मंगलवार, 11 दिसंबर 2007

कोई प्रोफेस्सोर्स

प्रोफेस्सोर्स अपने विधार्तियों को मद्दत करते है। लेकिन कोई कोई प्रोफेस्सोर्स अपने कामों मे इतने फसे रहते है कि अपने विधार्तियों को कुछ मद्दत नही कर पते है। यह प्रोफेस्सोर्स अपने घर के बातों में इतने फसे रहते है। जैसे मेरे रिसर्च लैब के प्रोफेस्सर है। वह अपने स्टूडेंट्स को क़द्र नही करते है। मैं अभी इतनी दुखी हूँ। यह प्रोफेस्सर ने तो मुझे पागल ही कर दिया है। अब ऐसे लोगों को कुछ कह भी नही सकते हो क्योकि फिर कुछ उलटी सीधी बात कर्देंगे। मैं थक चुकी हूँ। मैं रिसर्च में एक हफ्ते में १२ घंटे काम करती हूँ। तब भी प्रोफेस्सर को कुछ फरक नही पढ़ता है। वह बस ये कहेते चले जाते है कि और काम करो। रिसर्च प्रोफेस्सर यह भूल जाते है कि मेरे और भी क्लास्सेस है। किया करूं? मैं अभी तीन दिन से नही सोई हूँ।

सोमवार, 10 दिसंबर 2007

दुबई
रेगिस्तान से एक आधुनिक शहर तक
कुनाल झाम



दुबई
- एक ऐसा शहर जो कल के शहरों के विकास के मिलान में एक दिन में बनाया गया हैदुबई एक ऐसा शहरहै जो दुनिया के मानचित्र पर एक छोटा बिन्दु बनाता हैपरन्तु आज कल अपने प्रगतिशील कामों से दुनिया मेंइतना हल्ला मचा रह है कि वह किसी को भी अपने से कही गुना ज्यादा बड़ा होने की दोखा दिला सकता हैकोइमानता है कि दुबई सोने का शहर है तो कोइ मानता है दुबई हर ग्राहक का स्वर्ग हैदुबई जैसे गातिक शहर के बारेमें बहुत कुछ कहा जा सकता है , परन्तु मेरे जैसे आम व्यक्ति के लिये यह शहर करीबन सत्र साल पहले मेरा घरबना और आज के नवीन इमारतों के बीच भी मेरा घर हैमैं आज आपको अपने इस घर के बारे में बताऊंगा

दुबई यूनईटेद अरब एमिरिट्स देश का मुख्य शहर हैयह शहर अरब रागिस्तान में स्थित है परन्तु आज कि इनविकासों के बीच इसे रागिस्तान का हिस्सा कहलाना बहुत मुश्किल हैतीस सालों के अन्दर यह शहर एक अनंतखुले मैदान से एक प्रधान नगर बन गया हैदुबई की तेज प्रगति के पीछे बहुत कारण है जो आज दुनिया के सबसेतेज गति से बढ़ने वाली शहरों कि सूची में इसे शामिल करवाता हैदुबई की सरकार अपने सोच में बहुतआधुनिक और सीधे है, जो अनेक देशों से लोगों को आकर्षित करता रहा हैंदुबई में राजकर होने के कारणबहुत से विदेशी नियंत्रित कंपनियों ने दुबई mein मध्य पुर्वी देशों के साथ व्यापर करने के लिये अपना अड्डाबनाया हैदुबई अफ्रीकी, यूरोपीय और एशियाई देशो के बहुत ही करीब स्थित हैअतः हर साल इन देशो सेअनगिनत व्यापारियों अपने कारोबार को बढ़ाने के लिये दुबई में अपने व्यापर की स्थापना करते हैअन्य अरबदेशों की तरह दुबई को सुव्यवस्था भी तेल पर आश्रित थी, परन्तु छोटे, मध्यम और बढ़े व्यापारियों कि स्थापनाओंकी वजह से उसकी सुव्यवस्था अब मुख्य रूप से कारोबारों पर आधारित हैंइस लिये दुबई को मध्य पुर्वी देशों कासंचार और व्यापर केन्द्र माना जाता हैअरब देश का एक शहर होने के कारण हर कोइ सोचता है कि अन्य अरबदेशों जैसे दुबई में भी अधिक संख्या अरबियों कि संख्या होगी, परन्तु सच तो यह है कि दुबई कि जन संख्या में सेसिर्फ १५ % अरब हैंबाक़ी के ८५ % आबादी भारतीय, पाकिस्तानी, बंगलादेशी, फिलिपीनो और यूरोपीय लोगमुख्य रूप से बनाते हैअरब देश होने के बावजूत इतनी विभिन्नता के कारण दुबई को एक अपूर्व देश माना जाताहैइन सांस्कृतिक भेदों के बीच दुबई ने अपना खुद का एक संस्कृति विकसित किया है जिसे हर कोइ व्यक्तिदुनिया के किसी भी कोने से आकर स्वीकार कर सकता हैयही है दुबई के माहौल का कमाल!

