बुधवार, 28 नवंबर 2007
ओम शान्ति ओम
इस फ़िल्म का पहला भाग 1970’स में लिया है जब ओम(शाहरुख खान) एक जुन्यर आर्टिस्ट थे और शान्ति(दिपिका) एक बडी अभिनेत्री थी और ओम उससे बहुत प्यार करता था। परन्तु उन दोनों की मौत हो गयी और फ़िर दोनों का पुनर्जन्म हुआ। इस बार ओम बहुत बडा अभिनय बन गया और जब वह तीस साल क हुआ तब उसे शान्ति वापस मिलती है। इस बार शान्ति एक जुन्यर आर्टिस्ट है। परन्तु यह मूवी जरूर देखनी चाहिए और इस फ़िल्म का एक गाना है जिसमें 31 स्टार्स है और बहुत ही हिट हुआ।
-ॠषित दवे
डॅन ब्राऊन
उनका जन्म एक्सेटेर, न्यू हॅम्प्शायर में हुआ था और उनके पिता वहा के प्रसिद्ध विद्यालय में गणित सिखाते थे।उनकी माँ एक म्युसिशन थी। वह ऍम्हर्स्ट महाविद्यालय में दाखिल हुए। उनकी शादी 1997 में ब्लाय्थ न्यूलन के साथ हुई जो कि उनसे 12 साल बडी थी और उन्हे ऊपर लाने की कोशिश कर रही थी। वह ब्राऊन को एक गायक बनाने में मदत कर रही थी। 1993 में ब्राऊन ने अपनी पहली म्युझिक सीडी बाहर निकाली। इसके बाद वह अपने जन्म गाव लौट आये और उन्ही कि विद्यालय फ़िलिप्स एक्सेटेर में वे अन्ग्रेजी और स्पॅनिश सिखाने लगे।
1996 में वे शिक्षक के पद से उतर गये और अपना सारा समय किताबें लिखने में डाल दिया। 1998 में उनकी पहली किताब डिजिटल फ़ोर्ट्रेस बाहर आयी।इसके बाद उन्की अगले 6 सालों में ऍन्जल्स ऍन्ड डीमन्स, दिसेप्शन पोईन्ट और दा विन्ची कोड बाहर आयी और यह सारि किताबें न्यु यॉर्क टाईम्स बेस्ट सेलर्स के लिस्ट में शामिल हुई।
-ॠषित दवे
मंगलवार, 27 नवंबर 2007
भारत के महान ग्रंथ, भाग 2: महाभारत
महाभारत भारत का एक ऐतिहासिक ग्रंथ है। महाभारत की पावन कथा महर्षि वेद व्यास ने लिखी थी। जीवन में विरोध भाव, द्वेष, क्रोध और ईर्ष्या से सफलता कभी प्राप्त नहीं हो सकती। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण महाभारत है।
भारत के महान ग्रंथ, भाग 1: रामायण
रामायण हमारे प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथों में से एक है। पृथ्वी पर जब-जब पाप बढ़ा और धर्म की हानि हुई, तब-तब भगवान ने पृथ्वी पर मानव रूप में मानव के कल्याण करने के लिए अवतार लिया और लोगों को मर्यादा में रहने तथा धर्म का पालन करने की शिक्षा दी।
किया गया है। श्री राम अयोध्या के महाराज दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र थे, वे साहसी, वीर, आज्ञाकारी, गुरू, पितृ और मातृ भक्त थे। इसीलिए भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुशोत्तम कहा जाता है।
करना चाहिए, रामायण इसका सुंदर उदाहरण है।
एड्स :एक आधुनिक दानव
एड्स के कीटाणु जब शरीर में प्रवेश करते हैं तो तुरन्त कुछ पता नहीं चलता है क्योंकि यह शरीर पर बहुत धीरे-धीरे असर करता है । वास्तव में यह कोई रोग नहीं है बल्कि इससे शरीर की रोग से लड़ने की क्षमता धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है । ऐसी स्थिति में साधारण से साधारण रोग भी बहुत घातक होता है।
