बुधवार, 10 दिसंबर 2008

दक्षिण भारत यात्रा

मैं अपने माता-पिता एवं भाई बहन के साथ राजधानी एक्सप्रेस मंे बैंगलौर जा रहे थे। राजधानी टेªन मंे ऐसे भी सफर बहुत अच्छा लगता है रास्ते भर खाने पीने के लिए पूछते रहते हैं और यदि टेªन मंे अच्छे लोग मिल जाते हें तो सफर का आनन्द दुगना हो जाता है हमारे कोच में बढ़े, बच्चे, हम उम्र सभी लोग थे पेरेन्ट्स अपनी उम्र के साथ बात कर रहे थे मेरे सामने की सीट पर एक लड़की अकेले सफर कर रही थी जोकि मेेरे शहर की तथा मेरे घर के पास ही रहती थी मैं उससे पहले कभी नहीं मिला था रास्ते भर हम लोग अपने स्कूल कालेज की बातें करते रहे। स्कूल मंे किस तरह खेलते थे। छोटी-छोटी बातंे, यादंे जीवन के सफर मंे किस प्रकार आनन्द देती है। इस यात्रा मंे मैंने प्राप्त किया।
दूसरे दिन हम लोग बैंगलोर पहुँच गए वहाँ पर हम लोग वृन्दावन गार्डेन भी गए जोकि वहाँ का प्रसिद्ध गार्डेन है। वहाँ पर खूब इन्ज्वाय किया फिर हमलोग शांिपंग काम्पलैक्स भी गए। दूसरे दिन मैसूर के लिए रवाना हुए। और वहाँ का राज महल एवं कई स्थल देखे। वहाँ के सभी स्थल देखने योग्य हैं। उसके बाद हम लोग गोवा चले गए। जहाँ पर समुद्र का खूब आनन्द उठाया। वहाँ से हमलोग मुंबई लौटे रास्ते में टेªन टर्मिनलांे से होकर गुजर रही थी वहाँ का नजारा देखने योग्य था।

मंगलवार, 9 दिसंबर 2008

बीजी और पापा

इस महीने मेरे नाना और नानी का साठवह प्रतिवार्षिक तिथि है. लेकिन, में नाना और नानी नहीं कहते है. में अपने नाना, पापा बुलाती हैं, और अपने नानी, बीजी बुलाती हैं. मेरी बीजी शादी की जब वे सोलह साल की थी. दो साल बाद वे अपनी बड़ी मौसी को पैदा किए. फ़िर वे दो और लड़की और दो और लड़का हुए. वे सब, शादी करके, अम्रीका आ गए. फ़िर मेरे बीजी और पापा भी आ गए. अब वे तीस साल से यहाँ रहे. लेकिन, फ़िर भी वे एक घर चंदिघर में है. हर दिसम्बर, दो महीने हे लिए वे भारत जाते है. वे दोनों भारत ज्यादा अच्छे लगते. वे सिफत यहाँ अम्रीका में रहते हैं क्यूंकि उनके सरे परिवार यहाँ है.

मुंबई

आज कल भारत बहुत कठिन समय में हैं. दो हफ्ते पहले, मुंबई में बहुत आक्रमण थे. छत्रपती शिवाजी टर्मिनस, औब्रोई होटल, ताज महल पेलेस होटल, लिओपोल्ड कैफे, कामा होस्पिताल, नरीमन हॉउस (एक ओर्थोडोक्स जेविश का जगा), मेट्रो सिनिमा और टेम्स ऑफ़ इंडिया के पीछे आक्रमण हुए. मज़गओं डॉक्स में भी एक बम विस्फोट था. एक सो अठासी लोग मरे और तीन सो तिरानवे लोग चोट हुए. हिन्दुस्तानी सरकार कहते है की पाकिस्तानी लोग उत्तरदाता हैं. कोई नहीं जानते अब क्या होगा. कोई कहते है की भारत पाकिस्तान के सात लड़ाई होंगे. हम बस इंतजार कर सकते है.

जाड़ा

अज कल मोसम बहुत ख़राब है. मुझे जाड़ा बिल्कुल पसंद नही करती. बहुत ठंडा है और बहुत बर्फ पड़ता हैं. जब यह होता है, तो फिर क्लास जाने बहुत मुश्किल है. सायद वाक्स अनिश्चित होता है और पैदल जाना बहुत कठिन हैं. गाड़ी चलाना मुश्किल भी होती है, क्योंकि सड़क भी अनिश्चित होता हैं. अक्सीद्न्ट्स बहुत होता है, और लोग मरते हैं. और, क्यूंकि बहुत ठंडा हैं, लोगो बीमार होता हैं. खाँसी आती हैं, नक् चलता हैं, और बुखार परता हैं. जाड़ा में सिर्फ़ दो चिसे अच्छी होती हैं. और वे बर्फ की आदमी और बर्फ की लड़ाई. बर्फ की आदमी बनाना और बर्फ का लड़ाई बहुत मज़े आते हैं.

सोमवार, 8 दिसंबर 2008

हिन्दी कक्षा पर विचार

अमरीका मे तीन साल लगातार रहने से मेरी हिन्दी काफ़ी बिगड़ गई थी। हाँ, मै अपने दोस्तों से हिन्दी मे ज़रूर बातचीत करता था, परन्तु मेरी भाषा की शुद्धता, जिसपर मुझे अधिक गर्व था, कहीं गुप्त हो गई थी। मेरे मुताबिक इसकी वजह है कि मिशिगन विश्वविद्यालय के भारतीय विद्यार्थी भारत के हर कोने से हैं। भारत के अलग-अलग प्रांतों मे हिन्दी बोलने का ढंग एक समान नही होता। तीन सालों के दौरान, मैने अंजान मे हिन्दी बोलने के अलग ढंग अपनी भाषा मे अपना लिए।
फिर सितंबर मे मैने हिन्दी कक्षा मे दाखिला लिया। सच कहूँ तो मैने सोचा ही नही था कि चार महीनों मे मेरी हिन्दी मे ज़्यादा सुधार आएगा। परन्तु, आज मुझे साफ़ दिख रहा है कि हिन्दी लघु कथाएं पढ़ने से और ब्लाग लिखने से मेरी हिन्दी मे काफ़ी सुधार आया है। शुरू-शुरू मे मुझे ब्लाग लिखने मे काफी समय लग जाता था, परन्तु अब, मै कम समय मे 200 शब्द का ब्लाग लिख लेता हूँ।
मै इंजीनियरिंग पढ़ रहा हूँ और लगातार इंजीनियरिंग पढ़ने से मन सूख जाता है। हिन्दी पढ़ने से मुझे हफते मे कुछ घंटों के लिए इंजीनियरिंग से छुटकारा मिल जाता है। देखा जाए तो मै बहुत ही खुश हूँ कि मैने हिन्दी कक्षा मे दाखिला लेने का फैसला किया।

शेयर बाजार

शेयर बाजार एक अनिश्चितता का बाजार है इस बाजार में वस्तुओं का आदान-प्रदान नहीं होता है बल्कि यहां पर कम्पनीयों के शेयर लिस्टेड किये जाते हैं। जिससे कम्पनीयां सीधे तौर पर जनता से जुड़ सके तथा शेयर देकर रूपया ले सकें और उन्हें जनता का भागीदार बनाया जा सके, इससे कम्पनीयों पर भी ब्याज का बोझ न पड़े और जिससे देश का विकास हो सके।

परन्तु शेयर बाजार सच पर आधारित नहीं होता है बल्कि अफवाहों के ऊपर चलता रहता है। नेताओं की बयानबाजी के ऊपर भी चलता है नेताओं की बयानबाजी का विश्शण किया जाता है और उसी से बाजार ऊपर नीचे होता रहता है बहुत सी कम्पनीयां घाटे में होने के बावजूद शेयर उसका ऊपर रहता है जबकि किसी कम्पनी का अच्छा रिजल्ट आने पर भी उसका शेयर नहीं बढ़ता है कई कम्पनियां बाजार से रूपये उगाहने के लिये कुछ साल तक अच्छा प्राॅफिट दिखाती रहती है परन्तु रूपये उगाहने के बाद घाटा दिखाने लगती है, इसमें सरकार के अफसरों का भी सहयोग मिलता रहता है।

यह बजार जोखिम से भरा हुआ है तथा कुछ स्वार्थी तत्वों के कारण अपनी गरिमा खोने लगता है तथा कुछ कम्पनियां भी इस कार्य में अप्रत्यक्ष तौर पर शामिल हो सकती हैं।

दार्जलिंग एवं सिक्किम यात्रा

सन् 2005 में अपने-अपने माता-पिता एवं बहन तथा कुछ परिवारिक सदस्यों के साथ दार्जलिंग के लिए सिलीगुड़ी से रवाना हुआ। रास्ते में हरी-हरी वादियां खेत धरती पर स्वर्ग जैसा महसूस हो रहा था रास्ते में छोटी ट्रेन मिली जोकि हम लोगों के साथ-साथ चल रही थी बहुत ही मनमोहक दृश्य लग रहा था। हम लोग दार्जलिंग में होटल मं ठहरे वहां से माल रोड़ का नजारा दिखाई दे रहा था हम लोग रवाना खाकर रात में माल रोड घूमने गये दूसरे दिन बाजार घूमते रहे। हम लोग तीसरे दिन फाॅल देखने गये जोकि दर्जलिंग से करीब 3000 फिट नीचे था इस दृश्य का बयान करना एक पेज में असम्भव सा है बहुत खुबसूरत नजारा लग रहा था यहां पर दो तीन घंटे बिताने के बाद चूंकि हम लोगों को सिक्किम भी जाना था। सिक्किम के लिए रवाना हो गये रास्ते में छोटे-छोटे झरने, हरी-हरी वादियां, घुमावदार सड़के तथा रास्ते में एक इंजीनियरिंग कालेज बहुत ही खूबसूरत लग रहा था।

सिक्किम में तीन दिन रहे दूसरे दिन हम लोग चाइना बार्डर, एक सेनानी का मन्दिर जोकि देखने लायक था कहा जाता है कि यह सैनिक अपनी हर माह तन्खवाह लेने आता है जबकि उसे मरे हुए कई साल बीत चुके है उसके कपड़े जूते सभी कमरे में लगे हुए थे जो कि फ्रेश लग रहे थे यह सब देखने के बाद हम लोग वापस गैंगटोक के लिये रवाना हो गयेे रास्ते में एक जगह सड़क धस गयी थी जिसमें हम लोग एवं अन्य लोगों ने भी पत्थर उठा-उठाकर सड़क बनाने की कोशिश की इतने में सरकारी गाड़ी सड़क बनाने के लिये पहुंच गयी और हम लोग बहुत किनारे-किनारे से गाड़ी को निकालते हुये गैगटोक पहुंच गये दूसरे दिन गैगटोक घूमे और बाद में सिलीगुड़ी के लिये वापस रवाना हो गये।

भारत की मुद्रा का मूल्य

भारत देश की मुद्रा का मूल्य निरन्तर डालर की मुद्रा से गिरता चला जा रहा है। वर्तमान समय में 1 डालर बराबर रू0 51.00 के बराबर हो गया है जो कि एक साल पहले रू0 40.00 के आसपास चल रहा था। इससे यह दर्शा रहा है कि भारत की मुद्रा का वेल्यू गिर रहा है।

यह भारत के नेताओं का एवं अफसरों का मानना है कि मुद्रा का वेल्यू घटने पर निर्यात ज्यादा होगा हालाकि यह कुछ लोगों को फायदा पहुंचाने जैसा है इसके बाद भारत सरकार आयात करती है उसमें ज्यादा रूपया देना पड़ता है जैसे कि कच्चा तेल, सोना, चाँदी इसमें सबसे ज्यादा रूपया भारत सरकार को देना पड़ता है जिसके कारण महंगाई ज्यादा बढ़ती है तथा सरकारी कोष पर भारी दबाव बनता रहता है फलस्वरूप भारतीयों कों निर्यात ज्यादा करना पड़ता है तथा खाने के सामान आदि अधिक निर्यात करने पड़ते है। जिसके कारण गरीब और गरीब बनता है तथा धनवान अधिक धनवान बनते जाते हैं। गलत नीतियों के कारण देश को नुकसान पहुंचता है उसे बाद में ग्लोबल का ढ़ांचा पहना दिया जाता है।

रविवार, 7 दिसंबर 2008

ताजमहल

विश्व में जिन सात आश्चार्यों की बात कही जाती है उनमे ताजमहल का नाम भी सम्मिलित है। प्रेम का प्रतीक आगरा का ताजमहल जिसे मुगल बादशाह शाहजहा ने मुमताज महल की याद मे बनवाया था। इमारत की परिकल्पना एवं बनावट मुगलकालीन शिल्प का एक अद्भूत नमूना है। ताजमहल आगरा में यमुना नदी के दाहिने तट पर स्थित है। सफेद संगमरमर से निर्मित ताजमहल का सौन्दर्य चांदनी रात में सबसे ज्यादा होता है। ताजमहल पूर्णिमा की रात चन्द्रमा की किरणों के साथ चकता दिखाई देता है इसके बाहर बहुत ऊचा और सुन्दर दरवाजा है। बुलन्द दरवाजे के नाम से प्रसिद्ध यह दरवाजा सुन्दर लाल पत्थरों से बना है। इसकी गिनती संसार की सुन्दर इतारतों में की जाती है।
मुमताज महल के कारण ही इसका नाम ताजमहल प्रसिद्ध हुआ। यह अपूर्व सुन्दर स्मृति भवन आगरा मे यमुना नदी के तट पर स्थित है। इसमें प्रवेश करने के लिए एक विशाल पत्थर से बने दरवाजे से होकर जाना पड़ता हे जिस पर पत्थर से कुरान शरीफ लिखी है। ताजमहल जितना भव्य दिखता है उससे कही ज्यादा खुबसूरत होती है यहा शरद पूर्णिमा की रात, दूर आसमान मे जब चादनी विखेरता चाॅद जब ताजमहल के ऊपर से गुजरता है तो लाल और हरें रंग के ये पत्थरों की आभा चांदनी रात में हीरें सी हो उठती है।