अब जो मैंने आपको दुबई शहर का परिचय दे दिया है, मैं आपको एस विषय को चुनने का कारण बताना चाहूँगामैं आत्मविश्वास के साथ कह सकता हूँ कि मुझे किसी अनजान देश मी किसी अजनबी से बात करना कभीमुश्किल नही पड़ेगा - बस यह बात छेड़ने पर कि मैं दुबई से हूँ, सब जिज्ञासु आखों से मेरी ओर देखकर मुझ सेदुबई के बारे में प्रशन पूछना शुरू कर लेते हैंहर किसी के कौतुहल का कारण दुबई के अनगिनत अनुपम विकासहै जिसका परिणाम ऐसे अपूर्व इमारते हैं जो दुनिया में और कही नही मिलेंगेदुबई के इस बढ़ती आम्पसंदी परनजर डालने के लिये मैंने यह विषय चुना हैसाथ ही साथ मैं दुबई के विकास पर अपने विचारों को पेश करनाचाहूँगाखबरों में दुबई का एक बहुत ही खूबसूरत तस्वीर बनाया जाता हैं परन्तु मुझ जैसा निवासी ही इस प्रगतिका कीमत जानता हैं जो हम सब को बहुत भारी पड़ रहा हैं

आओं दुबई के इन विकासों पर रोशनी डाले२००२ तक दुबई कि स्थावर सम्पदा शेत्र घरेलू और छोटा थाइसकाकारण यह था की विदेशियों को दुबई में ज़मीन खरीदने कि अनुमति नही थीसरकार के अनुसार सिर्फ अरबलोग दुबई में ज़मीन खरीद सकते थेहर विदेशी हर साल अपने घर और अपने दफ्तर का किराया अपने ज़मींदारको देते थेचाहे कोई क्यों कितने भी सालों से एक घर में रहता रहा हो , वह भी इस घर का मालिक नही बनसकता हैदुबई में राजकर नही है पर यह किराये का व्यवस्था एक किसम का कर ही माना जाता हैपरन्तु सन्२००२ में दुबई के शासक ने यह नियम मिटा दिया जो आज के प्रगति का मुख्य कारण हैउस वर्ष के बाद कोई भीदुबई में सम्पति प्राप्त कर सकता हैदुबई के इस विभिन्न माहौल में हर कोई अमीर व्यक्ति रहना चाहता है औरचारों ओर से दुबई के स्थावर संपदाओं में लोग रूपया लगा रहे हैहर किसी को पता था कि इस नए मार्केट मेंरूपया डालने से हर किसी को मुनाफा होगा , जहाँ से दुबई के अनगिनत निराले अनुमान की शुरुवात हुई
दुनिया का हर कोई पढ़ा लिखा व्यक्ति आज 'बुर्ज अल अरब' को जानता हैयह होटल दुनिया का सबसे ऊँचा औरसबसे विशाल होटल हैइस इमारत की स्थापना होने पर यह दुनिया का अकेला होटल था जो 'सेवेन स्टार ' होटलमाना जाता थाइस होटल ने दुबई को पूरे दुनिया के सामने एक पहचान दी और दुनिया के उमंगी निशेशको कोअपने ओर आकर्षित किया । 'दुबई इंटरनेट सिटी ' और 'दुबई मीडिया सिटी' द्वारा हर कोई माध्यम या अपनेव्यापार की स्थापना आसानी से कर सकता है । 'दुबई इंटरनेट सिटी' में 'मईक्रोसोफ्त' , 'रॉयटर्स' , 'सोनी' इत्यादिजैसे विश्वीय कंपनियों ने दुबई को अपने कारोबार का महेत्व्पूर्ण केंद्र बनाया हैइन इमारतों में तकनीकीअवसंरचना का तुलना दुनिया के उच्चतर व्यापार केन्द्रों से किया जा सकता है । 'दुबई मरीना ' प्रोजेक्ट के समाप्तहोने पर वह दुनिया का सबसे बड़ा आवासी परियोजना है जिसमे ४० इमारतें की स्थापना २००७ में हो गयीदुबईके शासकों ने सोचा कि क्यों सम्पति को एक नया रुप दें? इस विचार को मानव निर्मित द्वीप द्वारा पूरा कियादुनिया के हर कोने से इस परियोजना को जीवित करने के लिए निर्माता बुलाये गए और 'पाम डेरा ' , 'पाम जुमैरा ' और 'पाम जबल अली ' परियोज्नाये को बनाने का निश्चय कियाइन मानव द्वीपों को खजूर के पेड़ के आकार मेंबनाया जा रहा हैइन द्वीपों पर शेह्र को झेलने की योजना की जा रही है जिस से इन द्वीपों पर हर किसी मनोहरताका प्रबंध किया जाएगा

बुर्ज दुबई इमारत आज दुनिया का सबसे उंच इमारत हैइस परियोजना को समाप्त होने में अभी तक साल सेज्यादा वक्त बचा है और समाप्त होने पर यह इमारत आसमान को छूता हुआ आठ सौ मीटर तक खड़ा होगाअपनेही सफलता को चुनौती देते हुए 'अल बुर्ज' नमक इमारत की स्थापना करने की घोषणा की गयी है जो हजार मीटरके ऊँचाई को पार करेगा । 'दुबई मॉल ' बुर्ज दुबई के इमारत के सामने बनाया जा रह है जो दुनिया का सबसेविशाल मॉल होगा

इन सब परियोजनाओं के अलावा ऐसे और भी अजीब निर्माणों की घोषणा की गयी है जो दुनिया में और कही भीकिसी ने बनाने की सोच भी नही की होगी।' हईद्रौपलीस' दुनिया का पहला होटल होगा जो पानी के बीस मीटर नीचेबनाया जाएगा । ' वर्ल्ड ' दुनिया के रुप में एक मानव निर्मित द्वीप होने वाला है जो छोटे छोटे द्वीपों से बनायाजाएगाइन द्वीपों को सिर्फ एक पूरे द्वीप जैसा खरीदा जा सकता है जिसे सिर्फ पानी या हवाई जहाज द्वारा पंहुचाजा सकता हैइन परियोजनाओं की सूची की कोइ अंत ही नही हैंदुबई के इन अजीब परियोजनाओं की सूची कीकोइ अंत ही नहीं हैदुबई के इन अजीब परियोजनाए मी पैसा डालने के लिये बहुत से ऐसे लोग है जिनके बैंकबैलेंस पर इसका कोइ असर नहीं पड़ता