एड्स का अभी तो कोई इलाज सामने नहीं आया है। हालाकि इसका प्रभाव कम करने हेतु कुछ दवाएँ उपलब्ध हैं परन्तु ऐसी कोई दवा विकसित नहीं हुई है जो व्यक्ति को रोग से मुक्त कर सके। ऐसी स्थिति में इससे बचने का एक मात्र उपाय सावधानी है। यदि समाज का हर व्यक्ति सवधान रहे तो एड्स का फैलाव पूरी तरह रुक सकता है तथा हम इस आधुनिक दानव को पछाड़ सकते हैं ।
सिनेमा और समाज
भारत में अंगरेज़ों के शासन काल से ही फिलमें बनने का सिलसिला आरम्भ हुआ जिसका सफर मूक, संवाद के साथ मगर श्वेत-श्याम और फिर रंगीन फिलमों के दौर से गुज़रा और आज भी भारतीय फिल्में पूरी दुनिया में बड़े चाव से देखी जाती हैं। लेकिन पुरानी फिल्मों और आज के दौर की फिल्मों में एक बड़ा अंतर है कि जहाँ पुरानी फिल्में समाज के सभी वर्गों को ध्यान में रखकर बनाई जाती थीं वहीं आज का सिनेमा पारिवारिक एवं नैतिक हितों को कई तरह से अनदेखी करता है ।
जहाँ तक सिनेमा और समाज के आपसी सम्बंधों की बात है तो अब तक के अनुभवों से यह सिद्ध हो गया है कि दोनों अपनी-अपनी सीमा तक एक दूसरे को प्रभावित करते हैं । हर दशक का सिनेमा तेज़ी से परिवर्तित होते समाज को दर्शाता है । सिनेमा और समाज एक दूसरे के पूरक भी हैं । व्यक्ति थोड़ी देर के लिये ही सही, अपने दुखपूर्ण संसार से बाहर आ जाता है।जिस प्रकार साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है उसी प्रकार सिनेमा भी समाज का दर्पण बनता दिखाई दे रहा है ।
रविवार, 25 नवंबर 2007
मेरा विन्टर का ब्रेक
बुरे लोग
कोइ लोग के भावना में रह है कि सिर्फ उनके लोग अच्छे है। जैसा कोइ देसी लोग सोच ते है कि सिर्फ दुसरे देसी ही अच्छे है और कोइ और अच्छा हो ही नही सकता है। क्या यह लोग बुरे है या इन लोगो को पता नही है कि सब लोग लोग ही होते है। कोई एक से ऊपर नही है और कोई किसी से नीचे नही है। यह भावना कहाँ से आती है? मैंने अपनी अच्छी खासी ज़िंदगी अमरीका मी गुजा रही है और इस लिए मुझे लगता है सब लोग एक्स है क्योकि सब किसम के लोग यहाँ मिलेंगे। कभी भी मुझे लगा नहीं कि मुझे गोरे लोग अलग किसम से बात कर रहें है। मैंने भी कभी उनसे अलग तरीके से बात नही करी। अफ्रीकन अम्रिकांस से भी मैंने इक्दम उसी तरीके से बात करी है जसे मैं और सब से बात कर टी हूँ। और चीनी लोगो से भी वोही कर टी हूँ। मैंने देखा है कि जो लोग चोतेपन से यहाँ रह रहें है वह लोग मेरे तरें है। जो लोग दुसरे देशों से आए है उन लोगो को लगता है कि उनके लोग ही अच्छे है। यह बहुत बुरी बात है। लेकिन क्या यह लोग सच में बोरें है या इन लोगो को जो एक्सपोज़र मुझे मिल है इन को नहीं मिल और इसलिए ऐसे है?