शनिवार, 6 दिसंबर 2008

कभी कभी मुझे यकीन ही नही होता कि कुछ ही हफ्तों मे मेरी बहन की शादी होने वाली है और मेरे भाई 4 साल से शादी शुदा हैं। एसा लगता है कि कल ही मै और मेरे भाई-बहन पाठशाला मे थे। परन्तु वह एक दूसरा समय था।
जब मै ग्यारहवीं कक्षा मे था, मेरे बड़े भाई ने शादी कर ली और वे अमरीका मे बस गए। मेरी भाभी मेरे भाई के साथ ही पाठशाला गई। पाठशाला पूरा करने के बाद, दोनों ने कालेज मे कम्प्यूटर विज्ञान पढ़ा। वे सेन-फ्रेनसिसको मे रहते हैं, और जब भी मुझे कालेज से फुरसत मिलती है, मै उन्हें मिलने जाता हूँ। मेरी भाभी बहुत ही अच्छी गायक है, और पिछले साल उन्होंने अपनी पहली एलबम (एलबम का नाम है ‘देविका’) रिलीज़ की। यदि आपको मौका मिले तो ज़रूर उनके गानों को सुनें; वे ‘आई ट्यून्स’ और ‘यू ट्यूब’ पर उपलब्ध हैं।
मेरी बहन ने अप्रैल मे शादी करने का फैसला कर लिया। मुझे यह खबर सुनकर बहुत खुशी हुई, परन्तु थोड़ा सा दुख भी हुआ क्योंकि अब घर का माहौल बदलने वाला है। मेरी बहन के बिना, घर बहुत ही सूना हो जाएगा। या तो मै, या मेरे बड़े भाई दिल्ली वापस लौट जाएँगे ताकि मेरी माँ को अकेलापन महसूस न हो।

मनोरंजन

दिनभर कार्य करने से शारीरिक थकान के साथ-साथ मानसिक थकान भी हो जाती है। इसके अलावा लगातार कार्य करने से आदमी कार्य से उकता जाता है। थकावट व उकताने से निजात पाने के लिए मनोरंजन के साधन होना जरूरी हैं। मन के स्वस्थ विकास के लिए भी मनोंरजन की आवश्यकता होती है। प्राचीन काल में मनोरंजन के साधन सीमित थें, लेकिन वर्तमान वैज्ञानिक युग मे मनोंरजन के साधन अधिक हो गये है। इनमें सबसे नवीनतम मनोरजंन का साधन इंटरनेट भी है।
हर एक व्यक्ति की रूचि अलग-अलग होती है। वह अपनी रूचि के अनुसार ही मनोरंजन करता है। मनुष्य जब काम करते-करते थक जाता है तो उसे अपने कामों से अरूचि होने लगती है। इस अरूचि को विश्राम या फिर मनोंरजन से दूर किया जा सकता है। मनोरंजन शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। मन का रंजन अर्थात मन का आनन्द। मनोरंजन को मनोविनोद भी कहा जाता है।

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008

थैंक्सगिविंग की छुट्टी

मेरी थैंक्सगिविंग की छुट्टियॉ बहुत ही मज़ेदार थी। मेरी एक बहुत ही पुरानी मित्र (जिसका नाम है मृणालिनी) मुझे मिलने एन आर्बर आई। मृणालिनी यूनिवर्सिटी आफ टेक्सस मे अर्थशास्त्र पढ़ रही है। गर्मी की छुट्टियों मे उसने ‘गोल्डमन सेक्स’ नाम की कम्पनी के साथ काम किया। कालेज खतम करने के बाद वह उन्हीं के साथ नौकरी करेगी।
मैने थैंक्सगिविंग की छुट्टियों के समय पहली बार गाड़ी किराये पर ली। गाड़ी होना इतना आरामदायक हो सकता है; मैने कभी सोचा भी नही था। न तो बस पर निर्भर करना पड़ता है और न ही एक जगह से दूसरी जगह जाने मे पूरा दिन निकल जाता है।
चूंकि थैंक्सगिविंग के दिन भोजनालय बंद होते हैं, हमे घर पर खान पकाना पड़ा। दोस्तों के साथ खान पकाने मे बहुत मज़ा आता है। हमने पाँव भाजी और चाकलेट केक बनाया। दोनो बहुत ही स्वादिष्ट निकले।
शनीवार को मै मृणालिनी को लेनसिंग मे वह घर दिखाने ले गया जहाँ मेरा जन्म हुआ था। उस घर मे मेरे दादाजी का बहुत ही जिगरी दोस्त रहता है। मै उन्हें अपना संरक्षक मानता हूँ। वे हमेशा मुझे मेरे दादाजी के बारे मे बहुत से मनोरंजक किस्से सुनाते हैं। मै उन्हें प्रतिवर्ष थैंक्सगिविंग के समय मिलता हूँ, और वे मुझसे मिलकर बहुत ही खुश हो जाते हैं।
मैने देखा है कि अमरीका मे बुज़ुर्ग लोग बहुत ही अकेलापन महसूस करते हैं। उनके बच्चे उन्हें ज़्यादा महत्त्व नही देते। मुझे यह बिलकुल अच्छा नही लगता, और इसलिए, जब भी मुझे मौका मिलता है, मै अपने संरक्षक को मिलने लेनसिंग चला जाता हूँ।

नाना-नानी से लगाव

मै हमेशा अपने नाना और नानी के बहुत करीब रहा हूँ। जब मै 7 साल का था, मेरी माँ को दो महीनों तक काम के लिए अमरीका जाना पड़ा। मै उन दो महीनों के लिए अपने नाना-नानी के साथ रहा।
हर सुबह छः बजे मेरे नाना सैर करने जाते थे। मै उनके साथ-साथ साइकिल पर जाता था। हम ‘डीयर पार्क’ मे एक घंटे तक सैर करते थे। सैर के बाद हम घर आकर नानी के साथ स्वादिष्ट परांठे या चीले खाते थे। नाश्ते के बाद मेरे नाना हमेशा किसी काम मे लगे रहते थे और मै उनकी मदद करता था। उनही के साथ मैने आरी चलानी सीखी और गाड़ी की मरम्मत करनी भी सीखी। कभी कभी हम सब क्लब के पुस्तकालय मे भी जाते थे।
मेरे नाना भारतीय नौसेना के ‘वाईस एडमिरल’ थे। वे 1971 की जंग मे लड़े थे और उनके उत्तम नेतृत्व के लिए उन्हें महा वीर चक्र मिला। उनके घर मे जगह जगह पुरस्कारों को देखकर मै बहुत खुश हो जाता था।
दोपहर को जब मेरे नाना और नानी सोते थे, मै दूरदर्शन देखता था। हमारे घर मे मेरी माँ ने केबल नही लगाया था, और नाना-नानी के यहाँ केबल देखने मे मुझे बहुत मज़ा आता था।
मै अपने नाना को पिता के समान मानता था। माँ के लौटने के बाद भी मै हर हफते एक रात अपने नाना-नानी के घर मे बिताता था। वे दोनो बहुत ही अनुशासित तरीके से रहते थे। मै अपने जीवन मे उनका अनुशासन शामिल करने का बहुत प्रयत्न करता हूँ।

मुम्बई पर हमला: भाग 2

सुबह चार बजे तक थल सेना के फौजियों ने बहुत से बंधकों को रिहा कर लिया, परन्तु इस दौरान तकरीबन 100 बंधक मारे गए। हैरानी की बात यह है कि थल सेना के सिपाही इन आतंकवादियों को दो दिन तक नही पकड़ पाए। मेरी राय मे इसकी दो वजह हो सकती है; पहली कि संचार माध्यम के कारण आतंकवादियों को समय से पहले ही फौजियों की चाल का ज्ञान था, और दूसरी वजह हो सकती है कि सारे होटल इतने बड़े थे कि आतंकवादियों को वहाँ ढूँढना गेहूँ के खेत मे सूई को ढूँढने के समान माना जा सकता है।
27 नवंबर को दोपहर तक 200 बंधकों को ताज होटल से रिहा कर लिया गया था और ओबराय और ट्राईडेंट होटल मे बम विस्फोट हो चुके थे। एक आतंकवादी ज़िन्दा पकड़ा गया था। रात के दस बजे ताज होटल मे दोबारा बम विस्फोट हुआ। 28 नवम्बर को नारिमन हाऊस मे तीन विस्फोट हुए जिनके कारण सभी बंधक मारे गए (केवल एक छोटा बच्चा बच गया)। 29 नवम्बर को आतंकवादियों के साथ घमासान मुठभेड़ के बाद फौजी विजयी हुए।
इस घटना के बाद पूरे भारत मे भय फैल गया है। जनता सरकार से बहुत दुखी है। चूंकि पकड़े हुए आतंकवादी ने पाकिस्तान से होने का दावा किया है, भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बहुत ही बढ़ गया है। वाकई भारत मे स्थिति अभी बहुत ही नाज़ुक है।

मुम्बई पर हमला: भाग 1

पिछले हफ़्ते मुम्बई मे आतंकवादियों द्वारा रचे गए हमलों ने पूरी दुनिया मे हलचल मचा दी। यह भारत के इतिहास मे पहली घटना थी जहाँ आतंकवादियों ने लगातार तीन दिनों तक हमले किए। उनहोंने एक अस्पताल को, सिनेमा घर को, यहूदी मंदिर को और बड़े होटलों मे पर्यटकों और अमीर लोगों को निशाना बनाया ताकि संचार माध्यम उनपर ज़्यादा ध्यान दे, और पुरी दुनिया को उनके कारनामों की जानकारी मिले।
मुम्बई पुलिस का मानना है कि 26 नवम्बर को रात के दस बजे तकरीबन 25 आतंकवादियों ने अरब महासागर से मुम्बई मे प्रवेश किया। मुम्बई मे पाँव रखते ही उन्होंने पुलिस की गाड़ी चोरी कर ली। गाड़ी मे सवार होकर उन्होने मुम्बई पुलिस पर गोलियॉ चलाई, जिसके कारण दो वरिष्ठ अफसर और ए.टी.एस के चीफ़ मारे गए। आतंकवादियों ने छत्रपति शिवाजी स्टेशन मे भी आम लोगों पर गोलियाँ चलाई।
जिसके पहले पुलिस इन आतंकवादियों का मकसद पता चला सकी, उन्होंने ताज, ओबराय और ट्राईडेंट होटल और नारिमन हाऊस पर कब्ज़ा कर लिया और बहुत से लोगों को बंधक ले लिया। कुछ ही समय बाद ताज होटल की सबसे ऊँची मंज़िल पर बम विस्फोट हुआ। 27 नवम्बर की सुबह के दो बजे, भारतीय थल सेना मुम्बई पहुँची ताकि आतंक्वादियों को जल्द से जल्द पकड़ा जा सके।

सोमवार, 1 दिसंबर 2008

मुम्बई धमाका

मुम्बई धमाका, दिनांक 28 नवम्बर 2008 को निदोर्षों का मारा जाना, यह पुनः साबित करता है कि सरकार खुद ही नहीं चाहती है कि इस समस्या का समाधान हो उनके मंत्रीवर ही जब यह बोलते हैं कि आतंकवादी बिगड़े हुए भाई बन्ध है तथा बड़े शहरों में तो यह होता ही रहता है तो आतंकवाद को तो बढ़ावा मिलेगा ही। आतंकवादी कभी किसी के भाई एवं मित्र नहीं होते हैं। आतंकवाद का अर्थ ही यही है कि हिंसा करना, फैलाना जिससे उनके द्वारा किये गये कृत्य से मानव भयभीत रहे ओर देश का विकास रूक जाये।

आतंकवाद को तो वैसे परिभाषित करना सरल नहीं है। क्योंकि कोई पराजित देष स्वतन्त्रता के लिए शस्त्र उठाता है तो वह विजेता के लिए आतंकवाद होता है। वर्तमान में आतंकवाद को बढ़ावा देने में विश्व भर का जाने अनजाने में सहयोग हो रहा है।

मुम्बई बम धमाका 59 घण्टे तक मात्र 10 आतंकियों के द्वारा किया गया बहुत ही बड़ी आतंकी हमला था अगर इस आतंकवाद का निराकरण बहुत सख्ती से नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब भारत के सारे शहर एवं सम्पूर्ण विश्व इस आग की लपेट में घिर जायेगा।

धन बुरा नहीं है परन्तु धन का उपयोग किस प्रकार किया जाय उस पर निर्भर करता है जैसे एक साधु के पास धन आयेगा तो वह आत्म कलयाण के लिए होता है व्यापारी के पास धन आता है तो व्यापार बढ़ाने के लिए अधिक होता है। नेता के पास अधिक धन आने पर स्वयं के लिए उपयोग होता है और आतंकियों के पास धन आता है तो उसका उपयोग सर्वथा दुरूपयोग के लिए होता है हिंसा के लिए होता है मानव जाति को डराने एंव मारने के उपयोग में होता है।

बेरोजगारी की बढ़ती समस्या

बेरोजगारी की समस्या को हल नहीं किया गया तो देश में सामाजिक असंतोष फैल सकता है। प्रत्येक देश के लिए बेरोजगारी एक भयंकर समस्या है। रोजगार व्यक्ति जहां समाज में उत्पादन वृद्धि में योगदान करता है वही बेरोजगार व्यक्ति अर्थ-व्यवस्था पर बोझ बन जाता है बेरोजगारी मनुष्य के आत्मविश्वास को खोखला कर उसमें हीनता भर देती है इस प्रकार मनुष्य निराशवादी हो जाता है और उसके मन में समाज के प्रति आक्रोश उत्पन्न होने लगता है और आगे चलकर सामाजिक असंतोष का कारण बनता है।

देश में लूटपाट, चोरी, डकैती, हत्या, फिरौती के लिए अपहरण जैसे अपराधों में बढ़ोत्तरी बेरोजगारी के कारण ही हो रही है।
वर्तमान में अर्थव्यवस्था की मार सबसे अधिक विकासशाील देशों को भुगतनी पड़ रही है और आगे बहुत अधिक भुगतना पड़ेगा क्योंकि विकासशाील देशों में पैसा सही कार्योे में पूरा खर्च नहीं हो पा रहा है अधिकतर पैसे का दूरूपयोग हो रहा है और रूपयो की उगाई में टैक्स पर टैक्स लगाया जाता है जिससे महंगाई बढ़ती चली जा रही है सबसे अधिक कठिन समय मध्यम वर्ग के लिये हो रहा है।

गुरुवार, 27 नवंबर 2008

मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर

भारतीय क्रिकेट की शान व विश्व के नम्बर एक बल्लेबाज का रूतबा रखने वाले मास्टर बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर ने बहुत ही कम समय व उम्र में क्रिकेट में ऐसे रिकार्ड बना डाले है जिन्हे तोडना इतना आसान नही था। रन बनाने व नये कीर्तिमान बनान की भूख अभी उनकी मिटी नही है। क्रिकेट इतिहास के स्वर्णिम पन्नों पर वे अपना नाम दर्ज कर चुके हैं। सन् 1989 में अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में सचिन का कदम रखना तमाम भारतीयों के मस्तिष्क आज भी कैद हैं। बीते वक्त में हमेशा भारतयी की उम्मीदों की पतवार सचिन का बल्ला ही बना है। यही वजह है कि आज भी सचिन ने कहा था कि-मै आगे खेलना और सिर्फ खेलना चाहता हॅू। मै अब तक जो चाहता रहा वह मुझे मिलता रहा। क्रिकेट के बिना मै जीवन की कल्पना भी नही कर सकता।

भारतीय क्रिकेट की शमां रोशन करने वाले तेंदुलकर महज एक बेमिसाल क्रिकेटर ही नही बल्कि देश के क्रिकेट प्रेमियों के होठों की मुस्कान भी हैं। उनका बल्ला चलने पर देश पर देश में दीवली सी मनायी जाने लगती है।