आप यही सोच रहे होंगे कि इन सब निर्माणों को समाप्त करने के लिये और दुबई के इस ख्वाब को पुरा करने केलिये लोग कहाँ से रहे हैं? भारत और पाकिस्तान जैसे देशों के करीब होने के कारण हर रोज बहुत सारे श्रमिकइन इमारतों को खड़ा करने के लिये और अपने परिवार के लिये रोजी रोटी कमाने के लिये जाते हैंयुनईतेदअरब एमिरिट्स की जन संख्या में से ८० % श्रमिक लोग बनाते हैंहर कोइ जाता अपने दिल के अरमानों पुराकरने को परन्तु रह जाता हैं निराश, लाचार और थका हुआसभी लोग जानते है दुबई कि प्रगति कि कहानीपरबहुत कम लोग दुबई में मानव अधिकार के अतिक्रमण के बारे में जानते हैकहना हैं कि आठ मजदूरों को एकसाथ कमरे में रहने का प्रबंध किया जाता हैंदुबई के घर्मी के मौसम में कड़ी धूप में काम करवाया जाता हैमहिनूंभर कि तन्ख्वा मजदूरों को नहीं दिया जाता है जिनकी वजह से वे घर पैसे नहीं भेज सकतेवे खड़े करते हैं दुनियाके अन्य अजूबे परन्तु खुद रोजी रोटी कर चैन कि नींद तक नहीं सो सकता हैक्या यही इन्साफ है?

आजकल बहुत सरे निवासियों इन मजदूरों पर दया खाकर पानी और खाने का बंदवस्त कर रहे हैदुबई में स्थितभारत के कौंस्लेट ने इस बात कि योजना भारत कि सरकार से भी की जिसके कारण दुनिया को दुबई स्थितनिर्माण कंपनियों के इन काले करतूतों के बारे में पता चाल रहा हैसं २००६ में कुछ मजदूरों ने अपने स्थिति सेखुश होने पर बुर्ज दुबई के दफ्तरों मी काफी तोड़ फोड़ किया और सरकार को इस नाइंसाफी के बारे में सूचितकिया

हम आम निवासियों की स्थिति भी कुछ ऐसे ही है - परेशान, लाचार और थका हुआपहले तो इन सब नएनिर्माणों के बारे में सुनकर सभी चौंके हुए थे और गर्व से अपने घरवालो से इन निर्माणों के बारे में बात छेड़ते थेपरन्तु जैसे वक्त बढता गया , रास्ते खराब होते गए साथ ही साथ यातायात भी काफी बढ़ गया जिसकी वजह सेपांच किलोमीटर की दुरी को सफर करने के लिये एक घंटा लग जाताआज दुबई की स्थिति काफी गंभीर हो गयीहै

इन सब परियोजनोओं के कारण दुबई की जन संख्या पिछले पांच सालो मी दुगनी हो गई है और इन सब नएनिवासियों और निर्माणों को झेलने के लिये दुबिया शहर काफी कठिनाईयों का सामना कर रहा हैंकुछ ही दिनपहले पूरे दुबई की बिजली एक पूरे दिन के लिये चली गयी थी - दुबई का पुरा कारोबार बंद पड़ गया था औरकंपनियों को बहुत नुकसान हुआ थाइसका कारण इन ढेर सारे परियोजनाए ही थी जो बहुत बिजली इस्तिमालकर रही थी

दुबई के उत्तर ओर को, जहाँ इन सब निर्माणों का प्रबंध हो रह हैं, 'नया दुबई' का नाम दिया गया हैक्या दुबई किकमजोर मिटटी इस नये दुबई को झेल सकेगी? क्या दुबई के इस प्राकृतिक खिलवाड़ का असर हिम आमनिवासियों पर पड़ेगा? हमारे घर का किराया इन निर्माणों की वजह से हर साल बढ़ रह है और बुर्ज दुबई के सामनेही होने के कारण दो चार साल में दुगना होने की सम्भावना रखता हैसिर्फ नए इमारतों को खरीदा जा सकता हैपुराने इमारतों और मकानों मी रहने वाले किराया देते रहेंगे जब तक सरकार कोइ नया नियम बनाती हैक्या हमकई सालों से रहने वाले निवासियों को बढ़ते हुए निर्वाह व्यय के कारण कही और अपना घर बसना पड़ेगा? इन सबबड़ते हुए उठावों कि वजह से कंपनियों भी बहुत सरे कर्मचारियों को काम से निकाल रहे हैं

हर देश कि प्रग्रती जरुरी है - परन्तु इस प्रग्रती का भी कोइ हद होता है जो शहर के स्थिरता के लिये जरुरी हैलगता है बहुत जल्दी दुबई इस हद को पार करके अस्थिरता की ओर बढ़ रहा हैं

इन परियोजनाओं का सपना तो दुबई ने दिखा लिया है - अब वक्त ही बताएगा कि दुबई अपना इस एक दिन मेंनवीन शहर को खड़ा करने का सपना पूरा कर पायेगा या नही

बुधवार, 5 दिसंबर 2007

क्रिसमस

क्रिसमस इसाई समुदाय के लोगों का महापर्व है। यह पर्व हर वर्ष 25 दिसम्बर को मनाया जाता है । इस दिन ईसा मसीह का जन्म हुआ था । सभी इसाई ईसा मसीह की शिक्षाओं को ही अपने धर्म का मूल आधार मानाते हैं । ईसा मसीह को जीसस क्राइस्ट भी कहते हैं । ईसाई मानते हैं की ईश्वर ने इस संसार की रचना की है तथा अपने दूतों के माध्यम से लोगों को संदेश देते हैं । ईश्वर के पुत्र जीसस इस धरती पर लोगों को जीवन की शिक्षा देने के लिये आये थे। जीसस ने कहा था कि ईश्वर सभी व्यक्तियों से प्यार करते हैं तथा हमें प्रेम को जीवन में अपनाकर ईश्वर की सेवा करनी चाहिये । ईश्वर की सेवा का सबसे उत्तम मार्ग दीन दुखियों की सेवा करना है । क्रिसमस का त्योहार हमें यही पावन संदेश देता है।