अगले सेमेस्टर
गुरुवार, 22 नवंबर 2007
थान्क्स्गिविंग
मंगलवार, 20 नवंबर 2007
नेत्रदान-महादान
हमारे नेत्र का काला गोल हिस्सा 'कार्निया' कहलाता है। यह आँख का पर्दा है जो बाहरी वस्तुओं का चित्र बनाकर हमें दृष्टि देता है । यदि कर्निया पर चोट लग जाये ,इस पर झिल्ली पड़ जाये या इसपर धब्बे पड़ जायें तो दिखाई देना बन्द हो जाता है । हमारे देश में करीब ढ़ाई लाख लोग हैं जो कि कर्निया की समस्या से पीड़ित हैं। इन लोगों के जीवन का आंधेरा दूर हो सकता है यदि उन्हें किसी मृत व्यक्ति का कर्निया प्राप्त हो जाये । लेकिन डाक्टर किसी मृत व्यक्ति का कार्निया तब तक नहीं निकाल सकते जब तक कि वह व्यक्ति अपने जीवन काल में ही नेत्रदान की घोषणा लिखित रूप में ना कर दे ।हमारे देश में सभी राज्यों नेत्रबैंक हैं जहाँ लिखित सूचना देने पर उस व्यक्ति के देहांत के 6 घटे के अन्दर उसका कार्निया निकाल ले जाते हैं।
हमारे सभी धर्मों में दया, परोपकार, जैसी मानवीय भावनाएँ सिखाई जाती हैं ।यदि हम अपने नेत्रदान करके मरणोपरांत किसी की निष्काम सहायता कर सकें तो हम अपने धर्म का पालन करेंगे , और क्योकि इसमें कोई भी स्वार्थ नहीं है इसलिये यह महादान माना जाता है।
क्या भारत अगले 20 सालों में एक विकसित देश बन सकता है?
अशिक्षा, बढ़ती-आबादी, धार्मिक झगड़े व गरीबी सभी समस्याओं की जड़ हैं। हमारे देश में भ्रष्टाचार भी सभी सीमाएँ लाँघ चुका है । एक विकसित देश बनने के लिये सामूहिक प्रयत्नों की ज़रूरत है । जब सब लोग निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर राष्ट्र के विकास की चिन्ता करेंगे तो उन्नति को कोई नहीं रोक सकता। ज़रूरत है केवल राष्ट्र की सोती चेतना को जगाने की । हमारे देश के किसान , मज़दूर , व्यवसायी, कला क्षेत्र से जुड़े लोग, बुद्धीजीवी तथा हर क्षेत्र के तकनीकी विशेषज्ञ बहुत मेहनती व कुशल हैं ।इनकी वजह से आज देश का वृद्धि-दर 7 से 8% सालाना है । यदि यह दर करीब 10% पहुँच जाये तो हमारा राष्ट्र अगले 20 सालों में एक विकसित देश ज़रूर बनेगा।
क्या भारत अगले 20 सालों में एक विकसित देश बन सकता है?
अशिक्षा, बढ़ती-आबादी, धार्मिक झगड़े व गरीबी सभी समस्याओं की जड़ हैं। हमारे देश में भ्रष्टाचार भी सभी सीमाएँ लाँघ चुका है । एक विकसित देश बनने के लिये सामूहिक प्रयत्नों की ज़रूरत है । जब सब लोग निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर राष्ट्र के विकास की चिन्ता करेंगे तो उन्नति को कोई नहीं रोक सकता। ज़रूरत है केवल राष्ट्र की सोती चेतना को जगाने की । हमारे देश के किसान , मज़दूर , व्यवसायी, कला क्षेत्र से जुड़े लोग, बुद्धीजीवी तथा हर क्षेत्र के तकनीकी विशेषज्ञ बहुत मेहनती व कुशल हैं ।इनकी वजह से आज देश का वृद्धि-दर 7 से 8% सालाना है । यदि यह दर करीब 10% पहुँच जाये तो हमारा राष्ट्र अगले 20 सालों में एक विकसित देश ज़रूर बनेगा।
बुधवार, 14 नवंबर 2007
वन विनाश के दुष्प्रभाव
वन विनाश का मुख्य कारण वर्तमान सभ्यता है। हमारी सभ्यता उपभोग प्रधान है। बढ़ती आबादी की आवश्यकताएँ भी बढ़ रही हैं। खेती के लिये अधिक भुमि चाहिये, रहने के लिये अधिक स्थान चाहिये, जलाने के लिये लकड़ी, कागज़ की लुगदी, औद्योगिक आवश्यकताओं की पूर्ति आदि । सभी का एक ही जवाब-पेड़ काटे जाएँ अर्थात वन विनाश ।
