अगर मनुष्य भर्यादाओं के भीतर नहीं रहेगा तो राह भटक जायेगा जिस प्रकार नदी जब अपनी मर्यादा से भटकने लगती है तो अपना स्वरूप खोने लगती है उसी प्रकार मनुष्य भी मर्यादाओं से नही बंधेगा तो संसार का स्वरूप नष्ट हो जायेगा। गुरू ही हमें ‘‘जीओं और जीने दो‘‘ का पाठ पढ़ाते है तथा सुयोग्य एवं ज्ञानवान बनाकर संसार को एक सही राह पर चलने के लिए पे्ररणा देते है ।
गुरू ही हमें गोविन्द अर्थात् परमात्मा से भी मिलाने का रास्ता बताते है इसलिए परमात्मा से पहले गुरू का सम्मान किया गया हैं। जिस राष्ट्र में गुरूओं का सम्मान नही होगा उस राष्ट्रª का पतन अवश्यभावी है।
राजाओं के समय में भी गुरूओं को सदैव उचित सम्मान मिलता रहा हैं यहाँ तक कि वो अपनी सभाओं में राज्य ज्योतिषी तथा नीतिगत राज्य चलाने के लिए धर्म गुरूओं को भी सभाओं में सर्वोच्च स्थान देते थे ताकि राज्य को नीतिपूर्वक चलाया जा सकें। आदि काल से गुरूओं को उचित सम्मान मिलता रहा हैं और गुरूओं के द्वारा ही बनायी गयी मार्गदर्शिता, मर्यादाये राष्ट्र का निर्माण एवं विकास करती रही। आज भी देश एवं राष्ट्र को सुदृढ़, सुसुक्षित एवं सुयोग्य बनाने में गुरूओं का भारी योगदान है।

माता-पिता

सम्पूर्ण विश्व में माँ शब्द की व्याख्या करना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है बच्चा जब माँ के पेट में रहता है तब नौ महीने माँ को अनेक कष्ट उठाने पड़ते है फिर भी सभी कष्टों के बावजूद सुखद अहसास एवं स्वपनों के संसार में रहती है ताकि बच्चे की किलकारियाँ सुन सके। औरत को सम्पूर्णता का दर्जा तभी प्राप्त होता है जब वह माँ बन जाती है। माँ अपने बच्चों के लिए कठिनाई के समय दुर्गा, बच्चे को पढ़ाने के समय सरस्वती और अनेक रंग रूप, प्रेम भरने के लिए वात्सल्य की मूर्ति बन जाती है। मनुष्य तो क्या ईश्वर की भी जन्मदाती है। माताओं ने अनेक योद्धाओं को जन्म दिया और अपने देष, राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने प्यारे पुत्रों को भेजने का भी कार्य किया और वक्त आने पर देष पर न्योछावर भी कर दिया। माँ की ममता धरती से भी भारी है। माँ अपने सन्तान को पेट में खुन से सींचकर और पैदा होने पर अपना दूध पिलाकर पालन करती है और अपना सम्पूर्ण जीवन बच्चे का सुशिक्षित, सुयोग्य बनाने में न्योछावर कर देती है माँ का प्यार निस्वार्थ होता है माँ का प्यार सरोवर के स्वच्छ जल के समान है जिसे पीकर अति शीतलता प्राप्त होती है अगर बेटा पिषाच भी हो जाय तो भी माँ के द्वारा यह शब्द निकलते है।
‘‘ बेटा पिषाच बन जो ले कलेजा काट निकाल
तो भी उस कटे कलेजे से निकलेगा जीते रहो लाल‘‘
पिता का स्थान तो आकाश से भी ऊँचा है क्योंकि बेटे के लिए पिता के अरमान आकाष से भी ऊँचे होते है दूनिया में कोई भी किसी को अपने से आगे बढ़ता हुआ और ऊँचा उठता हुआ नही देख पाता है परन्तु एक पिता है जो अपनी संतान को अपने से ऊपर एवं बहुत ऊँचा देखना चाहता है तथा अपनी पूर्ण जिन्दगी संतानों के सुखों के लिए न्योछावर कर देता है।
‘‘धन्य है वे जो अपने माता-पिता का करते है मान
प्रभु भी करते है ऐसे लोगों का सम्मान‘‘