संगीत मे लता मंगेशकर को अदाकारी में अमिताब बच्चन को और क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर को जो मुकाम हासिल है मजे की बात यह है कि तीनों-लता मंगेशकर, अमिताभ बच्चन और सचिन तेंदुलकर एक दूसरे के जबरदस्त फैन है।

मदर टेरेसा

यूगोस्लानिया के स्कोपजे नामक एक छोटे से नगर में मदर टेरेसा का जन्म हुआ था। बारह वर्ष की अल्प आयु में इन्होने अपने जीवन का उद्देश्य सोच लिया था। मानव का प्रेम एक ऐसी सर्वोतम भावना है जो उसे सच्चा मानव बना सकती है। मानवता के प्रति पे्रम को देश, जाति या धर्म की परिधि में नही बाॅधा जा सकता है। व्यक्ति के मन में यदि सच्ची ममता, करूणा की भावना हो तो वह अपना जीवन सेवा में समार्पित कर देता है विश्व में मानव की निस्वार्थ भाव से सेवा करने वाली अनेक विभुतियों में से मदर टेरेसा सर्वोच्च थी।

अठ्ठारह वर्ष की आयु में नन बनने का निर्णय कर लिया अनाथ तथा विकलांग बच्चों के जीवन को प्रकाशवान करने के लिए अपनी युवावस्था से जीवन के अंिन्तम क्षणों तक उन्होने प्रयास किया सन् 1997 में उन्होने इस दुनिया से बिदाई ले ली।

पीड़ितो की तन-मन से सेवा करने वाली मदर टेरेसा आज हमारे बीच नही है लेकिन हमें उनके दिखाए मार्ग पर चलते हुए अनाथ, असहाय, बीमारों की सेवा का संकल्प लेना चाहिए।

होली -रंग और उमंग का त्योहार

भारत देश में मनाये जाने वाले धार्मिक व सामाजिक त्यौहारों के पीछे कोई न कोई घटना अवश्य जुड़ी होती हैं। रंगों का त्यौहार होली धार्मिक त्यौहार होने के साथ-साथ मनोरंजन का उत्सव भी है। है। होली के लिये प्राचीन कथा है कि दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने अपनी प्रजा को भगवान का नाम लेने की मनाही का आदेश दिया था। किन्तु उसके पुत्र प्रहलाद ने आदेश का उल्लघंन किया तो पिता ने उसकों मार देने के लिये अपनी बहन होलिका के साथ षंड़यन्त्र कर पुत्र को मारना चाहा। परन्तु प्रभु की कृपा से प्रहलाद का बाल बाका न हो सका। उसी दिन को प्रत्येक वर्ष होलिका दहन के रूप मंें मनाया जाता हैं। होली भारत का एक ऐसा पर्व है जिसे देश के निवासी सभी सहर्ष मानते है रंगों के इस अनूठे जस्न में हिन्दूओं केे साथ मूस्लमान भी शामिल होते है।

दूसरे दिन प्रातः आठ बजे से गली-गली में बच्चे बडे़ रंग एवं पानी से हुड़दंग शुरू कर देते है। सभी एक दूसरे पर रंग डालते है तथा बाद में गुलाल लगा कर गले मिलते हैं। तथा होली की बधाई देतें है। अच्छे पकवान तथा मिठाई स्वयं भी खाते है और दूसरे को खिलाते हैं तथा आपस में भी मिठाई का अदान प्रदान करते हैं

वृद्ध लोग भी इस त्यौहार पर जवान हो उठते हैं। कई लोग भांग का सेवन करते है। उनके मन में उंमग व उत्सव का रंग चढ़ जाता हैं वे आपस में बैठकर गप-शप व ठिठोली में मस्त हो जाते हैं तथा ठहाके लगा कर हॅसते है। अपराहन दो बजें तक फाग का खेल समाप्त हो जाता हैं लोग नहा धोकर शाम को मेला देखने चल पड़ते है। अन्तिम मुगल बादशाह अकबरशाह सानी और बहादुर शाह जफर खुले दरबार में होली खेलने के लिये प्रसिद्ध थें।

मंगलवार, 25 नवंबर 2008

संगीत

संगीत - दुनिया में शायद यह एक चीज़ है जो विचारों में इतना विभाजन लाता है| मनुष्य गाने क्यों सुनता है ? कुछ लोग कहेंगे कि वे अपने मन के सभी परेशानियों या तकलीफों को दूर करने के लिए ऐसे करते हैं तो कुछ कहेंगे कि गाने सुनकर उनको प्रेरणा मिलती है| इन वजहों पर पूरे दिन हम वाद विवाद कर सकते हैं और हमें ठीक से जवाब नहीं मिलेगा लेकिन अगर एक सरीले कारण से इस चर्चा को बंद कर सकते हैं तो वो होगा - लोग गाने सुनते हैं क्योंकि उनको अच्छा लगता है|

देखें तो हमारी ज़िन्दगी के हर क्षेत्र में संगीत का प्रभाव है| ज़रा सोचिये- अगर आपको कल "लगान" या फिर "कल हो न हो" बिना गानों के देखना पड़े, क्या आप इन फिल्मों से उतना ही मज़ा ले पाएंगे जितना संगीत के साथ लिया था| मैं आपके उत्तर का इंतज़ार ही नहीं करूंगा क्योंकि हम सभ को मालूम है कि यह नामुमकिन है| संगीत में वह शक्ति है जो बहुत कम चीज़ों मैं होती है| यह एक चीज़ है जिसे दुनिया का हर व्यक्ति निह्स्संकोच होकर सुनता है और सुनते ही भावुक हो जाता है| संगीत एक बन्दे के शरीर के हर अंग को नचा सकती है या फिर उसके दिल को हजारों टुकडों में तोड़ सकती है| प्रोत्साहन, हिम्मत, खुशी, नाराज़गी, उल्लास सभी भावनाएं, संगीत के कारण, तेज़ी से हमारे हर सोच को ग्रहण कर सकती हैं |

हमें उसका शुक्रगुजार होना चाहिए जिसने हमें ऐसे सुहावने चीज़ का मज़ा लेने का मौका दिया है और अगली कुछ सदियों के लिए इसकी खूबसूरती को और गहरे रूप से समझने की कोशिश करनी चाहिए|

बर्फ

कमरे में बैठा मैं सोच रहा हूँ की मैं अगले पाँच महीने इस मौसम में कैसे बिताऊंगा| आज पहली बार बर्फ का असली रूप देखा और एक तगडे जवान मर्द होने के बावजूद मैं कक्षा जाने के लिए बिल्कुल उत्सुक नहीं था| अठारह साल सिंगापुर में रहने के बाद आप शायद मुझे ऐसे सोचने के लिए माफ़ कर देंगे| वहाँ तो तापमान पच्चिस डिग्री के नीचे कभी गिरता ही नहीं है| मुझे याद है, पिछले साल एक बार नवम्बर के महीने में अचानक तापमान बाईस डिग्री तक गिर गया था| मैं बढाकर बात नहीं कर रहा लेकिन बहुत से लोग कम्बल में चुप गए या फिर सुबह सुबह जाकट के निचे गर्माहट का मज़ा ले रहे थे| अभी आप अंदाजा लगा सकते हैं की मेरे लिए यहाँ जीना कितना कठिन है?

मगर दिल से पूछूँ तो शायद अलग सा जवाब मिलेगा| सफ़ेद, मुलायम, मन को बहलाने वाली बर्फ कभी देखी ही नहीं है मैंने| कहते हैं ज़िन्दगी में हर चीज़ का अनुभव एक बार तो लेना ही चाहिए और देखें तो असल में यह इतना भी बुरा नहीं है| मैं तो इस मौसम के लिए पूर्ण रूप से तैयार हूँ और अपनी मोटी चमड़ी की सहायता से दिसम्बर के अंत तक आराम से पहुँच जाऊंगा| दिन के कार्यों में शायद तब तकलीफ होगी, जब मैं बर्फ के कारन धरती को अपने पैरों से छू ही नहीं पाऊँगा या फिर जाकट पहने हुए भी बाहर नहीं जाना चाहूँगा| अभी के लिए मुझे मौसम का मज़ा ही लेना चाहिए क्योंकि बहुत से लोगों ने कहा है कि अगर इससे मुझे परेशानी हो रही है तो फरवरी में मैं आश्चर्यचकित रह जाऊँगा|

मंगलवार, 18 नवंबर 2008

मिशीगन फुटबोल

इस शनीवार मिशीगन फुटबोल ओहईओ के सात खेल रहे है. ओहईओ हमारे प्रतियोगी है. इस साल हमारे फुटबोल टीम इतने अच्छे नही कर रहे हैं. इस लिए, बहुत सारे लोग नही मानते के हम जीतेंगे. लेकिन मुझे मानती है. मुझे विश्वास है कि हम इस शनिवार ओहईओ स्टेट पराजित करेंगे. जो भी हो जाए, मिशीगन फुटबोल एक बोल में नही खेलेंगे. हम बहुत खेल में हरे और अब हम एक बोल में नही खेल सकते. लेकिन, अगले साल सब कुछ बदलेंगे. अगले साल लोग कहे रहे है कि हम बहुत खेल जीतेंगे. मुझे, और मेरे सरे परिवार एक मिशीगन फुटबोल में बहुत विश्वास हैं.

शनिवार, 15 नवंबर 2008

भारतीय शास्त्रीय संगीत

मुझे बचपन से ही भारतीय शास्त्रीय संगीत मे बहुत रुचि रही है। बहुत से प्रसिद्ध संगीतज्ञ, जैसे उसताद अमजद अली खान और पण्डित शिव कुमार शर्मा ने हमारे विद्यालय मे संपादन किया। उनको देखकर मै भी भारतीय संगीत सीखने को प्रभावित हुआ।
जब मेरे सारे मित्र पश्चिमी संगीत सीख रहें थे, मै तबला और हिन्दुस्तानी चिकारा सीख रहा था। पश्चिमी संगीत के विभाग मे सौ से अधिक छात्र थे, परन्तु हिन्दुस्तानी संगीत के विभाग मे केवल नौ या दस छात्र थे।
तबला मे मेरी बहुत रुची थी। मैने छः सालों के लिए तबला सीखा। तबला बजाने से जो लय और गत का अंदाज़ा मिलता है, वो किसी और संगीत वाद्य से नही मिलता। अपने अध्यापक के साथ तबले पर जुगलबंदी रचाते समय बहुत आनंद मिलता था।
मैने हिन्दुस्तानी चिकारा भी बजाना सीखा। चिकारे को सही तकनीक से बजाने के लिए बहुत रियाज़ और अनुशासन की ज़रुरह होती है, परन्तु जब ये वाद्य सुर मे बजता है, तो अधिक आनंद मिलता है।
आज भारतीय शास्त्रीय संगीत धीरे धीरे गायब हो रहा है। मै अपने जीवन मे इसे जीवित रखने का पूरा प्रयत्न करूँगा।

सर्दी का मौसम

मिशिगन आने से पहले, बहुत से लोगों ने मुझे यहाँ के मौसम के बारे मे चेतावनी दी थी। मेरे बड़े भाई ने भी अपनी कालेज की पढ़ाई मिशिगन से ही पूरी की। वे मुझे बार-बार कहते रहें कि एसी जगह मे पढ़ना चाहिए जहाँ अच्छा मौसम हो। मैने उनकी बातों पर ज़्यादा ध्यान नही दिया, क्योंकि मुझे लगता था कि सर्दी को झेलना ज़्यादा मुशकिल नही हो सकता है। मै गलत था।
एन आर्बर मे सर्दी के समय, शाम के पाँच बजे ही बाहर अंधेरा हो जाता है। दिन बहुत छोटे हो जाते हैं और राते बहुत लम्बी। दिन मे भी, घने बादलों के कारण सूरज दिखाई नही देता। तापक्रम अधिकतर 0 सेल्सियस से नीचे ही रहता है। दिन पर दिन, बर्फ पड़ती है। शुरू शुरू मे बर्फ बहुत ही सुंदर लगती है, परन्तु जैसे समय बीतता जाता है,बर्फ पर चलना ही मुश्किल हो जाता है। कभी कभी इतनी ठंडी हवा चलती है कि पैदल चलते समय आँखों को खुला रखना ही मुश्किल हो जाता है।
सर्दी के महीनों मे मै बहुत ही दुखी हो जाता हूँ। घर की बहुत याद आती है और घर लौटने को दिल तड़पता है। कभी कभी मै सोचता हूँ कि मुझे अपने भाई की चेतावनी पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए था।

शनिवार, 8 नवंबर 2008

दीपावली प्रकाश पर्व

हिन्दू धर्म में सभी देशांे, प्रदेशांे गाँवांे मंे मिलाकर बहुत से पर्व है परन्तु इन पर्वांे मंे मुख्य पर्व होली, दशहरा, और दीपावली हैं। हमारे जीवन में प्रकाश फैलाने वाला दीपावली का त्यौहार कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। अमावस्या की अंधेरी रात दीपकांे व मोमबत्तियांे के प्रकाश से जगमगा उठती हैं। एक प्रकार से अंधेरे से उजाले की ओर जाने की रात है। खेतांे मंें खड़ी धान की फसल भी तैयार हो जाती है।
इस पर्व की यह भी विशेषता है कि जिस सप्ताह मंे यह त्यौहार आता है उसमंे पाँच त्यौहार होते हैं। इसी वजह से सप्ताह भर लोगांे में उल्लास व उत्साह बना रहता है दीपावली से पहले धनतेरस पर्व आता हैे मान्यता है कि इस दिन कोई न कोई बर्तन अवश्य खरीदना चाहिए इस दिन बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है, इसके बाद आती है छोटी दीपावली, फिर आती है दीपावली। इसके अगले दिन गोर्वधन पूजा तथा अन्त मंे आता है भैया दूज का त्यौहार।
अन्य त्यौहार की तरह दीपावली के साथ भी कई धार्मिक तथा ऐतिहासिक घटनाएँ जुड़ी हैं। समुद्र-मंथन करने से प्राप्त चैदह रत्नांे मंे से एक लक्ष्मी भी इसी दिन प्रकट हुई थीं। इसके अलावा जैनमत के अनुसार तीर्थकर महावीर का महा निर्वाण भी इस दिन हुआ था। भारतीय संस्कृति के आदर्ष पुरूष श्रीराम लंका नरेश रावण पर विजय प्राप्त कर सीता, लक्ष्मण सहित अयोध्या लौटे थे। भगवान श्रीराम के स्वागत के लिए घरांे को सजाया एवं रात्रि मंे दिये सजाये गए।
सामान्यतया इस पर्व के आने से माह भर पहले भी घरांे की अपनी साफ-सफाई रंग-रोगन करते हैं। व्यापारी अपनी दुकानंेे सजाते हैं। बच्चे अपनी इच्छानुसार आतिशबाजी करते हैं।
इस दिन रात्रि के समये लक्ष्मी-पूजन होता है। इस दिन नये कपड़े पहनकर सज-धजकर निकलते हैं। लोग अपने ईष्ट मित्रांे के यहाँ मिठाई का आदान-प्रदान करते हैं एवं दीपावली की शुभ कामनाएँ लेते-देते हैं।