ईसाइ परिवारों में क्रिसमस की तैयारी कई दिनों पूर्व से ही होने लगती है । दुकानें सजाई जाती हैं व तरह-तरह के केक - मिठाइयाँ मिलती हैं ।क्रिसमस के दिन एक दूसरे को केक व अन्य उपहार बाँटे जाते हैं तथा क्रिसमस की बधाइयाँ दी जाती हैं । चारों ओर उत्सव व उल्लास का समा बन्ध जाता है । घरों के आंगन में क्रिसमस ट्री लगाने तथा इसे खूबसूरती से सजाने का रिवाज़ भी है । चर्च व ईसाइघरों में मोंमबत्तियाँ जलाकर सामूहिक पूजा होती है ।

क्रिसमस का त्योहार जनसमुदाय को भाईचारा, मानवता व परोपकार का पावन संदेश देता है । यह उत्सव सुख, शांति व समृद्धि का सूचक है।

समय का सदुपयोग

समय संसार की सबसे बहुमूल्य चीज़ है क्योंकि एक बार गुज़रा हुआ समय कभी वापिस नहीं आता । 'टाईम इज़ मनी' अर्थात 'समय धन है ' की अवधारणा किसी भी काल में झुठलाई नहीं जा सकती । समय को व्यर्थ करना संसार की सबसे बड़ी मूर्खता है । जन्म से मरण तक का समय व्यक्ति का अपना है , यह चूक जाये तो फिर कुछ भी हाथ नहीं लग सकता ।

आलसी व्यक्ति समय को यूँ ही गवाँ देता है, अपने कार्य को कल पर छोड़ने वाला यानी भविष्य में करने की बात करने वाला ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार लेता है । अभी जो समय गुज़र रहा है क्या कभी इसको वापिस लाया जा सकता है ? यदि नहीं तो फिर हम किस प्रकार समय का सदुपयोग करने वाली बात भुला सकते हैं ? गाँधीजी न केवल धन की पाई-पाई का हिसाब रखते थे परन्तु समय के क्षण-क्षण का भी हिसाब रखते थे ।संसार में ऐसा कौन सा महापुरुष हुआ है जिन्होने समय की महत्ता को नहीं समझा हो ? समय को काटने भर की जिन्हें फिक्र हो वे कभी भी इसके मूल्य को नहीं समझ पाते हैं और अंत में हाथ मलते देखे जाते हैं ।

समय का सदुपयोग बुद्धिमान व्यक्ति ही कर पाते हैं अधिकतर लोग तो व्यर्थ ही समय गपशप, लड़ाई-झगड़े, अहंकार के प्रदर्शन , आडंबर आदि में बरबाद करते हैं ।विद्यार्थी पढ़ाई करने की जगह घंटों टीवी देखने में नष्ट करते हैं । कुछ लोग दूसरों की निंदा करने में समय गवाँ देते हैं ।

समय का सदुपयोग तभी सम्भव है जब हम इसकी आदत डाल लें । कुछ न करने से कुछ करना अच्छा है , इसकी जिन्हें समझ है वे दौड़ में बहुत आगे चले जाते हैं । समय को पकड़ कर रखना सम्भव नहीं है , यह तो भागा ही चला जाता है। अतः एक एक क्षण बहुमूल्य है समझकर उसका सदुपयोग करना ज़रूरी है ।

संस्कृत भाषा


संस्कृत भाषा भारत की ग़ौरवमय अतीत का मुकुट है। संस्कृत भाषा एक अमूल्य एवं अनुपम नीधी है । प्राचीन काल से हमारे जीवन पर उसका बहुत प्रभाव पड़ा है। इस भाषा को हम देव भाषा भी कहते है। संस्कृत जाति, क्षेत्र तथा काल से परे समस्त मानव समाज की भाषा है। सांस्कृतीक वीकास का जैसा चित्रण संस्कृत साहित्य में उपलब्ध है, वैसा चरित्र कहीं और पाना दुर्लभ है । हमारे उपनीषद, रामायण ,महाभारत ,गीता और भागवत वेद पूराण, सभी संस्कृत भाषा में हैं और इनका विश्व भर प्रचार है। जर्मन ,ग्रीक, लैटिन भाषा में संस्कृत विषय पर अनेक ग्रंथ लीखे गये हैं।

मुग़ल बादशाहों के द्वारा पुस्तकालयों के जला देने के उपरांत भी आज संस्कृत के 60000 से अधिक ग्रंथ उपलब्ध हैं। जर्मनी , फ़्रांस, इंग्लेण्डस्ट्रेलीया, अमेरीका आदी देशों के वीद्वानों को संस्कृत भाषा ने आकर्षित कर दिया है। वे लोग आज भी भारत आकर संस्कृत के ग्रंथो में ज्ञान ढुँदते है। आयुर्वेद, चीकीत्सा एवं योग तथा प्रणायाम आदी संस्कृत में लीखे वेदों और पुरणों की देन हैं।

विज्ञान के क्षेत्र में भी संस्कृत का बहुत बड़ा योगदान रहा है । आयुर्वेदिक और ज्योतिष शास्त्रों के ज्ञान ने विश्व को एक बड़ी दीशा दी है। संस्कृत भाषा विश्व की प्राचीनतम भाषा है। इसे साहित्य का सबसे बड़ा भंडार होने का गौरव प्राप्त है। संस्कृत विश्व को सही दीशा देती है । विश्व की प्रगती संस्कृत भाषा की बहुत बड़ी देन है।

क्या पैसा सब कुच्छ है?


पैसा सब लोगो की बडी चाहत! समाज में ऊचा दर्जा, मन चाहिए गाडीया और कुच्छ भी खरीदने की ताकत्।कौन नही चाहता ऐसी चीज़े!