रविवार, 28 सितंबर 2008

'ए वेडनेसडे': फिल्म समीक्षा

पिछले शनिवार मैने अपने मित्रों के साथ ‘ए वेडनेसडे’ नाम की पिक्चर देखी। निर्देशक नीरज पांडे का यह प्रथम निर्देशन प्रयास है, और मेरी राय मे यह पिक्चर इस साल की सर्वश्रेष्ठ पिक्चरों मे से एक है।
नसीरूद्दीन शाह, अनुपम खेर और जिम्मी शेरगिल ने पिक्चर के मुख्य चरित्रों की भूमिका निभाई है। कहानी एक बुधवार को मुम्बई मे दो से छः बजे के बीच होने वाली घटनाओं की है। एक आदमी (नसीरूद्दीन शाह) पुलीस कमिश्नर प्रकाश राठोर (अनुपम खेर) को फोन करके धमकाता है कि यदि 4 खतरनाक आतंकवादियों को छः बजे से पहले जेल से रिहा न किया जाए, तो वह मुम्बई मे जगह-जगह बम विस्फोट कर देगा। राठोर इस आदमी को रोकने की पूरी कोशिश करता है। अंत मे कहानी मे ऐसा घुमाव आता है जिस्से निर्देशक एवं अभिनेताओं की बेहतरीन कला का प्रदर्शन होता है।
यह पिक्चर आम हिन्दी पिक्चरों से काफी अलग है। न तो इसमे गाने हैं, और इसकी लम्बाई केवल डेढ़ घंटे की है। इस पिक्चर का मकसद है आम आदमी का दुनिया देखने का नज़रिया बदलना। इसको ज़रूर देखिए। शायद आपका नज़रिया भी बदल जाए।

शनिवार, 27 सितंबर 2008

चमड़ी

चमड़ी - एक ऐसी चीज़ जिसका अगर हम ख्याल न रखें, तो हमारे स्वास्थ्य पर काफी बुरा असर पड़ सकता है छोटी उमर में ही हमारी खाल पर वातावरण का पूर्ण रूप से असर पड़ता है ३ या ४ की उमर में जब हम तेज़ धुप में खेलने जाए तो सूर्य की किरणे हमारी त्वचा को ख़राब कर देती हैं और इससे हमारे चमड़ी पर तत्काल बुरा प्रभाव पड़ता है अगर हम क्रीम या वैसे सामान्य चीज़ें अपनी चमडी पर नहीं लगाएं तो दस साल बाद हमें बाहर जाने में शर्म आएगी और यह हमारे आत्मविश्वास को बिगड़ा सकता है

सेहद ख़राब होने की द्रष्टिकोण पर वापस लौटकर, हम यह कह सकते हैं कि ख़राब खाल से शरारीरिक असर ही नहीं परन्तु मानसिक असर भी पड़ता है देखें तो चमडी से सम्बंधित बीमारयों में एक आम वाला एक्जीमा है सिंगापुर में मेरी कक्षा में एक विद्यार्थी को इस बीमारी की बदकिस्मती थी और साफ़ साफ़ नज़र आता था कि वह अपने दैनिक कार्यों पर ध्यान नहीं दे पाता था कक्षा में बैठे वह अपनी चमडी को नोचता रहता था और दिन के अंत में उसे इतना गुस्सा आता था कि वह गृहकार्य समय पर पूर्ण नहीं कर पाता था अगर यह उसके मुश्किलों को प्रमाणित नहीं करता है तो आप उसकी परीक्षा की हालत सुनो एक दफा उसने आधे से कम परीक्षा ख़तम करके अध्यापक को पेपर दे दिया और जब उसे पूछा गया तो उसने एक ही पंक्ति में जवाब दी, " माफ़ कीजियेगा, मैं आधे समय खारिश कर रहा था"
बुरी चमड़ी हमारे शारीरिक और मानसिक योग्यताओं को ही ख़राब नहीं करती है परन्तु हमारे शरीर के दूसरे अंगों की योग्यताओं को भी ख़राब कर देती हैं कभी कभी चेहरे पे अगर मोटे मोटे ढेर उग जायें, तो देखने और सून्गने में अधिक कठिनाई आ जाती हैं और दिन ब दिन आसान कार्य पूरे करना उन लोगों के लिए असंभव हो जाता है
मैं बाहर हर माता पिता से निवेदन करना चाहूँगा कि छोटी उमर में ही अपने बच्चों की खाल की देखभाल करें ताकि उनके बच्चों और उनकों पछताना न पड़े!