कम्प्यूटर-आज की आवश्यकता

20वीं सदी मंे कम्प्यूटर क्षेत्र मंे आयी क्रान्ति के कारण सूचनाआंे की प्राप्ति और इनके संसाधन मंे काफी तेजी आयी है। इस क्रान्ति के कारण ही हर किसी क्षेत्र का कम्प्यूटरीकरण संभव हो पाया है। स्थिति यह है कि माइक्रोप्रोसेसर के बिना अब किसी मशीन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। पिछले चार दशकांे में कम्प्यूटर की पहली चार पीढ़ियाँ क्रमशः वैक्यूम ट्यूब तकनीकी, ट्राँजिस्टर व पिं्रटेड सर्किट तकनीकी, इंटीग्रेटेड सर्किट तकनीकी और वेरी लार्ज स्केल इंटीग्रेटेड तकनीकी पर आधारित थी। चैथी पीढ़ी की तकनीकी मंे माइक्रोप्रोसेसर का वजन कुछ ग्राम तक ही रह गया। आज पाँचवी पीढ़ी के कम्प्यूटर तो कृत्रिम बुद्धि वाले बन गए हैं। वास्तव मंे कम्प्यूटर एनालाॅग या डिजिटल मशीनंे ही हैं। अंकांे की एक सीमा मंे भौतिक भिन्न मात्राआंे में परिवर्तित करने वाले कम्प्यूटर एनालाॅग कहलाते हैं। जबकि अंकांे का इस्तेमाल करने वाले कम्प्यूटर डिजिटल कहलाते हैं। एक तीसरी तरह के कम्प्यूटर भी हैं, जो हाइब्रिड कहलाते हैं। इनमंे अंकांे को संचय और परिवर्तन डिजिटल रूप मंे होता है। लेकिन गणना एनालाॅग रूप मंे होती है।
विज्ञान क्षेत्र मंे सूचना प्रौधोगिकी का आयाम जुड़ने से हुई प्रगति मंे हमंे अनेक प्रकार की सुविधा प्रदान की है। इनमंे मोबाइल फोन, कम्प्यूटर तथा इन्टरनेट का विशिष्ट स्थान हैं। कम्प्यूटर का विकास गणना करने के लिए विकसित किये यंत्र कैल्क्युलेटर से जुड़ा है। इससे जहाँ कार्य करने में समय कम लगता है, वहीं मानवश्रम मंे भी काफी कमी आयी है।
वर्तमान मंे कम्प्यूटर संचार का भी एक महत्वपूर्ण साधन बन गया है। कम्प्यूटर नेटवर्क के माध्यम से देश के प्रमुख नगरांे को एक दूसरे के साथ जोड़े जाने की प्रक्रिया जारी है। भवनांे, मोटर-गाड़ियांे, हवाई जहाज आदि के डिजाइन तैयार करने मंे कम्प्यूटर का व्यापक प्रयोग हो रहा है। अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में तो कम्प्यूटर ने अद्भुत कमाल कर दिखाया है। इसके माध्यम से करोड़ांे मील दूर अंतरिक्ष के चित्र लिये जा रहे हैं। साथ ही इन चित्रांे का विश्लेषण भी कम्प्यूटर द्वारा किया जा रहा है। कम्प्यूटर नेटवर्क द्वारा देश-विदेश को जोड़ने को ही इन्टरनेट कहा जाता है।

''विद्यार्थी एवं अनुशासन का महत्व''

प्रारम्भ से ही हमारा जीवन यदि अनुशासित होगा तो हम तमाम समस्याआंे का समाधान एक स्वस्थ्य एवं निरपेक्ष्य तथ्यांे पर भविष्य मंे कर सकते हैं। अन्यथा समस्याएँ ज्यों की त्यांे बनी रहेगी। चाहंे कितनी सरकारंे क्यांे न बदल दी जाये, चाहंे कितनी पीढ़ियाँ क्यांे न गुजर जाये। यदि देश की विभिन्न समस्याआंे की गहराई में जाकर देेखें तो उसमंे से कुछ बातंे ऐसी मिलती हैं, जो देश की विभिन्न समस्याआंे को जन्म देती हैं। जिनमंे आर्थिक एवं राजनैतिक महत्व के साथ देश की राष्ट्रभाषा, धर्म, संस्कृति और खान-पान के आधार पर ही लोगांे मंे अनुशासन तोड़नें मंे अथवा समस्याएँ खड़ी करने के लिए प्रेरित होने के प्रसंग मिलते हैं। देश में व्याप्त इन समस्याआंे के निराकरण के लिए देश के प्रत्येक नागरिक को अनुशासनप्रिय होना चाहिए। अनुशासनप्रिय होने के लिए हमंे स्वप्रेरणा के आधार पर कार्य करना होगा। वैलंेटाइन के अनुसार-अनुशासन बालक की चेतना का परिष्करण है। बालक की उत्तम प्रवृत्तियांे और इच्छाआंे को सुसंस्कृत करके हम अनुशासन के उद्देश्य को पूरा कर सकते हैं।
अनुशासन से अभिप्राय नियम, सिद्धान्त तथा आदेशांे का पालन करना है। जीवन को आदर्श तरीके से जीने के लिए अनुशासन मंेे रहना आवश्यक है। अनुशासन का अर्थ है, खुद को वश में रखना। अनुशासन के बिना व्यक्ति पशु के समान है। विद्यार्थी का जीवन अनुशासित व्यक्ति का जीवन कहलाता है। इसे विद्यालय के नियमों पर चलना होता है। शिक्षक का आदेश मानना पड़ता है। ऐसा करने पर वह बाद मंे योग्य, चरित्रवान व आदर्श नागरिक कहलाता है। विद्यार्थी जीवन मंे ही बच्चे मंे शारीरिक एवं मानसिक गुणांे का विकास होता है जिसे उसका भविष्य सुखमय बनाने के लिए अनुशासन मंे रहना जरूरी है। किसी काम को व्यवस्था के साथ-साथ अनुशासित होकर करते हैं तो उस कार्य को करने मंे कोई परेशानी नहीं होती। इसके अलावा कार्य करते समय भय, शंका एवं गलती होने का डर नहीं होता है। इसलिए सफलता प्राप्त करने के लिए अनुशासन मंे रहना जरूरी है। यदि हम अपने वातावरण को देखंे तो पता चलता है कि प्रकृति एवं प्राकृतिक वस्तुएँ भी अनुशासन मंे हैं।

मंगलवार, 4 नवंबर 2008

चुनाव का दिन

आज चुनाव का दिन है. आज एक इतिहासिक दिन होगा क्योंकि जो भी जीत जायेंगे, इतिहासिक होगा. अगर बराक औबामा जीत जाए तो फिर वह पहला काला अधिपति होंगे. अगर जोन मकैन जीत जाए तो फिर उसका उप्रष्टापति पहली लड़की होगी. बराक औबामा और जोन मकैन बहुत अलग विचार हैं. औबामा चाहिए कि और लगाने होने चाहिए कीमती लोगो के लिए. मकैन चाहते कि लगाने कमी हो जाए. खर्च करना के लिए, बराक औबामा बुरा खर्च प्रोग्राम को फेंकना चाहिए. जोन मकैन आय बंधन चाहिए. आरोग्यता रक्षा के लिए, बराक औबामा असीम आरोग्यता रक्षा चाहिए और जोन मकैन चाते है ही लोग जिस आरोग्यता रक्षा चाहिए, मिले. ईराकी लडाई के लिए, बराक ओबामा जल्दी निकल जाना चाहिए और जोन मकैन लडाई करना चाहिए. जो भी जीत जाए, इस चुनाव बहुत इतिहासिक है.

दिल्ली

दिल्ली – भारत की राजधानी और सब्से ऐतिहासिक शहर । दिल्ली राजधानी है इस वजह से तो काफी लोकप्रिय तो है ही , पर इसका इतिहास ही इसकी पहचान है । दिल्ली का इतिहास महाभारत तक जाता है जहां यह इन्द्रपस्थ के नाम से जानी जाति थी । उस्के बाद अनेक अलग –अलग राज्यों ने इसे अपनी सलतनत की राजधानी बनाया था , शहा-जहान्से लेकर हुमायुन तक अलग-अलग राजाओं ने अपने महल और कबर इतने सुन्दर तरीके से बन्वाए की आज तक इन्को देख्नने लाखों लोग आते हैं । इन्में से कुछ मशहूर ऐतिहासिक स्थल हैं लाल किला , पुराना किला , क़ुतब मिनार । मेहरौलि और चान्दनी चौक के आस पास वाले ज़िलों मे अन्य और भी ऐतिहासिक इमारितें दिख्ती हैं । इन इमारतों के स्थापना मुघल सन्तनत के राजाओं ने अपने – अपने समय कर्वाइ थी।

रविवार, 2 नवंबर 2008

दूरदर्शन का प्रभाव

दूरदर्शन समाज को बहुत प्रभावित करता है। भारत के इतिहास मे यह साफ़ दिखता है। 1987 मे जब रामानंद सागर की रामायण दूरदर्शन पर दिखाई जाती थी, तो दस करोड़ लोग अपना सारा काम काज छोड़कर उसे देखते थे।
1990 के बाद केबल टी वी द्वारा पश्चिमी चैनल दूरदर्शन पर दिखने लगे। इस समय बच्चों पर पश्चिमी प्रभाव बढ़ने लगा। वे पश्चिमी संस्कृति को अपनाने लगे। दुख की बात यह है कि पश्चिमी सभ्यता के गुणों को अपनाने के बजाए, भारतीय शहरों मे रहने वाले बच्चों ने उनकी बहुत सी बुरी आदतें भी अपनाई हैं।
1995 के बाद एकता कपूर के बहुत से कार्यक्रम दूरदर्शन पर दिखाई देने लगें, जो ज़्यादातर साँस-बहू के बुरे रिश्तों के विषय पर बनाएँ जाते हैं। मेरी राय मे ये कार्यक्रम समाज मे बुरे खयालात फैलाते हैं।
आज कल भारत मे समाचार चैनलों की गुणता बहुत गिर गई है। असली खबर पर कम और फ़िल्म कलाकारों की ज़िंदगी पर ज़्यादा ज़ोर दिया जाता है। अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान के हर कदम के बारे मे सब को खबर रहती है, परन्तु दुनिया की आर्थिक स्थिती के बारे मे केवल गिने चुने लोग जानते हैं। मेरी राय मे भारतीय मीडिया को अपनी ताकत पहचाननी चाहिए और उस ताकत को समाज के भले के लिए इस्तेमाल करना चाहिए।

शनिवार, 1 नवंबर 2008

मिशिगन मे दिवाली

शुक्रवार, 31 अक्तूबर को भारतीय विद्यार्थी संगठन ने दिवाली का उत्सव मिशिगन यूनियन मे मनाया। इस साल तकरीबन 200 लोग दिवाली मनाने आए। शाम की शुरुआत लक्षमी पूजा से की गयी। पूजा करने के बाद, सभी लोगों ने फुलझड़ियाँ जलाईं। कुछ लोगों ने भारतीय नृत्य, नाटक और सगीत का प्रदर्शन किया। हमारी हिन्दी कक्षा के प्रशांत जी संगीतकारों के समूह मे शामिल थे। उस समूह का नाम ‘मेज़ मिर्ची’ है। मेज़ मिर्ची ने ‘आकपैला’ तरीके से गाना गाया, यानि उन्होंने किसी संगीत वाद्य का इस्तेमाल नही किया और सारे संगीत वाद्यों की आवाज़ मुँह से ही निकाली। उनका प्रदर्शन बहुत ही मनोरंजक था। इस प्रदर्शन के पश्चात, सारे मेहमानों ने मिल जुलकर लज़ीज़ भारतीय खाना खाया।
पिछले तीन सालों से मै भारतीय विद्यार्थी संगठन के शासक मंडल पर रहा हूँ। दिवाली के नियोजन मे लगभग 2 महीने लगते हैं। विश्वविद्यालय के कर्मचारियों से फुलझड़ियाँ जलाने की आज्ञा लेने मे बहुत समय लग जाता है। चूंकि हमे इस साल भारतीय रेस्टोरेन्ट से खाना लाने की आज्ञा नही मिली, हमे विश्वविद्यालय के बावर्चियों को भारतीय खाने को पकाने का तरीका सिखाना पड़ा। यह बहुत ही कठिन कार्य था, परंतु, अंत मे उन्होंने काफ़ी अच्छा खाना बना ही लिया। सभी मेहमानों को यह उत्सव बहुत ही अच्छा लगा, और उनको खुश देख मुझे बहुत प्रसन्नता हुई।

मंगलवार, 28 अक्तूबर 2008

दिवाली

आज दिवाली का दिन है. हिंदू दर्म में, इस दिन सबसे पवित्र है. हर साल इस दिन हिंदू दर्म के लिए एक नया साल शुरू होती है. बहुत साल पहले राम, सीता, और लक्ष्मण अयोध्या से वापस आए. और आज, हम इस कुशी मानाने के लिए दिवाली मनाते हैं. मेरी परिवार बहुत परंपरा है दिवाली के लिए. हर साल हम सब एक सात लक्ष्मी पूजा करते है. हम इमान भी देते है और पटाखे भी जिलाते है. हम मिटा भी बदलते हैं. जब हम छोटे थे, पूजा के बाद हम बच्चे ने दस कमैनादमंट्स ने पदे. हम बच्चे ने बोले की हम दिवाली क्यों मानते है. हम घर भी साफ़ करते और नया कपड़े पहनते है. हम दिया भी जिलाते है. दिवाली पेसे का दिन भी होती है और हम लोटरी में पेसे डालते है. दिवाली मेरी सबसे पसंदीदा दिन है.