सॅमुएल एल जॅक्सन ने एक बार कहा था कि ‘जो लोग कहते है कि पैसा सब कुच्छ नही होता उन्होंने कभी पैसा देखा ही नहीं।

लेकिन मैं इस बात से सहमत नही हूँ। मुझे नही लगता कि पैसे से दुनिया की सारी खुशियों मिलती है।पैसे का खुदका एक महत्व है । पर हमें पैसे की लालच में फ़स नही जाना चाहिए और इस बात को जानना चाहिए कि परिवार और दुसरे लोगो के साथ अच्छा बरताव और भी ज्यादा महत्व रखते है।

पर सारे संसार में लोग अपने फ़ायदे के लिये दुसरो को फ़साते है। कभी कभी दुसरों का खून तक कर लेते हैं।इस्सी कारण मेरे मन में ऐसा विचार आत है के दिलों में पैसो के अलावा और किसी के लिये प्यार है कि नहीं?

मुझे शायद पैसे की लालच नहीं है क्योंकि जन्म से ही मेरे घर में कभी पैसो की कमी नही थी । हर किसी का अपना विचार होता है और अपनी खुदकी ज़रूरतें ।

पढाई


कई लोग बारावी कक्ष के पढाई को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं। मैं भी उन लोगों में से एक था लेकिन मिशिगन आने के बाद मेरी राय बदल गयी है। यह तो मेरे मूल विषय से तो अलग बात हो गयी।

मैंने बारावी कक्षा को बहुत महत्व नही दिया था और इसी लिये मेरे अंक मेरी इच्छा के अनुसार नही आये। खैर जो बीत गया वो बीत गया लेकिन मैं बहुत बार सोचता हूँ की अगर मैं ठीक तरह से पढ्ता तो उसका मेरी आज के ज़िंदगी में क्या परिणाम होता।

मेरा यह मानना है कि अगर हम एक साल के लिये मन लगाकर पढे तो हमारे मन में पढाई के लिये मानो एक अनोखी जगह बन जाती है। हम पढाई को कभी टालते नही और ‘आज करे सो अब कर’ को सिद्ध कर सकते हैं। परंतु पहला एक साल बहुत मुश्किल होगा क्योंकि इस समय में हमें हमारी बचपन से चली आयी बुरी आदतों को बदलना होगा।

यह बात मैंने खुद महसूस की है। अगर मैं कुच्छ चार दिन ठीक तरह से पढता हुं तो पाच्वें दिन की पढाई बहुत आसान लगती है। यह सिर्फ़ अच्छे आदत की बात है जो हमे खुद मैं डालनी है।

मैं यह आशा करता हूँ कि एक दिन सब लोग इस बात को जान जायेंगे और खुद को सुधारेंगे।

सति

सति एक हिंदु धर्म की प्रथा है बल्कि थी जिसमें एक विधवा औरत को अपनी जान कुर्बान करनी होती उसके ही पती के क्रिया कर्म के वक्त्। इस प्रथा की शुरुआत लोग मान्ते है ऐसे हुई- जब दक्षायणि अपने पती शिवा का अपमान अपने पिता दक्षा से नही सह सकी तब उन्होंने अपनी जान कुर्बान कर दी। परंतु आज के दिन सति के विरुद्ध ऐसे सक्त नियम हैं जिसके कारण सति की प्रथा अब काफ़ी हद तक बंद हो गयी है।
400 ए-डी में गुप्ता राज के अंत तक यह प्रथा तो बहुत ही मशहूर हो गयी थी। परंतु कई पुस्तकों के अनुसार यह प्रथा महाभारत के वक्त भी कायम थी। फ़िर इसके बाद राजस्थान और अनेक पश्चिम भारतीय प्रांतों में यह प्रथा शुरू हुई की इन मरे हुए विध्वाओं की श्रद्धा में पत्थरों को मंदिर में रखकर पूजा की जाती थी।
इसके इलावा बेंगाल में भी सति बहुत देखी जा सकती थी।1813-1828 इन पंद्रह सालों में करीबन 8000 औरतों की म्रुत्यु सति के कार्ण हुई। इन दिनो राजा राम मोहन रॉय ने सति के विरुद्ध लढाई शुरू की और वे काफ़ी सफ़ल रहे। मोगल राज्य में इस प्रथा का कोई निशाना नही दिख रहा था जबकि सारे देश में खास करके पश्चिम में तो बहुत सारे केसिस थे सति के।
-ॠषित दवे

जेफ़्री आर्चर

जेफ़्री आर्चर एक ब्रितानी लेखक है जो दुनिया भर में मशहूर है और मेरे भी सबसे प्रिय लेखक है।वे एक प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ भी रह चुके है परंतु बहुत विवादों के कारण वे जेल भी जा चुके। यहा जेल में उन्होंए तीन किताबें लिखी जो बहुत ही मशहूर बनी।
उनका जनम लंदन में हुआ और वे समरसेट में बडे हुए। वे फ़िर ऑक्स्फ़र्ड महाविद्यालय में शिक्षक भी बने। इसके बाद वे अनेक चॅरिटीज़ के लिये काम करने लगे और उन्होंने युनाय्टेड नेशन्स के चॅरिटी के लिये भी काम किय जहा विवादों ने उनका साथ नहीं छोडा कि वे पैसे खा रहे थे।
उनकी पहली किताब थी- ‘नॉट अ पेनी मोर, नॉट अ पेनी लेस’ जो मुझे बहुत ही पसंद है।
इसके बाद उन्होंने केन ऍंड एबल लिखि जो बहुत ही प्रसिद्ध थी और न्यु यॉर्क टाईम्स बेस्ट सेलर्स के लिस्ट में भी पहुँच गयी। इस किताब को टि-वी पर एक छोटी सी सिरीयल के रूप में भी देखा गया।
इसके बाद उनकी एक किताब आयी सन्स ऑफ़ फ़ॉर्च्युन जो बहुत ही अच्छी थी और इसी किताब की वजह से में उनकी सारी किताबें पढने लगा।
-ॠषित दवे