मंगलवार, 23 सितंबर 2008

खेल का महत्व

ज़िन्दगी में अक्सर खेल के महत्व को हम ध्यान नहीं देते हैं खेल में भाग लेने से सबसे पहले तो हमारे स्वास्थ्य पर उत्तम प्रभाव पड़ता है भागने से या क्रिकेट और टेनिस खेलने से हमारी सास लेने की योग्यता २ या ३ गुना बढ़ जाती है इसके अलावा, हमारे शरीर में हमारे रक्त का परिसंचरण भी सुधर जाता है खेलों में भाग लेने से, हमारा दिमाग भी ठंडा रहता है अगर हम कभी काम से बहुत थक जाएँ या काम के बोझ से छूट न ढूंढ पाये तो फूटबाल की गेंद को लात मारकर हम अपने दिमाग के हर भाग पर फिर से काबू पा सकते हैं

स्वस्थ रहने के अलावा, खेल में भाग लेने से हम दोस्ती और विश्वास के सहानुभूतियों को बड़ा सकते
हैं अक्सर कहा जाता है की खेल से ही बन्दे का असली रूप दिख जाता है मैं इस छोटी कहावत को पूरी तरह से मानता हूँ क्योंकि मैंने अपनी आंखों से अपने ही दोस्तों को खेल के मैदान पर बदलते हुए देखा है यह शायद इसलिए होता है क्योंकि मैदान पर मुकाबले पर हर खिलाड़ी का दिमाग इतना व्यस्त रहता है की वह बिना सोचे अपने को पराया बना देता है परन्तु मैं मानता हूँ कि दिन के अंत में, अतिरिक्त समय एक साथ खेलने के पश्चात लोगों के बीच प्यार की सम्भावना बढती है और क्यों न कभी कभी यहाँ वहां असम्मति हो- दोस्ती लडाई से दुश्मनी तो नहीं बन जाती ना?

आज भी कुछ समाजों में खेल को उतना महत्व नहीं दिया जाता है जितना ज़रूरी है माता पिता आज भी चाहतें हैं की उनका बेटा क्रिकेट खिलाड़ी की जगह डाक्टर बने या फिर फुटबॉल मारने की जगह घर के शांत वातावरण में किताब पड़े मैं इनकी रायों का सम्मान ज़रूर करता हूँ लेकिन मैं नहीं मानता कि शिश्य के लिए पूरी तरह से खेल बंद करना चाहिए खेल के महत्व को समाज के हर व्यक्ति को समझना चाहिए और इस संदेश को प्रसारण करने में अगर मैं कुछ कर सकता हूँ तो निह्स्संकोच होकर करूंगा