वन विनाश के कारणों से हट कर यदि हम इसके दुष्परिणामों के बारे में सोचें तो हमें बहुत चिन्तित होना पड़ेगा । इसका सबसे बड़ा कुप्रभाव हमारे सामने वायु-प्रदूषण के रूप में है। जहाँ पेड़ों का अभाव है वहाँ वायु प्रदूषित है। और वायु प्रदूषण की समस्या शहरों में सबसे ज़्यादा है। यहाँ लोगों को कई रोग हैं जिनमें श्वास के रोग से लोग सबसे अधिक पीड़ित हैं ।
वन विनाश से वन्य प्रजातियों को भी बहुत नुकसान पहुँच रहा है और बहुत सी प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा बहुत सी लुप्त होने की कगार पर हैं। वनों का सफाया होने से भूमि की ऊपर की उपजाऊ मिट्टी वर्षा के जल से बहकर उन स्थानों पर चली जाती है जहाँ उसका उपयोग नहीं । वनों का क्षेत्र कम होने से वर्षा भी अनियमित होती जा रही है । इस सबसे 'ग्लोबल-वार्मिंग' होने लगी है। इसका सीधा कुप्रभाव मानवों पर पड़ेगा ।
वन विनाश की हानियों को देखते हुए हमें वन क्षेत्र को बढ़ाने के लिये व बचे वनों के संगरक्षण के लिये तुरन्त कदम उठाने चाहियें ।
क्रोध, एक अभिशाप
क्रोध एक शक्ति भी है। जब हमारा शरीर क्रोधयुक्त होता है तो भीतर से एक शक्ति जन्म लेती है। यह शक्ति वस्तुओं या व्यक्तियों पर तुरन्त टूट पड़ती है जिसके करण वह निर्बलों पर अत्याचार करने लगता है। पुरुष स्त्रियों व बच्चों पर टूट पड़ता है , स्त्री बच्चों पर बरस पड़ती है आदि ।
क्रोध मन की अशांति से जन्म लेता है, यह मन के अस्वीकार से उपजता है।मन उन बातों को स्वीकार नहीं कर सकता जो अहंकार के विप्रीत हों । क्रोध कहता है कि बिना चुनौतियों को स्वीकार किये , बिना कांटों का सामना किये शिखर को छू लिया जाये ।इसलिये क्रोध हिंसा का सहारा लेता है । क्रोध का अंत हमेशा पछतावे के रूप में देखा गया है।जब क्रोध शांत होता है तब दिखाई पड़ता है कि भूल हुई है व क्रोध कितना बड़ा अभिशाप है।
मंगलवार, 13 नवंबर 2007
आत्मविश्वास
आत्मविश्वास के द्वारा ही हम अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। आत्मविश्वास परिश्रम से आता है। हम अपनी योग्यता का अनुमान स्वंय ही लगा सकते हैं। जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास होता है, वह विपरीत परिस्थितियाँ होने के पश्चात भी सफलता प्राप्त करता है। जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास नहीं होता, वह हीन भाव से ग्रस्त हो जाता है और अपने सामने आए स्वर्ण अवसर को भी खो देता है। वह जीवन में कभी सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। संदेह और अनिश्चय को उठाकर फेक देना चाहिए। अपने मन में आत्मविश्वास की भावना को लाकर ही किसी काम का संकल्प करना चाहिये। तभी हम सफल हो सकते हैं।
सत्य की शक्ति
हमारे उपनिषदों में कहा गया है: “सत्यमेव जयते” अर्थात, सत्य की जीत होती है। झूट अन्त में पराजित होता है। जिन लोगों नें सत्य की विजय के लिए कष्ट उठाये, वे लोग हमारे लिए आज भी पूजनीय हैं। बचपन से ही हमें सिखाया जाता है कि हमें सदैव सत्य बोलना चाहिये। माता, पिता और अन्य लोग भी हमें यही शिक्षा देते हैं। कहा भी जाता है कि सत्य से बड़ा कोई तप नहीं, और झूठ से बड़ा कोई पाप नहीं। जिसके हृदय में सत्य का वास होता है, उसके हृदय में ईश्वर का वास होता है।
गाँधी जी ने संसार में सत्य के एक नये युग की स्थापना की थी। गाँधी जी ने सत्य और