मंगलवार, 4 दिसंबर 2007

असफलता ही सफलता की कुंजी है

प्रायः सफलता प्राप्त करने पर हमारी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता
है और हमारा लक्ष्य पूरा होता दिखाई देता है । परंतु यदि थोड़ी भी असफलता मिलती है तो हम निराश और दुखी हो जाते है हमें एसा नहीं सोचना चाहिए । असफलता हमें यह ज्ञात दिलाती है, कि हमसे अधिक परिश्रम करने वाला कोई दूसरा भी हो सकता है, और इस प्रकार हमारे मन में अधिक प्रयत्न करने की इछा जागृत करती है । असफलता हमें अधिक परिश्रम करने के लिए प्रेरित करती है । सफलता और असफलता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, इसलिए हमें असफल होने पर निराश नहीं होना चाहिए ।

जीवन में असफलता का मूँह देखना भी ज़रूरी होता है । लगातार सफलता प्राप्त करने से मनुष्य के मन में अहंकार की भावना आ जाती है । अहंकार हमारे मानवीय गुणों के विकास में व्यवधान पैदा करता है । अहंकार मनुष्य के सभी गुणों को नष्ट कर देता है ।

जिस प्रकार रात्रि के उपरांत सूर्योदय का होना निश्चित है, उसी प्रकार असफलता के पश्चात सफलता का होना भी निश्चित है । असफलता, सफलता के प्रयासों में निरंतरता लाती है । इसलिए हमें असफल होने पर घबराना नहीं चाहिए। असफ़लता तो हमें अपना मार्ग दिखाती है और हमारे जीवन के लक्ष्य पूर्ति के प्रयासों में निरंतरता लाती है। इसलिए हमें दोनो को एक समान समझना चाहिए । हमारे जीवन के लिए दोनों ही आवश्यक हैं ।

बुधवार, 28 नवंबर 2007

ओम शान्ति ओम

ओम शान्ति ओम यह फ़िल्म दिवाली के दिन रिलीज़ हुई थी। माना जात है कि कई सालों में यह सबसे बडी फ़िल्म है। भारत में अपने पहले ही हफ़्ते में उन्होंने 20 मिल्ल्यन डॉलर बना लिये। आज यह फ़िल्म यु-के के भी टॉप दस फ़िल्मों के लिस्ट में है जो काफ़ी गर्व की बात है।इस फ़िल्म के उत्पादक स्वयं शाहरुख खान ही है जो कि फ़िल्म के अभीनेता भी है। इस फ़िल्म के निर्देशक उनकी दोस्त फ़राह खान है और यह फ़िल्म उनकी दुसरी ही फ़िल्म है और उन्होंने कमाल का काम किय है। इस फ़िल्म में दिपिका पदुकोण पहली बार अभिनेत्री बनी है और उन्होंने बहुत अच्छी ऍक्टिन्ग की है।
इस फ़िल्म का पहला भाग 1970’स में लिया है जब ओम(शाहरुख खान) एक जुन्यर आर्टिस्ट थे और शान्ति(दिपिका) एक बडी अभिनेत्री थी और ओम उससे बहुत प्यार करता था। परन्तु उन दोनों की मौत हो गयी और फ़िर दोनों का पुनर्जन्म हुआ। इस बार ओम बहुत बडा अभिनय बन गया और जब वह तीस साल क हुआ तब उसे शान्ति वापस मिलती है। इस बार शान्ति एक जुन्यर आर्टिस्ट है। परन्तु यह मूवी जरूर देखनी चाहिए और इस फ़िल्म का एक गाना है जिसमें 31 स्टार्स है और बहुत ही हिट हुआ।
-ॠषित दवे

डॅन ब्राऊन

डॅन ब्राऊन मेरे प्रिय लेखकों में से एक है। उनकी आज तक चार किताबें बाहर पडी हैं और मुझे चारों बहुत पसन्द आयी। उनकी पुस्तकों की एक बात यह है कि वह बहुत ही सोच विचार के बाद लिख्ते है। उनका जन्म जून 22 1964 में हुआ था। 2003 की उनकी ‘द डा विन्ची कोड’ किताब विश्व प्रसिद्ध बनी और दो साल पहले उसपर एक मूवी भी बनायी गयी। परन्तु मेरे खयाल से यह मूवी किताब जितनी अच्छी नही थी।
उनका जन्म एक्सेटेर, न्यू हॅम्प्शायर में हुआ था और उनके पिता वहा के प्रसिद्ध विद्यालय में गणित सिखाते थे।उनकी माँ एक म्युसिशन थी। वह ऍम्हर्स्ट महाविद्यालय में दाखिल हुए। उनकी शादी 1997 में ब्लाय्थ न्यूलन के साथ हुई जो कि उनसे 12 साल बडी थी और उन्हे ऊपर लाने की कोशिश कर रही थी। वह ब्राऊन को एक गायक बनाने में मदत कर रही थी। 1993 में ब्राऊन ने अपनी पहली म्युझिक सीडी बाहर निकाली। इसके बाद वह अपने जन्म गाव लौट आये और उन्ही कि विद्यालय फ़िलिप्स एक्सेटेर में वे अन्ग्रेजी और स्पॅनिश सिखाने लगे।
1996 में वे शिक्षक के पद से उतर गये और अपना सारा समय किताबें लिखने में डाल दिया। 1998 में उनकी पहली किताब डिजिटल फ़ोर्ट्रेस बाहर आयी।इसके बाद उन्की अगले 6 सालों में ऍन्जल्स ऍन्ड डीमन्स, दिसेप्शन पोईन्ट और दा विन्ची कोड बाहर आयी और यह सारि किताबें न्यु यॉर्क टाईम्स बेस्ट सेलर्स के लिस्ट में शामिल हुई।
-ॠषित दवे