सोमवार, 22 सितंबर 2008

यदि मै राजनेता होता तो क्या करता

यदि मै बहुत बड़ा राजनेता होता तो अपने देश के लिए कई महत्वपूर्ण एवं सामाजिक भलाई के लिए कार्य करता जिससे देश में फैली असामाजिकता, अनैतिकता, अराजकता, भुखमरी एवं असंतुलित पर्यावरण को दूर कर देता तथा शिक्षा का नया आयाम देता जिससे सभी को समान रूप से शिक्षा प्राप्त होती नये अनुसंधान केन्द्रो की स्थापना करता, जलाश्यों का निर्माण कराता, गन्दगी को समाप्त करता, साफ सुथरे भवनों का निर्माण कराना, धरती पर स्वर्ग जैस माहौल बनाना यही मेरा कर्तव्य होता और उसका पूर्णतया पालन धर्मपूवर्क करता। मेरे द्वारा किये गये कार्य का पूर्ण विश्व में असर दिखाई देता।

पर्यावरण

पर्या का अर्थ प्रकृति एवं वरण का अर्थ ग्रहण करना है अर्थात जो प्रकृति प्रदत्त हमें प्राप्त हुआ है, जैसे पेड़, पौधे, जल, पहाड़, नदी, झरने आदि। उसे उसी के रूप में स्वीकार करना। परन्तु आज का मनुष्य स्वार्थवश प्रकृति प्रदत्त को समाप्त करने में लगा हुआ है। जिसके कारण मौसम में भारी बदलाव आ रहा है। हो सकता है आने वाले समय में शहर के शहर पृथ्वी के भीतर समा जाये। हमारे पूर्वजों ने प्रकृति को करोड़ांे वर्षो से सहजकर रक्खा था। परन्तु दुख के साथ लिखना पड़ रहा है कि हम लोग 50 वर्षो में प्रकृति के साथ विध्वंसात्मक कार्यवाही निरन्तर किये चले जा रहे है जिसके दुष्परिणाम बहुत ही भयानक होगें।

रविवार, 21 सितंबर 2008

सन दो हज़ार पाँच की बात है। गणित की बोर्ड परीक्षा का दिन था। खबर मिली थी कि कुछ छात्रों ने छ्ल से परीक्षा के प्रश्न हासिल कर लिए थे। अखबारों के अनुसार, परीक्षा को टालने की काफी संभावना थी। सच कहूँ तो यह जानकर मुझे थोड़ी सी प्रसन्नता हुई, क्योंकि अब मुझे पढ़ने के लिए ज़्यादा समय मिलने वाला था। परन्तु, कुछ ही समय बाद हमारे विद्यालय के प्रधानाचार्य ने टेलीफोन करके बताया कि परीक्षा उसी दिन होने वाली थी।
मै घर से निकलने ही वाला था जब डाकिया आया और मेरे हाथ मे चिट्ठी दे गया। चिट्ठी मिशिगन विश्वविद्यालय से थी। मुझे उत्तेजना से पेट मे गुदगुदी होने लगी। गाड़ी मे बैठते ही मैने चिट्ठी खोली। जैसे ही मैने पढ़ा कि मुझे मिशिगन विश्वविद्यालय मे दखिला मिल गया है, मै फूला न समाया। मैने तुरंत अपनी माँ और भाई-बहन को टेलीफ़ोन करके खुशख़बरी सुनाई।
उस दिन के पाँच महीने बाद मै दिल्ली छोड़कर मिशिगन आया। यहाँ तीन साल कब और कहाँ बीते, मुझे पता ही नही चला। आज मै ज़िंदगी के अगले मुकाम पर खड़ा हूँ। इस बार मै आमदनी प्राप्त करने के लिए नौकरी ढूंढ रहा हूँ। परन्तु अर्थव्यवस्था की दशा के कारण, इस मुकाम को पार करना असंभव लग रहा है।

माया

आँखों में थी आशाएँ
चेहरे पर मुस्कराहट
पठरी पे रेल गाड़ी
और दिल मे केवल चाहत।

लोगों की नदियों मे
मै खड़ा था अकेला
इंतज़ार की घड़ी को
साहस से मैने झेला।

सूरज ढल रहा था
होने लगा अंधेरा
ढलती रोशनी मे
दिखा न उसका चेहरा।

जब कहीं नही दिखी वो
मन थोड़ा सा घबराया
नज़र इधर से उधर गयी
परन्तु उसको नही पाया।

एक घंटे तक मै वहाँ रुका
पर कहीं नही दिखी वो
सोचा घर जाकर देख लूँ
शायद वो आप निकल गयी हो।