सोमवार, 27 अक्तूबर 2008

कम्पयूटर का ज़माना

आज के जमाने मे कम्पयूटर और इन्टरनेट के बिना जीना बहुत मुश्किल हो गया है। सुबह उठते ही लोग कम्पयूटर पर इन्टरनेट के ज़रिए इलेक्ट्रॉनिक मेल देखते हैं। पुराने दूरभाष की जगह नए ‘चल दूरभाष’ ने ले ली है। ये चल दूरभाष असल मे छोटे कम्पयूटर हैं। लोग इनके द्वारा इन्टरनेट पर जा सकते हैं, इनपर गाने सुन सकते हैं, और इनका कैमरा भी इस्तेमाल कर सकते हैं। गाड़ियों के अंजन मे भी कम्पयूटर होते हैं जो ईंधन के प्रवाह पर नियंत्रण रखते हैं, ताकि अंजन की ईंधन क्षमता बढ़े। पाठशालाओं और विश्वविद्यालयों के छात्र कम्पयूटर के बिना काम चला ही नही सकते। आज कल परियोजना के लिए विज्ञापन ढूंढने के लिए पुस्तकालय का कम और इन्टरनेट का ज़्यादा प्रयोग होता है। गृहकार्य भी ज़्यादातर कम्पयूटर पर ही किया जाता है। यहाँ तक कि हिंदी भी कम्पयूटर पर लिखी जाती है। मुझे याद है कि जब मै 8-10 साल का था, ये सब दूर की बातें लगती थी। तब कम्पयूटर व्यापार के लेख और बच्चों के मनोरजन के लिए इस्तेमाल किए जाते थे। आज, यदि कम्पयूटर का ज्ञान न हो, तो नौकरी मिलना भी मुश्किल हो जाता है। हम सचमुच कम्पयूटर के ज़माने मे प्रवेश कर चुके हैं।

रविवार, 26 अक्तूबर 2008

दीपावली

बचपन से ही दीपावली का त्योहार मेरा मनपसंद त्योहार रहा है। रामायण के मुताबिक इसी दिन को श्री रामचंद्र जी अपना चौदह वर्ष का बनवास पूरा करके अयोध्या वापस लौटे। अयोध्या के वासियों ने उनके लौटने की खुशी मे जगह-जगह दीप जलाएं। वह रात अमावस्या की रात थी, परन्तु दीपों के कारण अयोध्या के हर कोने मे रोशनी थी। इसी कारण दीपावली दीपों का त्योहार माना जाता है।
तब से यह त्योहार, प्रतिवर्ष, नवंबर या अक्तूबर मे अमावस्या की रात को मनाया जात है। लोग इस दिन को अपने घरों की सफाई करते हैं, नए कपड़े पहन्ते हैं, अपने घरों को दीपों से उज्जवल करते हैं, और पटाखे भी जलाते हैं। हिंदू धर्म के लोग शाम को लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा भी करते हैं। माना जाता है कि धन की देवी लक्ष्मी जी की पूजा करने से साल मे धन की कोई कमी नही होगी।
ऐन आर्बर मे भारतीय छात्र संगठन प्रतिवर्ष दीपावली मनाता है। मिशिगन यूनियन के बाहर बहुत से लोग फुलझड़ियों को जलाते हैं। कुछ छात्र नाटक और संगीत का प्रदर्शन करते हैं। अंत मे सभी लोग मिलजुलकर भारतीय खाना खाते हैं। परदेस मे रहकर भारत जैसा माहौल देखकर दिल बहल जाता है।

रविवार, 19 अक्तूबर 2008

विज्ञान और मै

बचपन से ही मुझे विज्ञान मे बहुत रूची थी। मै घर मे रखी बिजली से चलने वाली मशीनों को पेंचकस से खोलकर उनके अंदरूनी हिस्से को समझने की कोशिश करता था। अक्सर, मै खराब मशीनों को भी ठीक कर देता।
हमारे पाठशाला मे प्रतिवर्ष ‘साइंस डे’ मनाया गया। ‘साइंस डे’ 28 फरवरी को मनाया जाता है। 1928 मे इस दिन पर सी. वी. रमन नाम के वैज्ञानिक ने दुनिया को अपनी एक महत्त्वपूर्ण खोज के बारे मे बताया। इसी खोज के लिए उन्हें 1930 मे नोबेल पुरस्कार मिला।
‘साइंस डे’ पर हमारे पाठशाला के सभी विद्यार्थी अपने-अपने अविष्कारों का प्रदर्शन करते थे। मैने छ्ट्टी कक्षा मे अंधे लोगों के लिए कलम बनाई। वह कलम स्याही के बजाय ऊन पे चलती थी। कागज़ के बजाए ‘वेलक्रो’ पर लिखना पड़ता था ताकि ऊन वेलक्रो पर चिपक सके। नेत्रहीन लोग चिपके हुए ऊन को महसूस करके शब्दों का आकार जान सकते थे।
इसी आविष्कार के लिए मुझे उस वर्ष प्रथम पुरस्कार मिला। मैने वह कलम दिल्ली के ‘ब्लाईन्ड स्कूल’ को दान कर दिया। इस आविष्कार के साथ मैने इंजीनियरिंग की दुनिया मे अपनी यात्रा शुरू करी।

भारत की अंतरिक्ष यात्रा

भारत के पहले प्रधानमन्त्री, जवाहरलाल नेहरु की राय मे अंतरिक्ष तक पहुँचने का ज्ञान हमारे देश की प्रगति के लिए ज़रूरी था। उन्होने डाँ. विकरम साराभाई को भारत की अंतरिक्ष संस्था को स्थापित करने का उद्देश दिया।
डाँ. विकरम साराभाई ने भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन की स्थापना करी। उनके नेतृत्व के समय भारत ने राकेटों को अंतरिक्ष मे भेजने की कला विज्ञान हासिल करी। 1979 मे, रूसी राकेट द्वारा, भारत की पहली सेटेलाईट ’आर्यभट’ अंतरिकक्ष तक पहुँची। 1980 मे, ‘सेटेलाईट लाँच वेहिकल’ नामित देशी राकेट पर ‘रोहिनी’ नाम की सेटेलाईट अंतरिक्ष तक पहुँची। इस घटना के कारण, भारत का नाम वैज्ञानिको की बिरादरी मे प्रसिद्ध हुआ।
भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन ने 1980-2008 के बीच बहुत प्रगति की है। पिछले दशक मे इसी संगठन ने इसराइल और इटेली की सेटलाईटों को ‘पी.एस.एल.वी’ और ‘जी.एस.एल.वी’ राकेट द्वारा अंतरिक्ष मे भेजा। भारत के ‘पी.एस.एल.वी’ और ‘जी.एस.एल.वी’ राकेट दुनियाँ के सबसे कामियाब राकेटों की सूची मे शामिल हैं।
22 अक्तूबर 2008 को भारत ‘जी.एस.एल.वी’ राकेट द्वारा एक सेटलाइट चंद्रमा की ओर भेजने वाला है। यदि यह मिशन कामियाब हो, तो भारत उन उच्च वर्ग देशों की सूची मे शामिल होगा, जिनके पास चाँद तक पहुँचने का ज्ञान है।

मंगलवार, 14 अक्तूबर 2008

"दादा"

कुछ लोग मानते थे कि उसकी एक सबसे बड़ी कमी थी की वह उठती हुई गेंद को खेल नहीं सकता था और कुछ मानते थे कि "आफ साइड" पर वह भगवान के सामान था अगर आप जानते हो कि मैं किसके बारे में बात कर रहा हूँ तो अच्छी बात है लेकिन अगर आप अपने बाल खरोचकर उत्तर का इंतज़ार कर रहे हैं तो सुन लो यह महान चरित्र जिसके बारे में मैं बात कर रहा हूँ उसका नाम है -सौरव चंडीदास गांगुली आज भारत में इनको प्यार सा 'दादा' कहके पुकारा जता है
सन दो हज़ार में "मैच फिक्सिंग" की समस्या के बाद सौरव भारत क्रिकेट टीम के कपतान बने और अगले ४ साल में जो इन्होंने भारतीय क्रिकेट के लिए किया , शायद किसी भी कपतान ने नही किया होगा कपिल देव ने इंडिया को १९८३ मैं विश्व कप जिताया होगा और भारत का नाम रोशन किया होगा लेकिन जितनी उन्नति भारतीय टीम ने २००० से लेकर २००५ के बीच की , शायद बहुत साल के लिए फिर से नहीं देखि जायेगी आप पूछेंगे फिर- इनमे क्या खासियत थी की सिर्फ़ अपने पहले मैच के चार साल बाद वे कपतान बने? सौरव दादा की सबसे ख़ास बात यह थी कि उन्होंने अपनी टीम में एक नया एहसास दिलाया उनका अपने ही खिलाड़ियों में विशवास ने सबको दिखा दिया कि शायद भारत कि टीम अभी क्रिकेट की दुनिया में अपना नाम रोशन कर सकती है इसी विशवास को लेकर, सौरव भारत को २००३ में विश्व कप की आखरी स्थर तक लेकर गए इसके इलावा, उन्होने पाकिस्तान को दोनों भारत और पाकिस्तान में पूर्ण ढंग से हराया

आज अफ़सोस की बात यह है कि दादा अभी ३६ साल के हो गए हैं और पिछले डेढ़ सालों में वे टीम के भीतर-बाहर रहे हैं उन्होने २ हफ्ते पहले कह दिया कि अभी चलती टेस्ट सीरीज़ के बाद वे क्रिकेट से पीछे हट रहे हैं असल में यह एक उदास दिन होगा क्योंकि मेरी राय में वे क्रिकेट के सभी खिलाडयों, भूतकाल या वर्तमान काल में, में से एक सबसे सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी थे

परीक्षा

पिछले हफ्ते मुझे बहुत काम थी. सोमवार को मुझे दो परिक्षे थे. एक बयोसैकोलोगी में था और दूसरा रिसर्च सैकोलोगी में था. दोनों बहुत मुश्किल थे. मंगलवार को मुझे एक और परीक्षा था स्य्कोपैतोलोगी में. वह भी मुश्किल था. बुधवार को मुझे एक और परीक्षा था लेकिन वह इतने मुश्किल नहीं था. गुरुवार को मुझे एक कागज करनी थी रिसर्च सैकोलोगी में. फिर शुक्रवार में मुझे बीमार हो गयी, और शानिवार और रविवार मेने घर गयी. इस लिए पिछले हफ्ते मुझे इतने नींद नहीं कर सकी, और बहुत पदा. लेकिन, इस हफ्ते मुझे बहुत थोडी कम है और मुझे घर चल रही है.

सोमवार, 13 अक्तूबर 2008

सत्य

भारत देष में किसी समय एक राजा राज्य करते थे उनका नाम हरिषचन्द्र था उन्होंने बचपन से ही सत्य धर्म का पालन किया था एक समय देवताओं में आपस में बातचीत हो रही थी कि भारत में इस समय एक राजा राज्य कर रहा है जोकि सत्य धरम का पूर्णतया पालन कर रहा है एक देव को आष्चर्य हुआ उसने राजा की परीक्षा लेने की ठान ली उसने एक ब्राहम्ण का वेष धर कर राजा के पास आया और राजा से संकल्प कर दान देने का अनुरोध किया और पूरा राज्य दे दिया उसके बाद देव ब्राहम्ण ने शमषान में राजा को नौकरी दिलवा दी और रानी को शमषान के बगल में एक ब्राम्हण के यहां नौकरी दिलवा दी एवं राजा को कहा जो भी यहां शमषान में आयेगा उससे कर के रूप में एक कफन कपड़ा राज्य के लिए लेना होगा उसी शाम लड़के को साँप ने डस लिया और मृत्यु को प्राप्त हो गया। रानी बिलखते हुए उसी शमषान में पुत्र को लेकर दाह संस्कार के लिए पहुंचती है और दाह संस्कार के लिए कहती है परन्तु राजा हरिषचन्द्र ने कहा कि दाह संस्कार से पूर्व तुम्हे एक कफन राज्य के लिए देना होगा रानी बिलखते हुए कहती है कि मेरे पास तो कुछ भी नहीं है उस पर राजा हरिषचन्द्र कहते हैं कि मैं अपने सत्य धर्म से पीछे नहीं हट सकता तुम्हे एक कफन का कपड़ा लाना ही होगा। तब अन्त में रानी अपनी साड़ी से आधी साड़ी फाड़कर देती है। इस प्रकार राजा हरिषचन्द्र की सत्यता पर देव प्रसन्न हो गया और उसने राजा का राज पाठ वापस देकर और बच्चे को जिन्दा करके वापस चला गया।

गाय-बैल

गाय एक घरेलू एवं लाभप्रद चार पैर का जानवर है जिसका हमें प्रातः एवं सांयकाल दूध प्राप्त होता है जो कि जीवन के लिये बहुत ही महत्वपूर्ण एवं स्वास्थ्य रक्षक है। गाय प्रायः एक सीधा जानवर है। गाय का बछड़ा जो कि बड़ा होने पर बैल बनता है वह गांव में किसानों के हल चलाने के लिये बहुत ही उपयोगी है तथा किसानों की बैलगाड़ी भी चलाने के उपयोग में लाया जाता है, इसका भोजन घास-फूस होता है जो किसानों को सहजता से प्राप्त होता है और उसका कोई मूल्य नहीं देना पड़ता है। धान की कुटाई में भी बैलों का उपयोग किया जाता है।
कुछ तेली भी बैलों का उपयोग तेल बनाने में लाते हैं गांव में कोल्हू बैठाये जाते हैं जिसमें कोई बिजली की जरूरत नहीं पड़ती है इससे बिजली की भारी बचत होती है तथा तेल भी शुद्ध निकलता है एवं प्रोटीन भी शत प्रतिषत बना रहता है।
बैलों का उपयोग किसान कुऐं से पानी निकलाने के उपयोग में भी लाते हैं इस प्रकार गाय एवं बैल दोनों ही देष के लिये बहुत ही उपयोगी जानवर हैं।

शनिवार, 11 अक्तूबर 2008

गुजरात, 2002

सन 2002 मे गुजरात मे हुए हिंदु-मुसलमान दंगे हमारे देश पर धब्बा बनकर रह गए हैं। सरकारी रिकार्ड के मुताबिक फरवरी एवं मई के बीच 1044 लोग मारे गए, परन्तु बहुत लोग मानते हैं कि इससे कई ज़्यादा लोग उस फसाद मे अपनी जान खो बैठे।
ये सब फरवरी, 2002 को गोधरा नाम के शहर मे शुरु हुआ। उस दिन 58 हिंदु कारसेवक साबरमती एक्स्प्रेस नामित रेल गाड़ी मे आग के कारण मारे गए। ऐसा आरोपित किया गया है कि यह आग कुछ मुसलमानों द्वारा आरंभिक की गई, परन्तु आज तक यह बात अदालत मे साबित नही हो पाई है।
रेल गाड़ी के जलने की खबर तेज़ी से गुजरात मे फैली। इस हादसे के कारण हिंदु और मुसलमान सम्प्रदाय के लोगों के बीच तनाव पैदा हुआ। अगले दिन अहमदाबाद में हिंदुओं ने जुलूस निकाला जिसका नरेंद्र मोदी की सरकार ने पूरी तरह समर्थन किया। इसी जुलूस के दौरान दंगे शुरु हुए। गुससे से गर्म हिन्दु लोगों ने मुसलमानों की हत्या करी। इसके कारण मुसलमानों मे भी गुससा बढ़ा और उन्होंने हिन्दुओं पर वार किया।
बहुत से पुलिस अफसरों ने आरोप किया है कि नरेंद्र मोदी ने उनको मुसलमानों की मदद न करने का संदेश दिया। जिन अफसरों ने इस आदेश का विरोध किया, उनका तुरंत ट्रांस्फर कर दिया गया। बी जे पी सरकार से दबाव की वजह से, इस बात को ज़्यादा महत्त्व नही दिया गया।
इसके बावजूद, नरेन्द्र मोदी ने अपने पद से इसतीफा नही लिया। हैरानी की बात यह है कि गुजरात के लोगों ने उनको दोबारा अपना मुख्यमंत्री चुना, और उस चुनाव के बीच पूरा भारत चुप रहा। हमारे देश को क्या हो गया है?