मंगलवार, 27 नवंबर 2007

भारत के महान ग्रंथ, भाग 2: महाभारत

महाभारत भारत का एक ऐतिहासिक ग्रंथ है। महाभारत की पावन कथा महर्षि वेद व्यास ने लिखी थी। जीवन में विरोध भाव, द्वेष, क्रोध और ईर्ष्या से सफलता कभी प्राप्त नहीं हो सकती। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण महाभारत है।

सम्राट भरत, राजा दुष्यंत और ऋषि-कन्या शकुन्तला के पुत्र थे। भरत बड़े पराक्रमी, वीर, उदार और विद्वान थे उनके नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा। उन्हें अपने पुत्रों में से कोई ऐसा योग्य पुत्र दिखाई नहीं दिया, जिसे अपना उत्तराधिकारी बना सकें। अतः उन्होने ऋषि भरद्वाज के ज्येष्ठ पुत्र को अपने बाद राज्य का उत्तराधिकारी घोषित किया, और इसी के साथ भारत में प्रजातंत्र का प्रारंभ हुआ।

कई वंशज बीतने के पश्चात भरत के वंश के ही राजा शांतनु हुए जो बहुत गुणवान, वीर और प्रजापालाक थे उनके पुत्र देवरथ थे। उन्होंने अपने पिता की इच्छा पूर्ति के लिए अविवाहित रहने की भीषण प्रतिज्ञा की। इस कारण उनका नाम भीष्म पड़ गया। आगे चलकर वे भीष्म पितामह के नाम से भी जाने गये। महाराज शांतानु और सत्यवति से दो पुत्र चित्रांगद और विचित्रवीर्य हुए चित्रांगद बहुत जल्दी युद्ध में मृत्यु को प्राप्त हो गये। विचित्रवीर्य की दो रानियाँ थीं। अंबिका और अंबालिका। कुछ समय पश्चयात विचित्रवीर्य निहसांतान ही मृत्यु को प्राप्त हो गये।

रानी सात्यवती के बुलाने पर महर्षि वेद व्यास आए। वे बहुत ही कुरुप थे। वेद व्यास अपने योग-बल से कुछ भी कर सकते थे। इसलिए जब अंबिका के कक्ष में वे गये, तो उनका कुरुप चेहरा देखकर उनकी आखें बंद हो गयी। इस कारण उनका पुत्र धृतराष्ट्र, नेत्रहीन पैदा हुआ। उसके बाद वेद व्यास अंबालिका के कक्ष में गये, तो अंबालिका का चेहरा भय से पीला पड़ गया। उनके पुत्र बीमार रहते थे और उनका नाम पांड़ू पड़ गया। तीसरा पुत्र दासी से हुआ जो बहुत ही बुद्धिमान और विवेकी था, उसका नाम विदुर रखा गया। धृतराष्ट्र से सौ पुत्र और एक कन्या का जन्म हुई और पांड़ू से पाँच पुत्र हुए। धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव कहला और पांड़ू के पाँचो पुत्र पांडव कहलाए।

पांडवों का सत्य पर विश्वास था। कौरवों अहंकारी और दुराचारी थे। वे छल कपट में विश्वास करते थे। पांडवों और कौरवों में राज्य के लिये युद्ध हुआ, परंतु अंत में जीत पांडवों की हुई और कौरवों की विशाल सेना को हार का मुँह देखना परा। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि असत्य पर सत्य की विज्य हुई। महाभारत कौरव-पांडव युद्ध का प्रतिफल था। महाभारत हमें धर्म के मार्ग पर चलने की शिक्षा देता है।

भारत के महान ग्रंथ, भाग 1: रामायण

रामायण हमारे प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथों में से एक है। पृथ्वी पर जब-जब पाप बढ़ा और धर्म की हानि हुई, तब-तब भगवान ने पृथ्वी पर मानव रूप में मानव के कल्याण करने के लिए अवतार लिया और लोगों को मर्यादा में रहने तथा धर्म का पालन करने की शिक्षा दी।

रामायण की रचना आदि कवि वालमिकी ने संस्कृत भाषा में की थी। रामायण में श्री राम का चरित्र-चित्रण
किया गया है। श्री राम अयोध्या के महाराज दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र थे, वे साहसी, वीर, आज्ञाकारी, गुरू, पितृ और मातृ भक्त थे। इसीलिए भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुशोत्तम कहा जाता है।

श्री राम बहुत ही पराक्रमी थे। विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा करते समय उन्होंने एक तीर से अनेक राक्षसों का वध कर दिया था। वह धनुष-बाण चलाने की कला में अद्वितीय थे। इसीलिए आज भी किसी वस्तु की अमोघता बताने के लिए राम-बाण शब्द का प्रयोग कीया जाता है।

श्री राम ने 14 वर्ष का वनवास स्वीकार करके पिता के वचन की रक्षा और माता की आज्ञा का पालन किया। रामायण पढ़ते समय ऐसा कहीं भी दिखाई नहीदेता, जहाँ वे मर्यादा-हीन हुए हों। माता, पिता एवं गुरुजन के प्रति विनम्रता तथा स्त्री जाति के प्रति सम्मान, राम के मर्यादा पालन को प्रदर्शित करता है।

श्री राम ने सूग्रीव और विभीषण के साथ मित्रता बहुत ही सुंदर ढंग से निभायी। भाइयों के प्रति स्नेह किस प्रकार
करना चाहिए, रामायण इसका सुंदर उदाहरण है।