बाहर निकला तो देखा तो
प्रत्यक्ष थी मेरी ‘माया’
खुशी से वो चीख उठी
और मुझको गले लगाया।

बुधवार, 17 सितंबर 2008

जल का महत्व

जल का जीवन से बहुत महत्वपूर्ण सम्बन्ध है। हमारे षरीर में तीन भाग पानी का है उसी प्रकार धरती पर तीन भाग जल का था जल के कारण हरियाली थी और हरियाली से आक्सीजन प्राप्त होती है परन्तु कुछ समय से कुछ देष इन्डस्ट्रीज तथा रिहायषी भवनों के नाम पर एवं गलत निर्णयों के कारण हरियाली का विनाष कर रहे हैं तथा जल का धरती से गलत दोहन किया जा रहा है। आने वाला समय जल के लिए महा युद्ध होगा तथा धरती की सतह चट्टान की तरह हो जायेगी जिसके कारण तापमान बढ़ता जायेगा तथा मनुश्य का कद एवं आयु घटती जायेगी।
(राहुल जैन)

जैन धर्म का महत्व

जैन धर्म में अहिंसा को परमो धर्म कहा गया है अर्थात हिंसा न करना परम धरम है। गांधी जी ने भारत में जो जीत दिलवाई वह अहिंसा धर्म का पालन करते हुए ही की थी। महावीर भगवान जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर थे उन्होंने प्रथम संदेष यह दिया कि ‘‘जियों और जीने दो’’ अर्थात खुद भी षान्ति से जियो और दूसरों को भी षान्ति से जीने दो।
जैन का अर्थ है जिसने स्वयं को जीत लिया और धर्म का अर्थ है जिस वस्तु का जो स्वभाव है उसे वेसा ही मानना धर्म है। जैन धर्म में दस धर्म का बहुत महत्व है इस दस धर्म को एक-एक दिन में बांटकर उसे भादव सूदी 5 से 14 तक विषेश मनाया जाता है इसमें प्रथम दिन में उत्तम क्षमा से षुरू होकर उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम सत्य, उत्तम षौच, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम अकिंचन एवं उत्तम बृहमचर्य है।
(राहुल जैन)

मंगलवार, 16 सितंबर 2008

पाठशाला

इस साल में एक जुनिर हु. मेने फेसला की दे मुझे स्य्कोलोगी में पदनी चाहए. मुझे तीन स्य्कोलोगी कक्षे ले रही हु. एक बिओस्य्कोलोगी है, दूसरा स्य्कोपेतोलोगी है, और तीसरा एक रीसर्च का कक्षा है. सरे कक्षे बहुत दिलचस्प है. इस हफ्ते मुझे एक परीक्षा है और एक कागज़ भी लिखनी है. लेकिन मुझे स्य्कोलोगी में बहुत शोक है, इसलिये मुझे इतना बुरा नही लगती. इस साल में मिशीगन भंगरा टीम का कप्टीन हु. इस का कारण मुझे बहुत जिम्मेदारिया है. लेकिन मुझे नाचने में बहुत शोक है. इस साल बहुत अच्छी होगी.

सिंगापुर या भारत?