पर्यावरण

तीस साल पहले जब अमरीकी अंतरिक्ष यात्री चाँद को गए, तो वे पृथ्वी को अंतरिक्ष से देखने वाले पहले मानव बने। जब वे चाँद से वापस लौटे, तो उनसे पूछा गया कि पृथ्वी को अंतरिक्ष से देखकर उनहे कैसा महसूस हुआ। उन सभी ने एक ही जवाब दिया, कि पृथ्वी अंतरिक्ष के प्रतिकूल वातावरण मे नाज़ुक हीरे के समान है, और मानव जाति को पृथ्वी के पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए।
आज, उस घटना के तीस साल बाद, हम इस पृथ्वी के नाज़ुक पर्यावरण को बिना सोचे समझे नष्ट करते जा रहे हैं। प्रतिदिन, लकड़, काग़ज़, गोंद आदि उत्पादों को बनाने के लिए, हज़ारों वृक्षों को काटा जाता है। इसके कारण, बहुत से जीव-जन्तुओ का नाश होता है।
गाड़ियों एवं कारखानों मे ईंधन के उपयोग की वजह से दुनिया मे प्रदूषण बहुत फैल रहा है। इस प्रदूषण के कारण, पृथ्वी का तापमान बढ़ता जा रहा है। अब उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव मे बर्फ पिघल रही है और अगले 20-30 सालों मे समुद्री तटों पर स्थित शहरों मे बाढ़ आने की आशंका बढ़ रही है। बढ़ते तापमान की वजह से दुनियाभर मे आंधियों की आवृत्ति भी बढ़ रही है।
हम सभी पृथ्वी को चोट पहुँचा रहे हैं। हमारे कर्मों की वजह से, इस खूबसूरत दुनिया का धीरे-धीरे नाश हो रहा है। अब इस नाज़ुक हीरे की रक्षा करने का समय आ गया है।

मंगलवार, 7 अक्तूबर 2008

सूझ-बूझ

एक राजा के दो पुत्र थे राजा का छोटा पुत्र ज्यादा समझदार था अतः राजा छोटे पुत्र को राज्य देना चाहता था परन्तु राज्य के नियमानुसार बड़े पुत्र को राज्य मिलना चाहिए था। अतः राजा ने अपने दरबार में दोनों पुत्रों को बुलाया और दोनों को एक एक हजार रूपये देकर कहा कि तुम लोगों को एक एक हजार रूपये दिये जाते है और एक एक कमरा दिया जाता है जो कि बहुत दिनों से बन्द था और कहा कि तुम लोगों को जो एक एक हजार रूपये दिये गये हैं उससे कमरा भरना है। बड़ें पुत्र ने सोचा एक हजार रूपये मं कमरा कैसे भर सकता है सो बहुत सोचकर उसने कीचड़, गोबर से कमरा भर दिया परन्तु कीचड़ गोबर से सारे राजमहल में दुर्गन्ध फैल गई।

इधर छोटे पुत्र ने सोचा इतने कम रूपये में कैसे कमरा भरेगा सो उसने सोंचा खराब चीजों से कमरा भरना उपयुक्त नहीं है उसने मात्र एक दीपक लाकर बीचों बीच कमरे में रख कर जला दिया।

उधर दरबार में दोनों पुत्रों को बुलाया गया बड़े पुत्र का कमरा पहले देखा गया जिससे भयंकर दुर्गन्ध आ रही थी एवं जिसके कारण राजा, दरबारी, मंत्रीगण कपड़ा व नाक में रूमाल रखकर किसी तरह वहां से निकले फिर छोटे पुत्र के कमरे में गये वहां देखा कि कमरा बिल्कुल साफ सुथरा है बीच में मात्र एक दीपक रखा था जिसकी रोषनी से पूरा कमरा भरा हुआ था। सारे राज दरबारी मंत्रीगण खूब खुष हुए और दूसरे दिन छोटे पुत्र को राज्याभिषेक कर दिया गया।

धर्म

धर्म वो है जो हृदय में ईष्वर के प्रति मोड़ दे आप ईष्वर के बताये मार्ग दर्षक पर चल दें तभी हम सही रूप से धार्मिक होंगे। आज इस कलयुग में अपने चरित्र एवं संस्कारों से दूर हो गये हैं। संस्कार रहित होकर केवल आर्थिक एवं अधार्मिक कार्यों में लिप्त हो गये हैं। अतः ईष्वर से बहुत दूर हो गये हैं। बच्चें कच्चे घड़े के समान हैं जिस प्रकार कुम्हार अपना चाक चलाकर मिट्टी को नाना प्रकार के सांचे में ढाल कर अनेक प्रकार की आकृतियां बनाता है उसी तरह बच्चों को भी अच्छे संस्कार में ढालने के लिये घर का वातावरण शुद्ध बनाना होगा एवं माता-पिता को भी अपने में सभी बुराइयों से दूर रहकर, एवं धार्मिक बनना होगा उनके द्वारा किये गये आचरण पर ही बच्चे का भविष्य निर्भर होगा।

सफल और असफल व्यक्तियों के भेद से साहस व ज्ञान की कमी के कारण एवं संकल्प शक्ति के अभाव ही उन्हें सफलता प्राप्त नहीं होती है। धार्मिक होने के लिये छल-कपट, लोभ, असत्य, चोरी, हिंसा, क्रोध, परिग्रह मायामोह, एवं हिंसा को त्यागना होगा अपने में संस्कार और वातावरण को सही रखना पड़ेगा। अहिंसा धर्म का पालन पूर्णतया करना होगा। अहिंसा धर्म पर चलने की वकालत बहुत से गुरूओं एवं संसार के महापुरूषों ने की है जिसमें भगवान महावीर, भगवान बुद्ध एवं महात्मा गांधी प्रमुख हैं। आज के समय में विस्फोटक सामान निरन्तर बनाये जा रहे हैं ऐसे समय में अहिंसा धर्म का पालन करके संसार को तीसरे महायुद्ध से बचाया जा सकता है।

शनिवार, 4 अक्तूबर 2008

‘हिमालय’

भारत की उत्तरी दिशा मे स्थित हिमालय पर्वत वर के समान हैं। दुनिया का सबसे ऊँचा पहाड़ ‘माऊँट एवरेस्ट’ इसी पर्वत श्रंखला मे स्थित है। 'हिमालय' संस्कृत का शब्द है; 'हिम' अर्थात बर्फ़ और 'आलय' अर्थात घर। उनकी ऊँचाई के कारण, वे साल भर बर्फ़ से लदे रहते हैं।
हिमालय श्रंखला तीन तर्कों मे बटी हुई हैं; हिमाद्री, हिमाचल और शिवालिक। उनमे स्थित शहर एवं घाटियाँ अति खूबसूरत हैं। शिमला, देहरादून, मसूरी इत्यादि पहाड़ी शहर दुनिया भर मे मशहूर हैं। जगह-जगह से पर्यटक इन शहरों के वातावरण को महसूस करने आते हैं।
सदियों से ये पर्वत भारत के रक्षक रहे हैं। इनके कारण चीन के राजा-महाराजा ने कभी भी भारत पर आक्रमण करने का प्रयत्न नही किया।
हिमालय पर्वत भारत को उत्तरी चीन की ठंडी हवाओं से भी बचाते हैं, जिसके कारण उत्तर प्रदेश, बिहार आदि प्रदेशों मे खेती के लिए उचित तापमान बना रहता है। उनही के कारण, वर्षा ॠतु के समय, बादल भारत की सीमा को पार नही कर पाते, और वे हिमालय पर्वतों से टकराकर भारत के उत्तरी प्रदेशों मे खूब बरसते हैं। इसलिए सारे उपजाऊ खेत भारत के इसी खण्ड मे स्थित हैं।
बहुत सी नदियाँ भी हिमालय की बर्फ़ीली चोटियों मे पेदा होती हैं। इनमे से गंगा, यमुना, सतलुज और ब्रह्मपुत्र सबसे मशहूर नदियाँ हैं।
मेरी राय मे हिमालय पर्वत भारत की पहचान के अहम हिस्से हैं।

अंधेरी रात

बहुत समय की बात है। मै उस समय केवल छः साल का था। घर मे सभी ‘खलनायक’ पिक्चर के प्रिमीयर के लिए सिनेमा जा रहें थे। अगले दिन स्कूल के लिए मुझे जल्दी उठना था, इसलिए मेरी माँ ने मुझे घर पे ही छोड़ना उचित समझा। उस समय मोहन नाम का बावरची हमारे यहाँ काम करता था। माँ ने उसे घर मे ही रहने को कहा, ताकि मुझे अकेले होने का अहसास न हो।
भोजन करने के बाद, मैने मोहन के साथ कुछ समय तक दूरदर्शन पर खबर देखी। आठ बजे के करीब मुझे नींद आने लगी, तो मै सोने के लिए अपने कमरे चला गया। क्योंकि मै काफ़ी कम उम्र का था, मुझे अंधकार मे बहुत डर लगता था। इसलिए मै सारी बत्तियाँ जलाकर, कुर्ता-पयजामा पहनकर, बिस्तर मे घुस गया। मैने बहुत कोशिश करी, परन्तु मै माँ के बिना सो नही पाया। बाहर बारिश हो रही थी, और बादल ज़ोर से गरज रहें थे। फिर अचानक ज़ोर से बिजली गिरी, और कमरे की सारि बत्तियाँ बुझ गयी।
अंधकार के कारण मै बहुत भयभीत हो गया। बाहर जब भी बिजली चमकती, मुझे जगह-जगह लोगों की परछाइयाँ दिखती। कमरे मे भी मुझे अजीब सी आवाज़ें सुनाई देने लगीं। क्या सचमुच कोई और कमरे मे था या क्या मेरी इंद्रियाँ मुझे धोका दे रहीं थी?
मै मोहन को आवाज़ देने वाला था, जब अचानक मैने दरवाज़े को खुलते सुना। मेरा दिल डर के मारे दौड़ने लगा। बड़ी मुश्किल से मैने दरवाज़े की ओर नज़र उठाई। ऐसा लगा कि एक मोमबत्ती हवा मे तैरकर मेरी ओर आ रही थी। मैने चिल्लाने की कोशिश करी, परन्तु आवाज़ गले से निकली ही नही। मैने आँखें बंद कर दीं। फिर मैने मोहन की आवाज़ सुनी। वह मेरा नाम पुकार रहा था। आँखें खोली तो देखा कि वह मोमबत्ती लिए बिस्तरे के पास खड़ा था। लो! मै बिना बात के डर गया था! उस दिन के बाद मेरा साहस थोड़ा सा बढ़ा, और मै अंधेरे मे फिर कभी नही डरा।

मंगलवार, 30 सितंबर 2008

इस हफ्ते

इस हफ्ते मुझे बहुत काम करनी है. हर दिन मुझे नाचने का अभ्यास है. अब मुझे दो डांस ग्रुप्स में है. पहला मेरी डांस टीम है, मिशीगन भंगरा टीम. में इस टीम का कप्टिन हु. हर साल हम कोम्पीटिशोंस में नाचते हे. दूसरा ग्रुप IASA में है, यानी इंडियन अमरीकन स्ट्दंट असोसिएशन. हर साल वे एक प्रोग्राम बनाते है. इस प्रोग्राम में दस डांस है. मुझे एक डांस में हु. मेरी डांस जिप्सी है. मुझे बहुत मजे अथी है. इस हफ्ते मुझे बहुत काम भी करनी है. अगले हफ्ते मुझे तीन परीक्षे है. में छुट्टी के लिए और इंतजार नही करनी.

‘बापू’

भारत के आज़ादी के आंदोलन ने बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों को जन्म दिया। मै बिना किसी आशंका के कह सकता हूं कि उनमें से सबसे प्रभावशाली थे हमारे राष्ट्रपिता, महात्मा गांधी। उनका जन्म 2 अक्तूबर, 1869 को हुआ था। बृहस्पतिवार को उनके जन्म की एक सौ उनचालीसवी सालगिरह है।

गांधी जी के सम्मान मे 2 अक्तूबर भारत मे राष्ट्रीय छुट्टी होती है। शहर-शहर मे लोग ‘बापू’ और उनके आदर्शों को याद करते हैं। दिल्ली मे राजघाट पर अन्य धर्म के लोग एक साथ मिलकर पूजा करते हैं। सभी धर्मों की पवित्र पुस्तकों से पाठ पढ़े जाते है।

बापू का सपना था कि हिंदु, मुसलमान, सिख, इसाई आदि धर्म के लोग भारत मे एक साथ अमन से रहें। आज़ादी के दिन उनका सपना टूट गया। आज़ादी के दिन, हिंदु और मुसलमानों के बीच दंगों के कारण सैकड़ो लोगों की जान गयी। उस दिन से हालात मे थोड़ा सुधार तो आया है, परंतु अभी भी दोनो धर्मों के लोगों के बीच तनाव की स्थिति बन जाती है। परंतु, बापू के जन्मदिन पर सब लोग अपने मतभेद भूलकर एक साथ उनके आदर्शों को याद करते हैं।

यही है हमारे राष्ट्रपिता की ताकत। उनका शरीर हमें बहुत साल पहले छोड़ गया, परंतु आज भी, केवल उनकी सोच हमारे देश को एक कर सकती है।

सोमवार, 29 सितंबर 2008

गुरू की महिमा

गुरू की महिमा को प्रत्येक धर्म एवं शास्त्रों में अनेक व्याख्यायें की गई है। गुरू ही सुशिक्षित कर मनुष्य को मनुष्य बनाते है तथा संयम से चलने और मर्यादाओं में रहने की राह बताते है अगर मनुष्य भर्यादाओं के भीतर नहीं रहेगा तो राह भटक जायेगा जिस प्रकार नदी जब अपनी मर्यादा से भटकने लगती है तो अपना स्वरूप खोने लगती है उसी प्रकार मनुष्य भी मर्यादाओं से नही बंधेगा तो संसार का स्वरूप नष्ट हो जायेगा। गुरू ही हमें ‘‘जीओं और जीने दो‘‘ का पाठ पढ़ाते है तथा सुयोग्य एवं ज्ञानवान बनाकर संसार को एक सही राह पर चलने के लिए पे्ररणा देते है ।
गुरू ही हमें गोविन्द अर्थात् परमात्मा से भी मिलाने का रास्ता बताते है इसलिए परमात्मा से पहले गुरू का सम्मान किया गया हैं। जिस राष्ट्र में गुरूओं का सम्मान नही होगा उस राष्ट्रª का पतन अवश्यभावी है।
राजाओं के समय में भी गुरूओं को सदैव उचित सम्मान मिलता रहा हैं यहाँ तक कि वो अपनी सभाओं में राज्य ज्योतिषी तथा नीतिगत राज्य चलाने के लिए धर्म गुरूओं को भी सभाओं में सर्वोच्च स्थान देते थे ताकि राज्य को नीतिपूर्वक चलाया जा सकें। आदि काल से गुरूओं को उचित सम्मान मिलता रहा हैं और गुरूओं के द्वारा ही बनायी गयी मार्गदर्शिता, मर्यादाये राष्ट्र का निर्माण एवं विकास करती रही। आज भी देश एवं राष्ट्र को सुदृढ़, सुसुक्षित एवं सुयोग्य बनाने में गुरूओं का भारी योगदान है।