मेरा जन्म भारत में हुआ था लेकिन पूरी ज़िन्दगी मैं सिंगापुर में रहा हूँ आप शायद सोच रहे होंगे कि वहां रहने से मेरे रीती-रिवाजों पर बुरा असर पड़ा होगा परन्तु मैं यकीन से कह सकता हूँ कि वहां रहकर निर्बल होने की जगह मेरे संस्कार के जड़ और भी मज़बूत हो गए हैं सिंगापुर एक ऐसा देश है जहाँ विभिन्न संस्किर्तियों के मिलने झुलने को प्रोत्साहन दिया जाता है और ऐसे नाना प्रकार लोगों के बीच रहकर मैं अपनी मान्यताओं को और गौर से समझ पाया हूँ सिंगापुर एक ऐसा देश है जहाँ दूसरे लोगों के बारे में समझकर ज्ञान पा सकते हैं और उनके आस पास रहने से उनके भोजन का स्वाद लेकर एक अनोखा अनुभव भी पा सकते हैंयह सभ मानने पर मैं यह तो नहीं कह रहा हूँ कि मुझे भारत पसंद या भारत से प्यार नहीं है हर साल मैं वापस भारत जाता हूँ ताकि मैं अपने जनम-स्थान में मज़ा ले पाऊँ. और मेरे सभी रिश्तेदारों के साथ समय बिता पाऊँ असल में मैं एक विदेशी लड़का हूँ लेकिन मेरा दिल आज भी भारतीय है परन्तु अगर आप मुझसे पूछें कि मैं अपनी बाकी ज़िन्दगी कहाँ बिताना चाहूँगा तो मैं एक ही जवाब दूँगा- और वो है सिंगापुर

सोमवार, 15 सितंबर 2008

आनन अर्बोर के पहले हफ्ते

यहाँ अपने कमरे में बैठा मैं गौर से सोच रहा था की दुनिया में किसी भी विष्य पे लिखने कि इजाज़त मिलने पर भी मैं सोच नहीं पा रहा हूँ कि इस हिन्दी ब्लॉग में क्या लिखूं तो मैंने सोचा कि मैं जिमी जॉन्स से एक रसीला सेंडविच आर्डर कर लूँ अभी मैं अपने कंप्यूटर के सामने बैठकर लिखने की कोशिश कर रहा हूँ और मैंने तय कर लिया हैं कि इस पहले ब्लॉग में मैं अपने आनन अर्बोर में पहले दो हफ्तों के बारे में बात करूंगा अठारह साल सिंगापुर में रहने के बाद मिशिगन में रहने का एहसास कुछ अलग ही है सबसे पहले तो सिंगापुर का मौसम यहाँ से बिल्कुल अलग है और ठण्ड का यह नया रूप देखेके तो मैं आश्चर्यचकित रह गया हूँ इसके इलावा, अम्रीका में लोग ज्यादातर गाय खाते हैं और एक सख्त हिंदू होके यह मुझसे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होता है इसके इलावा यहाँ के निवासी अपने खाने में मिर्च बिल्कुल नहीं डालते और एक भारतीय नर होकर, मैं इस खाने से नफरत करने लगा हूँ लेकिन मैं शायद कुछ ज़्यादा ही बोल गया हूँ क्योंकि मेरे आस पास के लोगों ने मुझे यहाँ अपना मानकर मुझसे अच्छी दोस्ती जोड़ ली है यहाँ की पार्टी का वातावरण भी काफी मस्त है और हफ्ते के अंत में बिना हिचाकिचाके कहीं भी मजे के लिए घर के बहार जा सकते हैं
मैं असल में काफ़ी खुश हूँ कि मैं यहाँ हूँ और मुझे यकीन हैं कि दो - तीन महीनों में मेरी दूसरे लोगों से दोस्ती जम जायेगी और मैं उत्सुकता से अगले हफ्तों की इंतज़ार करूंगा

रविवार, 14 सितंबर 2008

आतंकवाद

तेरह सितम्बर दो हजार आठ को दिल्ली मे पाँच ज़बरदस्त बम विस्फोटों ने त्राही-त्राही मचा दी। इन धमाकों के कारण इक्कीस बेकसूर लोग मारे गए और सौ से अधिक लोग बुरी तरह घायल हुए। इंडियन मुजाहिद्दीन नाम के आतंकवादी संगठन ने इन धमाकों के लिए ज़िम्मेदारी ली है।

मेरा पूरा परिवार दिल्ली मे रहता है। जैसे ही मैने बम विस्फोट की खबर सुनी, मेरा मन घबरा गया। खबर मिली थी कि धमाके अधिक आबादी वाले इलाकों में हुए थे। मैने तुरन्त अपनी माँ को फोन लगाया, परन्तु किसी कारण फोन लग नही रहा था। चिंतित होकर मैने लगतार पंद्रह मिनट तक फोन लगाया। ऐसी स्थिती मे एक क्षण भी अर्सा लगता है। अंत मे माँ से बात हो ही गयी और पता चला कि घर मे सब लोग ठीक हैं।

आतंकवादियों की कुछ माँगे होती हैं। वे चाहते हैं कि लोग उनकी माँगों को पूरा करें। वे सोचते हैं कि इन हादसों द्वारा उनकी आवाज़ सामाज तक पहुँचती है और लोग उनकी बात सुन्ने के लिए राज़ी हो जाते हैं। परंतु, उनकी सोच बिलकुल गलत है। इन हादसों से सामाज मे भय और आतंकवादियों के प्रति घृणा पैदा होती है। आतंकवादियों का उद्देश बीच मे कहीं खो जाता है। अंत मे बेकसूर लोगों को ही हानि पहुँचती है।

हिन्दुत्व - हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति अथवा जीवन दर्शन है जो धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को परम लक्ष्य मानकर व्यक्ति या समाज को नैतिक, भौतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक उन्नति के अवसर प्रदान करता है। हिन्दू समाज किसी एक भगवान की पूजा नहीं करता, किसी एक मत का अनुयायी नहीं हैं, किसी एक व्यक्ति द्वारा प्रतिपादित या किसी एक पुस्तक में संकलित विचारों या मान्यताओं से बँधा हुआ नहीं है। वह किसी एक दार्शनिक विचारधारा को नहीं मानता, किसी एक प्रकार की मजहबी पूजा पद्धति या रीति-रिवाज को नहीं मानता। वह किसी मजहब या सम्प्रदाय की परम्पराओं की संतुष्टि नहीं करता है। आज हम जिस संस्कृति को हिन्दू संस्कृति के रूप में जानते हैं और जिसे भारतीय या भारतीय मूल के लोग सनातन धर्म या शाश्वत नियम कहते हैं वह उस मजहब से बड़ा सिद्धान्त है जिसे पश्चिम के लोग समझते हैं । कोई किसी भगवान में विश्वास करे या किसी ईश्वर में विश्वास नहीं करे फिर भी वह हिन्दू है। यह एक जीवन पद्धति है; यह मस्तिष्क की एक दशा है। हिन्दुत्व एक दर्शन है जो मनुष्य की भौतिक आवश्यकताओं के अतिरिक्त उसकी मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक आवश्यकता की भी पूर्ति करता है। इसी को हिन्दुत्व कह्ते हैं ।

गुरुवार, 11 सितंबर 2008

नमस्कार। आप सभी का मेरे ब्लाग में स्वागत है। जैसे कि आप जानते ही होंगे, मेरा नाम विदुर है। मेरा जन्म छः जून 1987 को मिशिगन के लेनसिंग शहर मे हुआ था। दो महीने की उम्र मे ही मै अपने माता-पिता के साथ दिल्ली चला गया। दिल्ली मे मै संयुक्त परिवार मे रहता था। मेरे माता-पिता, भाई-बहन, चाचा-चाची, दो चचेरे भाई एवं दादा-दादी सब एक ही घर में रहते थे। संयुक्त परिवार मे रहने का मज़ा ही कुछ और है।घर मे हमेशा कोई न कोई रहता है। कभी अकेलापन महसूस नही होता।
दिल्ली मे हमारा शीला सिनेमा के नाम से सिनेमा घर है, जिसका मेरे दादाजी ने मेरी दादी के बाद नामकरण किया। वहाँ ज़्यादातर हिंदी पिकचरें ही चलती है। इसी कारण मै हिंन्दी पिकचरों मे बहुत रुची लेता हूँ।
मेरे अनुसार 'शोले' दुनिया की सबसे श्रेष्ठ पिकचरों मे से एक है। निर्देशन एवं अभिनय मे कोई खोट नही है। यदि आप ने अभी तक यह पिकचर नही देखी हो, तो मेरी राय माने और जल्द से जल्द इसे देखने का प्रय्त्न कीजिए।