माता-पिता

सम्पूर्ण विश्व में माँ शब्द की व्याख्या करना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है बच्चा जब माँ के पेट में रहता है तब नौ महीने माँ को अनेक कष्ट उठाने पड़ते है फिर भी सभी कष्टों के बावजूद सुखद अहसास एवं स्वपनों के संसार में रहती है ताकि बच्चे की किलकारियाँ सुन सके। औरत को सम्पूर्णता का दर्जा तभी प्राप्त होता है जब वह माँ बन जाती है। माँ अपने बच्चों के लिए कठिनाई के समय दुर्गा, बच्चे को पढ़ाने के समय सरस्वती और अनेक रंग रूप, प्रेम भरने के लिए वात्सल्य की मूर्ति बन जाती है। मनुष्य तो क्या ईश्वर की भी जन्मदाती है। माताओं ने अनेक योद्धाओं को जन्म दिया और अपने देष, राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने प्यारे पुत्रों को भेजने का भी कार्य किया और वक्त आने पर देष पर न्योछावर भी कर दिया। माँ की ममता धरती से भी भारी है। माँ अपने सन्तान को पेट में खुन से सींचकर और पैदा होने पर अपना दूध पिलाकर पालन करती है और अपना सम्पूर्ण जीवन बच्चे का सुशिक्षित, सुयोग्य बनाने में न्योछावर कर देती है माँ का प्यार निस्वार्थ होता है माँ का प्यार सरोवर के स्वच्छ जल के समान है जिसे पीकर अति शीतलता प्राप्त होती है अगर बेटा पिषाच भी हो जाय तो भी माँ के द्वारा यह शब्द निकलते है।
‘‘ बेटा पिषाच बन जो ले कलेजा काट निकाल
तो भी उस कटे कलेजे से निकलेगा जीते रहो लाल‘‘
पिता का स्थान तो आकाश से भी ऊँचा है क्योंकि बेटे के लिए पिता के अरमान आकाष से भी ऊँचे होते है दूनिया में कोई भी किसी को अपने से आगे बढ़ता हुआ और ऊँचा उठता हुआ नही देख पाता है परन्तु एक पिता है जो अपनी संतान को अपने से ऊपर एवं बहुत ऊँचा देखना चाहता है तथा अपनी पूर्ण जिन्दगी संतानों के सुखों के लिए न्योछावर कर देता है।
‘‘धन्य है वे जो अपने माता-पिता का करते है मान
प्रभु भी करते है ऐसे लोगों का सम्मान‘‘

रविवार, 28 सितंबर 2008

'ए वेडनेसडे': फिल्म समीक्षा

पिछले शनिवार मैने अपने मित्रों के साथ ‘ए वेडनेसडे’ नाम की पिक्चर देखी। निर्देशक नीरज पांडे का यह प्रथम निर्देशन प्रयास है, और मेरी राय मे यह पिक्चर इस साल की सर्वश्रेष्ठ पिक्चरों मे से एक है।
नसीरूद्दीन शाह, अनुपम खेर और जिम्मी शेरगिल ने पिक्चर के मुख्य चरित्रों की भूमिका निभाई है। कहानी एक बुधवार को मुम्बई मे दो से छः बजे के बीच होने वाली घटनाओं की है। एक आदमी (नसीरूद्दीन शाह) पुलीस कमिश्नर प्रकाश राठोर (अनुपम खेर) को फोन करके धमकाता है कि यदि 4 खतरनाक आतंकवादियों को छः बजे से पहले जेल से रिहा न किया जाए, तो वह मुम्बई मे जगह-जगह बम विस्फोट कर देगा। राठोर इस आदमी को रोकने की पूरी कोशिश करता है। अंत मे कहानी मे ऐसा घुमाव आता है जिस्से निर्देशक एवं अभिनेताओं की बेहतरीन कला का प्रदर्शन होता है।
यह पिक्चर आम हिन्दी पिक्चरों से काफी अलग है। न तो इसमे गाने हैं, और इसकी लम्बाई केवल डेढ़ घंटे की है। इस पिक्चर का मकसद है आम आदमी का दुनिया देखने का नज़रिया बदलना। इसको ज़रूर देखिए। शायद आपका नज़रिया भी बदल जाए।

शनिवार, 27 सितंबर 2008

चमड़ी

चमड़ी - एक ऐसी चीज़ जिसका अगर हम ख्याल न रखें, तो हमारे स्वास्थ्य पर काफी बुरा असर पड़ सकता है छोटी उमर में ही हमारी खाल पर वातावरण का पूर्ण रूप से असर पड़ता है ३ या ४ की उमर में जब हम तेज़ धुप में खेलने जाए तो सूर्य की किरणे हमारी त्वचा को ख़राब कर देती हैं और इससे हमारे चमड़ी पर तत्काल बुरा प्रभाव पड़ता है अगर हम क्रीम या वैसे सामान्य चीज़ें अपनी चमडी पर नहीं लगाएं तो दस साल बाद हमें बाहर जाने में शर्म आएगी और यह हमारे आत्मविश्वास को बिगड़ा सकता है

सेहद ख़राब होने की द्रष्टिकोण पर वापस लौटकर, हम यह कह सकते हैं कि ख़राब खाल से शरारीरिक असर ही नहीं परन्तु मानसिक असर भी पड़ता है देखें तो चमडी से सम्बंधित बीमारयों में एक आम वाला एक्जीमा है सिंगापुर में मेरी कक्षा में एक विद्यार्थी को इस बीमारी की बदकिस्मती थी और साफ़ साफ़ नज़र आता था कि वह अपने दैनिक कार्यों पर ध्यान नहीं दे पाता था कक्षा में बैठे वह अपनी चमडी को नोचता रहता था और दिन के अंत में उसे इतना गुस्सा आता था कि वह गृहकार्य समय पर पूर्ण नहीं कर पाता था अगर यह उसके मुश्किलों को प्रमाणित नहीं करता है तो आप उसकी परीक्षा की हालत सुनो एक दफा उसने आधे से कम परीक्षा ख़तम करके अध्यापक को पेपर दे दिया और जब उसे पूछा गया तो उसने एक ही पंक्ति में जवाब दी, " माफ़ कीजियेगा, मैं आधे समय खारिश कर रहा था"
बुरी चमड़ी हमारे शारीरिक और मानसिक योग्यताओं को ही ख़राब नहीं करती है परन्तु हमारे शरीर के दूसरे अंगों की योग्यताओं को भी ख़राब कर देती हैं कभी कभी चेहरे पे अगर मोटे मोटे ढेर उग जायें, तो देखने और सून्गने में अधिक कठिनाई आ जाती हैं और दिन ब दिन आसान कार्य पूरे करना उन लोगों के लिए असंभव हो जाता है
मैं बाहर हर माता पिता से निवेदन करना चाहूँगा कि छोटी उमर में ही अपने बच्चों की खाल की देखभाल करें ताकि उनके बच्चों और उनकों पछताना न पड़े!

मंगलवार, 23 सितंबर 2008

खेल का महत्व

ज़िन्दगी में अक्सर खेल के महत्व को हम ध्यान नहीं देते हैं खेल में भाग लेने से सबसे पहले तो हमारे स्वास्थ्य पर उत्तम प्रभाव पड़ता है भागने से या क्रिकेट और टेनिस खेलने से हमारी सास लेने की योग्यता २ या ३ गुना बढ़ जाती है इसके अलावा, हमारे शरीर में हमारे रक्त का परिसंचरण भी सुधर जाता है खेलों में भाग लेने से, हमारा दिमाग भी ठंडा रहता है अगर हम कभी काम से बहुत थक जाएँ या काम के बोझ से छूट न ढूंढ पाये तो फूटबाल की गेंद को लात मारकर हम अपने दिमाग के हर भाग पर फिर से काबू पा सकते हैं

स्वस्थ रहने के अलावा, खेल में भाग लेने से हम दोस्ती और विश्वास के सहानुभूतियों को बड़ा सकते
हैं अक्सर कहा जाता है की खेल से ही बन्दे का असली रूप दिख जाता है मैं इस छोटी कहावत को पूरी तरह से मानता हूँ क्योंकि मैंने अपनी आंखों से अपने ही दोस्तों को खेल के मैदान पर बदलते हुए देखा है यह शायद इसलिए होता है क्योंकि मैदान पर मुकाबले पर हर खिलाड़ी का दिमाग इतना व्यस्त रहता है की वह बिना सोचे अपने को पराया बना देता है परन्तु मैं मानता हूँ कि दिन के अंत में, अतिरिक्त समय एक साथ खेलने के पश्चात लोगों के बीच प्यार की सम्भावना बढती है और क्यों न कभी कभी यहाँ वहां असम्मति हो- दोस्ती लडाई से दुश्मनी तो नहीं बन जाती ना?

आज भी कुछ समाजों में खेल को उतना महत्व नहीं दिया जाता है जितना ज़रूरी है माता पिता आज भी चाहतें हैं की उनका बेटा क्रिकेट खिलाड़ी की जगह डाक्टर बने या फिर फुटबॉल मारने की जगह घर के शांत वातावरण में किताब पड़े मैं इनकी रायों का सम्मान ज़रूर करता हूँ लेकिन मैं नहीं मानता कि शिश्य के लिए पूरी तरह से खेल बंद करना चाहिए खेल के महत्व को समाज के हर व्यक्ति को समझना चाहिए और इस संदेश को प्रसारण करने में अगर मैं कुछ कर सकता हूँ तो निह्स्संकोच होकर करूंगा

सोमवार, 22 सितंबर 2008

यदि मै राजनेता होता तो क्या करता

यदि मै बहुत बड़ा राजनेता होता तो अपने देश के लिए कई महत्वपूर्ण एवं सामाजिक भलाई के लिए कार्य करता जिससे देश में फैली असामाजिकता, अनैतिकता, अराजकता, भुखमरी एवं असंतुलित पर्यावरण को दूर कर देता तथा शिक्षा का नया आयाम देता जिससे सभी को समान रूप से शिक्षा प्राप्त होती नये अनुसंधान केन्द्रो की स्थापना करता, जलाश्यों का निर्माण कराता, गन्दगी को समाप्त करता, साफ सुथरे भवनों का निर्माण कराना, धरती पर स्वर्ग जैस माहौल बनाना यही मेरा कर्तव्य होता और उसका पूर्णतया पालन धर्मपूवर्क करता। मेरे द्वारा किये गये कार्य का पूर्ण विश्व में असर दिखाई देता।

पर्यावरण

पर्या का अर्थ प्रकृति एवं वरण का अर्थ ग्रहण करना है अर्थात जो प्रकृति प्रदत्त हमें प्राप्त हुआ है, जैसे पेड़, पौधे, जल, पहाड़, नदी, झरने आदि। उसे उसी के रूप में स्वीकार करना। परन्तु आज का मनुष्य स्वार्थवश प्रकृति प्रदत्त को समाप्त करने में लगा हुआ है। जिसके कारण मौसम में भारी बदलाव आ रहा है। हो सकता है आने वाले समय में शहर के शहर पृथ्वी के भीतर समा जाये। हमारे पूर्वजों ने प्रकृति को करोड़ांे वर्षो से सहजकर रक्खा था। परन्तु दुख के साथ लिखना पड़ रहा है कि हम लोग 50 वर्षो में प्रकृति के साथ विध्वंसात्मक कार्यवाही निरन्तर किये चले जा रहे है जिसके दुष्परिणाम बहुत ही भयानक होगें।

रविवार, 21 सितंबर 2008

सन दो हज़ार पाँच की बात है। गणित की बोर्ड परीक्षा का दिन था। खबर मिली थी कि कुछ छात्रों ने छ्ल से परीक्षा के प्रश्न हासिल कर लिए थे। अखबारों के अनुसार, परीक्षा को टालने की काफी संभावना थी। सच कहूँ तो यह जानकर मुझे थोड़ी सी प्रसन्नता हुई, क्योंकि अब मुझे पढ़ने के लिए ज़्यादा समय मिलने वाला था। परन्तु, कुछ ही समय बाद हमारे विद्यालय के प्रधानाचार्य ने टेलीफोन करके बताया कि परीक्षा उसी दिन होने वाली थी।
मै घर से निकलने ही वाला था जब डाकिया आया और मेरे हाथ मे चिट्ठी दे गया। चिट्ठी मिशिगन विश्वविद्यालय से थी। मुझे उत्तेजना से पेट मे गुदगुदी होने लगी। गाड़ी मे बैठते ही मैने चिट्ठी खोली। जैसे ही मैने पढ़ा कि मुझे मिशिगन विश्वविद्यालय मे दखिला मिल गया है, मै फूला न समाया। मैने तुरंत अपनी माँ और भाई-बहन को टेलीफ़ोन करके खुशख़बरी सुनाई।
उस दिन के पाँच महीने बाद मै दिल्ली छोड़कर मिशिगन आया। यहाँ तीन साल कब और कहाँ बीते, मुझे पता ही नही चला। आज मै ज़िंदगी के अगले मुकाम पर खड़ा हूँ। इस बार मै आमदनी प्राप्त करने के लिए नौकरी ढूंढ रहा हूँ। परन्तु अर्थव्यवस्था की दशा के कारण, इस मुकाम को पार करना असंभव लग रहा है।

माया

आँखों में थी आशाएँ
चेहरे पर मुस्कराहट
पठरी पे रेल गाड़ी
और दिल मे केवल चाहत।

लोगों की नदियों मे
मै खड़ा था अकेला
इंतज़ार की घड़ी को
साहस से मैने झेला।

सूरज ढल रहा था
होने लगा अंधेरा
ढलती रोशनी मे
दिखा न उसका चेहरा।

जब कहीं नही दिखी वो
मन थोड़ा सा घबराया
नज़र इधर से उधर गयी
परन्तु उसको नही पाया।

एक घंटे तक मै वहाँ रुका
पर कहीं नही दिखी वो
सोचा घर जाकर देख लूँ
शायद वो आप निकल गयी हो।

बाहर निकला तो देखा तो
प्रत्यक्ष थी मेरी ‘माया’
खुशी से वो चीख उठी
और मुझको गले लगाया।