बुधवार, 10 सितंबर 2008

मंगलवार, 9 सितंबर 2008

विम्बलडन: टैनिस एक लोक्प्रिय खेल जो दुनिया में हर देश में खेला जाता है । हर साल इस खेल के चार बड़ि प्रतियोगिताएँ होति हैं । इन्में सबसे बड़ी प्रतियोगिता विम्बलडन है जो हर साल जून के महीने के अन्त के आसपास होती है । इस प्रतियोगिता को जीत्न या इस्में खेल्ना ना सिर्फ़ मेरा पर दुनिया में हर टैनिस खिलाड़ी का एक सपना होता है । इस खेल को मैं चार बरस की उमर से खेल रहा हूं । जब भी यह प्रतियोगिता दूरदर्शन पर दिखाई जाती है मैं एक पागल के तरह हर मैच देख्ने की कोशिश कर्त हूं । इन लोगों को इस खेल को विम्बलडन के मैदान पर खेल्ते देख मुझमे अप्ने इस सप्ने को साकार कर्ने की इछा जाग जाती है । विम्बलडन को जीतने की खुशी को एक टैनिस खिलाड़ी के लिये दुनिया की सब्से बड़ी ऊंचाई पर पहुन्च्ने जैसा है । पर यह सिर्फ़ एक सप्ना है । क्यून्के इसे साकार कर्ने के लिये दुनिया में सब्से अवल दर्जे का खिलाड़ी होना आव्यशक है । उस दर्जे तक पहुन्च्ने के लिये सालों का अभियास की ज़रूरत है । रोजर फ़ेडेरर , पीट सैम्प्रास और बियोर्न ब्योर्ग तीन ऐसे लोग हैं जिनों ने यह सप्ना पान्छ से ज्यादा बार पूरा किया है।

शुक्रवार, 5 सितंबर 2008

श्रुति लेख #1

एक अनुमान के अनुसार हिंदुस्तान में लगभग पंद्रह सौ भाषाएँ बोली जाती हैं। यह भाषाएँ चार अलग-अलग भाषा परिवार से हैं। इस परिवार की ज्यादातर भाषाएँ आर्य भाषा परिवारों से हैं इनमें सबसे बड़ा परिवार आर्य भाषाओं का है। इस परिवार की ज्यादातर भाषाएँ संस्कृत से आई हैं। इसमें मुख्य रूप से हिन्दी, बांग्ला, उड़िया, पंजाबी, मराठी और नेपाली वगैरह हैं। दूसरा बड़ा परिवार द्रविड़ भाषाओं का है। इनमें बड़ी भाषाएँ तमिल तेलुगु, कन्नड़, और मलयालम हैं। भारतीय भाषाओं का तीसरा परिवार ऑस्ट्रो-एशियाई परिवार है। इसकी ज्यादातर भाषाएँ भारत के आदिवासी क्षेत्रों – झारखंड, उड़ीसा, और छत्तीसगढ़ के इलाक़ों में बोली जाती हैं। इनमें संथाली और हो बड़ी भाषाएँ हैं। चौथा परिवार तिब्बती-बर्मी भाषाओं का परिवार है। ये ज्यादातर भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में बोली जाती हैं। इनमें नगा सबसे बड़ी भाषा है। इसके अलावा हिंदुस्तान पर विदेशी हुक़ुमतों की वज़ह से अरबी, फारसी, अंग्रेज़ी, फ्रेंच, स्पैनिश, पुर्तगाली और डच भाषाओं का भी बहुत प्रभाव है।