बुधवार, 17 सितंबर 2008

जल का महत्व

जल का जीवन से बहुत महत्वपूर्ण सम्बन्ध है। हमारे षरीर में तीन भाग पानी का है उसी प्रकार धरती पर तीन भाग जल का था जल के कारण हरियाली थी और हरियाली से आक्सीजन प्राप्त होती है परन्तु कुछ समय से कुछ देष इन्डस्ट्रीज तथा रिहायषी भवनों के नाम पर एवं गलत निर्णयों के कारण हरियाली का विनाष कर रहे हैं तथा जल का धरती से गलत दोहन किया जा रहा है। आने वाला समय जल के लिए महा युद्ध होगा तथा धरती की सतह चट्टान की तरह हो जायेगी जिसके कारण तापमान बढ़ता जायेगा तथा मनुश्य का कद एवं आयु घटती जायेगी।
(राहुल जैन)

जैन धर्म का महत्व

जैन धर्म में अहिंसा को परमो धर्म कहा गया है अर्थात हिंसा न करना परम धरम है। गांधी जी ने भारत में जो जीत दिलवाई वह अहिंसा धर्म का पालन करते हुए ही की थी। महावीर भगवान जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर थे उन्होंने प्रथम संदेष यह दिया कि ‘‘जियों और जीने दो’’ अर्थात खुद भी षान्ति से जियो और दूसरों को भी षान्ति से जीने दो।
जैन का अर्थ है जिसने स्वयं को जीत लिया और धर्म का अर्थ है जिस वस्तु का जो स्वभाव है उसे वेसा ही मानना धर्म है। जैन धर्म में दस धर्म का बहुत महत्व है इस दस धर्म को एक-एक दिन में बांटकर उसे भादव सूदी 5 से 14 तक विषेश मनाया जाता है इसमें प्रथम दिन में उत्तम क्षमा से षुरू होकर उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम सत्य, उत्तम षौच, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम अकिंचन एवं उत्तम बृहमचर्य है।
(राहुल जैन)

मंगलवार, 16 सितंबर 2008

पाठशाला

इस साल में एक जुनिर हु. मेने फेसला की दे मुझे स्य्कोलोगी में पदनी चाहए. मुझे तीन स्य्कोलोगी कक्षे ले रही हु. एक बिओस्य्कोलोगी है, दूसरा स्य्कोपेतोलोगी है, और तीसरा एक रीसर्च का कक्षा है. सरे कक्षे बहुत दिलचस्प है. इस हफ्ते मुझे एक परीक्षा है और एक कागज़ भी लिखनी है. लेकिन मुझे स्य्कोलोगी में बहुत शोक है, इसलिये मुझे इतना बुरा नही लगती. इस साल में मिशीगन भंगरा टीम का कप्टीन हु. इस का कारण मुझे बहुत जिम्मेदारिया है. लेकिन मुझे नाचने में बहुत शोक है. इस साल बहुत अच्छी होगी.

सिंगापुर या भारत?

मेरा जन्म भारत में हुआ था लेकिन पूरी ज़िन्दगी मैं सिंगापुर में रहा हूँ आप शायद सोच रहे होंगे कि वहां रहने से मेरे रीती-रिवाजों पर बुरा असर पड़ा होगा परन्तु मैं यकीन से कह सकता हूँ कि वहां रहकर निर्बल होने की जगह मेरे संस्कार के जड़ और भी मज़बूत हो गए हैं सिंगापुर एक ऐसा देश है जहाँ विभिन्न संस्किर्तियों के मिलने झुलने को प्रोत्साहन दिया जाता है और ऐसे नाना प्रकार लोगों के बीच रहकर मैं अपनी मान्यताओं को और गौर से समझ पाया हूँ सिंगापुर एक ऐसा देश है जहाँ दूसरे लोगों के बारे में समझकर ज्ञान पा सकते हैं और उनके आस पास रहने से उनके भोजन का स्वाद लेकर एक अनोखा अनुभव भी पा सकते हैंयह सभ मानने पर मैं यह तो नहीं कह रहा हूँ कि मुझे भारत पसंद या भारत से प्यार नहीं है हर साल मैं वापस भारत जाता हूँ ताकि मैं अपने जनम-स्थान में मज़ा ले पाऊँ. और मेरे सभी रिश्तेदारों के साथ समय बिता पाऊँ असल में मैं एक विदेशी लड़का हूँ लेकिन मेरा दिल आज भी भारतीय है परन्तु अगर आप मुझसे पूछें कि मैं अपनी बाकी ज़िन्दगी कहाँ बिताना चाहूँगा तो मैं एक ही जवाब दूँगा- और वो है सिंगापुर

सोमवार, 15 सितंबर 2008

आनन अर्बोर के पहले हफ्ते

यहाँ अपने कमरे में बैठा मैं गौर से सोच रहा था की दुनिया में किसी भी विष्य पे लिखने कि इजाज़त मिलने पर भी मैं सोच नहीं पा रहा हूँ कि इस हिन्दी ब्लॉग में क्या लिखूं तो मैंने सोचा कि मैं जिमी जॉन्स से एक रसीला सेंडविच आर्डर कर लूँ अभी मैं अपने कंप्यूटर के सामने बैठकर लिखने की कोशिश कर रहा हूँ और मैंने तय कर लिया हैं कि इस पहले ब्लॉग में मैं अपने आनन अर्बोर में पहले दो हफ्तों के बारे में बात करूंगा अठारह साल सिंगापुर में रहने के बाद मिशिगन में रहने का एहसास कुछ अलग ही है सबसे पहले तो सिंगापुर का मौसम यहाँ से बिल्कुल अलग है और ठण्ड का यह नया रूप देखेके तो मैं आश्चर्यचकित रह गया हूँ इसके इलावा, अम्रीका में लोग ज्यादातर गाय खाते हैं और एक सख्त हिंदू होके यह मुझसे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होता है इसके इलावा यहाँ के निवासी अपने खाने में मिर्च बिल्कुल नहीं डालते और एक भारतीय नर होकर, मैं इस खाने से नफरत करने लगा हूँ लेकिन मैं शायद कुछ ज़्यादा ही बोल गया हूँ क्योंकि मेरे आस पास के लोगों ने मुझे यहाँ अपना मानकर मुझसे अच्छी दोस्ती जोड़ ली है यहाँ की पार्टी का वातावरण भी काफी मस्त है और हफ्ते के अंत में बिना हिचाकिचाके कहीं भी मजे के लिए घर के बहार जा सकते हैं
मैं असल में काफ़ी खुश हूँ कि मैं यहाँ हूँ और मुझे यकीन हैं कि दो - तीन महीनों में मेरी दूसरे लोगों से दोस्ती जम जायेगी और मैं उत्सुकता से अगले हफ्तों की इंतज़ार करूंगा

रविवार, 14 सितंबर 2008

आतंकवाद

तेरह सितम्बर दो हजार आठ को दिल्ली मे पाँच ज़बरदस्त बम विस्फोटों ने त्राही-त्राही मचा दी। इन धमाकों के कारण इक्कीस बेकसूर लोग मारे गए और सौ से अधिक लोग बुरी तरह घायल हुए। इंडियन मुजाहिद्दीन नाम के आतंकवादी संगठन ने इन धमाकों के लिए ज़िम्मेदारी ली है।

मेरा पूरा परिवार दिल्ली मे रहता है। जैसे ही मैने बम विस्फोट की खबर सुनी, मेरा मन घबरा गया। खबर मिली थी कि धमाके अधिक आबादी वाले इलाकों में हुए थे। मैने तुरन्त अपनी माँ को फोन लगाया, परन्तु किसी कारण फोन लग नही रहा था। चिंतित होकर मैने लगतार पंद्रह मिनट तक फोन लगाया। ऐसी स्थिती मे एक क्षण भी अर्सा लगता है। अंत मे माँ से बात हो ही गयी और पता चला कि घर मे सब लोग ठीक हैं।

आतंकवादियों की कुछ माँगे होती हैं। वे चाहते हैं कि लोग उनकी माँगों को पूरा करें। वे सोचते हैं कि इन हादसों द्वारा उनकी आवाज़ सामाज तक पहुँचती है और लोग उनकी बात सुन्ने के लिए राज़ी हो जाते हैं। परंतु, उनकी सोच बिलकुल गलत है। इन हादसों से सामाज मे भय और आतंकवादियों के प्रति घृणा पैदा होती है। आतंकवादियों का उद्देश बीच मे कहीं खो जाता है। अंत मे बेकसूर लोगों को ही हानि पहुँचती है।

हिन्दुत्व - हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति अथवा जीवन दर्शन है जो धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को परम लक्ष्य मानकर व्यक्ति या समाज को नैतिक, भौतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक उन्नति के अवसर प्रदान करता है। हिन्दू समाज किसी एक भगवान की पूजा नहीं करता, किसी एक मत का अनुयायी नहीं हैं, किसी एक व्यक्ति द्वारा प्रतिपादित या किसी एक पुस्तक में संकलित विचारों या मान्यताओं से बँधा हुआ नहीं है। वह किसी एक दार्शनिक विचारधारा को नहीं मानता, किसी एक प्रकार की मजहबी पूजा पद्धति या रीति-रिवाज को नहीं मानता। वह किसी मजहब या सम्प्रदाय की परम्पराओं की संतुष्टि नहीं करता है। आज हम जिस संस्कृति को हिन्दू संस्कृति के रूप में जानते हैं और जिसे भारतीय या भारतीय मूल के लोग सनातन धर्म या शाश्वत नियम कहते हैं वह उस मजहब से बड़ा सिद्धान्त है जिसे पश्चिम के लोग समझते हैं । कोई किसी भगवान में विश्वास करे या किसी ईश्वर में विश्वास नहीं करे फिर भी वह हिन्दू है। यह एक जीवन पद्धति है; यह मस्तिष्क की एक दशा है। हिन्दुत्व एक दर्शन है जो मनुष्य की भौतिक आवश्यकताओं के अतिरिक्त उसकी मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक आवश्यकता की भी पूर्ति करता है। इसी को हिन्दुत्व कह्ते हैं ।

गुरुवार, 11 सितंबर 2008

नमस्कार। आप सभी का मेरे ब्लाग में स्वागत है। जैसे कि आप जानते ही होंगे, मेरा नाम विदुर है। मेरा जन्म छः जून 1987 को मिशिगन के लेनसिंग शहर मे हुआ था। दो महीने की उम्र मे ही मै अपने माता-पिता के साथ दिल्ली चला गया। दिल्ली मे मै संयुक्त परिवार मे रहता था। मेरे माता-पिता, भाई-बहन, चाचा-चाची, दो चचेरे भाई एवं दादा-दादी सब एक ही घर में रहते थे। संयुक्त परिवार मे रहने का मज़ा ही कुछ और है।घर मे हमेशा कोई न कोई रहता है। कभी अकेलापन महसूस नही होता।
दिल्ली मे हमारा शीला सिनेमा के नाम से सिनेमा घर है, जिसका मेरे दादाजी ने मेरी दादी के बाद नामकरण किया। वहाँ ज़्यादातर हिंदी पिकचरें ही चलती है। इसी कारण मै हिंन्दी पिकचरों मे बहुत रुची लेता हूँ।
मेरे अनुसार 'शोले' दुनिया की सबसे श्रेष्ठ पिकचरों मे से एक है। निर्देशन एवं अभिनय मे कोई खोट नही है। यदि आप ने अभी तक यह पिकचर नही देखी हो, तो मेरी राय माने और जल्द से जल्द इसे देखने का प्रय्त्न कीजिए।

बुधवार, 10 सितंबर 2008

मंगलवार, 9 सितंबर 2008

विम्बलडन: टैनिस एक लोक्प्रिय खेल जो दुनिया में हर देश में खेला जाता है । हर साल इस खेल के चार बड़ि प्रतियोगिताएँ होति हैं । इन्में सबसे बड़ी प्रतियोगिता विम्बलडन है जो हर साल जून के महीने के अन्त के आसपास होती है । इस प्रतियोगिता को जीत्न या इस्में खेल्ना ना सिर्फ़ मेरा पर दुनिया में हर टैनिस खिलाड़ी का एक सपना होता है । इस खेल को मैं चार बरस की उमर से खेल रहा हूं । जब भी यह प्रतियोगिता दूरदर्शन पर दिखाई जाती है मैं एक पागल के तरह हर मैच देख्ने की कोशिश कर्त हूं । इन लोगों को इस खेल को विम्बलडन के मैदान पर खेल्ते देख मुझमे अप्ने इस सप्ने को साकार कर्ने की इछा जाग जाती है । विम्बलडन को जीतने की खुशी को एक टैनिस खिलाड़ी के लिये दुनिया की सब्से बड़ी ऊंचाई पर पहुन्च्ने जैसा है । पर यह सिर्फ़ एक सप्ना है । क्यून्के इसे साकार कर्ने के लिये दुनिया में सब्से अवल दर्जे का खिलाड़ी होना आव्यशक है । उस दर्जे तक पहुन्च्ने के लिये सालों का अभियास की ज़रूरत है । रोजर फ़ेडेरर , पीट सैम्प्रास और बियोर्न ब्योर्ग तीन ऐसे लोग हैं जिनों ने यह सप्ना पान्छ से ज्यादा बार पूरा किया है।

शुक्रवार, 5 सितंबर 2008

श्रुति लेख #1

एक अनुमान के अनुसार हिंदुस्तान में लगभग पंद्रह सौ भाषाएँ बोली जाती हैं। यह भाषाएँ चार अलग-अलग भाषा परिवार से हैं। इस परिवार की ज्यादातर भाषाएँ आर्य भाषा परिवारों से हैं इनमें सबसे बड़ा परिवार आर्य भाषाओं का है। इस परिवार की ज्यादातर भाषाएँ संस्कृत से आई हैं। इसमें मुख्य रूप से हिन्दी, बांग्ला, उड़िया, पंजाबी, मराठी और नेपाली वगैरह हैं। दूसरा बड़ा परिवार द्रविड़ भाषाओं का है। इनमें बड़ी भाषाएँ तमिल तेलुगु, कन्नड़, और मलयालम हैं। भारतीय भाषाओं का तीसरा परिवार ऑस्ट्रो-एशियाई परिवार है। इसकी ज्यादातर भाषाएँ भारत के आदिवासी क्षेत्रों – झारखंड, उड़ीसा, और छत्तीसगढ़ के इलाक़ों में बोली जाती हैं। इनमें संथाली और हो बड़ी भाषाएँ हैं। चौथा परिवार तिब्बती-बर्मी भाषाओं का परिवार है। ये ज्यादातर भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में बोली जाती हैं। इनमें नगा सबसे बड़ी भाषा है। इसके अलावा हिंदुस्तान पर विदेशी हुक़ुमतों की वज़ह से अरबी, फारसी, अंग्रेज़ी, फ्रेंच, स्पैनिश, पुर्तगाली और डच भाषाओं का भी बहुत प्रभाव है।