राक्षस-राज रावण के अहंकार को नष्ट करके युद्ध में उसका संहार करके श्री राम ने विभीषण को लंका का राज्य सौंप दिया। राम के चरित्र में कहीं भी कोई दोष देखने को नही मिलता है। वे योग्य पुत्र, स्नेह करने वाले भाई, आदर्श पति ,अद्वितीय धनुर्धर और मर्यादा पालक थे। रामायण में श्री राम के बाल काल से लेकर 14 वर्ष का वनवास, लंका पर विजय तथा अयोध्या आने और राज-काज संभालने तक का विवरण है। उनके शासन काल में प्रजा सुख-शांति से रहती थी, आज भी हम लोग राम राज्य जैसे शासन की कल्पना करते हैं।

एड्स :एक आधुनिक दानव

पिछले कई वर्षों से एड्स एक भयावह शब्द बनकर पूरी दुनिया के लोगों को भयभीत कर रहा है। तो यह उचित ही है कि इसे आधुनिक दानव माना जाये। दुनिया का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं बचा है जो इसके दानवी प्रहार से बचा हुआ हो। यह दानव कभी अज्ञात रूप से आक्रमण करता है तो कभी कुछ लोग अपने कर्मों से इसे दावत देते हैं। इसके प्रचार व प्रसार में अज्ञानता और अशिक्षा ने बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वैसे तो इस रोग का जन्म पश्चिम के समृद्ध देशों में हुआ है परन्तु इस वैज्ञानिक युग में जब संसार छोटा होता प्रतीत होता है , कुछ भी सीमित नहीं है। अतः सावधान न रहने पर कोई भी इसकी चपेट में आ सकता है।

एड्स के कीटाणु जब शरीर में प्रवेश करते हैं तो तुरन्त कुछ पता नहीं चलता है क्योंकि यह शरीर पर बहुत धीरे-धीरे असर करता है । वास्तव में यह कोई रोग नहीं है बल्कि इससे शरीर की रोग से लड़ने की क्षमता धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है । ऐसी स्थिति में साधारण से साधारण रोग भी बहुत घातक होता है।

एड्स का अभी तो कोई इलाज सामने नहीं आया है। हालाकि इसका प्रभाव कम करने हेतु कुछ दवाएँ उपलब्ध हैं परन्तु ऐसी कोई दवा विकसित नहीं हुई है जो व्यक्ति को रोग से मुक्त कर सके। ऐसी स्थिति में इससे बचने का एक मात्र उपाय सावधानी है। यदि समाज का हर व्यक्ति सवधान रहे तो एड्स का फैलाव पूरी तरह रुक सकता है तथा हम इस आधुनिक दानव को पछाड़ सकते हैं ।

सिनेमा और समाज

सिनेमा बीसवीं सदी में मानव जाति को मिले कुछ बेशकीमती वैज्ञानिक उपहारों में से एक है। इसने विश्व के मनोरंजन के परिदृश्य में एक क्रांति ला दी है क्योंकि इससें पहले नाटक,नौटंकी व त्योहारों के अवसर पर लगने वाले मेले ही लोगों के मनोरंजन का प्रमुख साधन थे। क्योंकि ऐसे समागम कभी-कभी ही आयोजित हुआ करते थे , अतः मनोरंजन के मामले में लोग सदा ही अतृप्त रहा करते थे । सिनेमा विश्व के लोगों के लिये मनोरंजन का एक उत्तम साधन बनकर सामने आया है क्योंकि इसे किसी भी वर्ग ,जाति या धर्म के लोग एक साथ देख सकते हैं तथा इसका आनन्द पूरा परिवार एक साथ बैठ कर उठा सकता है।यह मनोरंजन का एक सुलभ साधन बन गया है ।

भारत में अंगरेज़ों के शासन काल से ही फिलमें बनने का सिलसिला आरम्भ हुआ जिसका सफर मूक, संवाद के साथ मगर श्वेत-श्याम और फिर रंगीन फिलमों के दौर से गुज़रा और आज भी भारतीय फिल्में पूरी दुनिया में बड़े चाव से देखी जाती हैं। लेकिन पुरानी फिल्मों और आज के दौर की फिल्मों में एक बड़ा अंतर है कि जहाँ पुरानी फिल्में समाज के सभी वर्गों को ध्यान में रखकर बनाई जाती थीं वहीं आज का सिनेमा पारिवारिक एवं नैतिक हितों को कई तरह से अनदेखी करता है ।

जहाँ तक सिनेमा और समाज के आपसी सम्बंधों की बात है तो अब तक के अनुभवों से यह सिद्ध हो गया है कि दोनों अपनी-अपनी सीमा तक एक दूसरे को प्रभावित करते हैं । हर दशक का सिनेमा तेज़ी से परिवर्तित होते समाज को दर्शाता है । सिनेमा और समाज एक दूसरे के पूरक भी हैं । व्यक्ति थोड़ी देर के लिये ही सही, अपने दुखपूर्ण संसार से बाहर आ जाता है।जिस प्रकार साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है उसी प्रकार सिनेमा भी समाज का दर्पण बनता दिखाई दे रहा है ।

रविवार, 25 नवंबर 2007

मेरा विन्टर का ब्रेक

अब मेरा दिसम्बर में मेरा विन्टर ब्रेक आने वाला है। मैं दो हफ्ते के लिए जाऊंगी। बहुत मजा आयेगा। मैं आइस्कतिंग जाऊंगी, अपने दोस्तो के साथ मिलूंगी। इस बार जब जाऊंगी हो सकता है कि मैं डी ए टी एक्साम लूंगी। यह एक्साम देन्तिस्ट्री के लिए है। मैं मेडिकल मी तो जाऊंगी लेकिन यह है सिर्फ अगर मेडिकल एक्साम नही पास कर पाई। यह एक्साम उतना क्ठिन नहीं है जितना मेडिकल वाला है। लेकिन मेरे इतना सारे दोस्त है कि मुझे कभी कभी पढ़ने में मुश्किल हो जाती है। जब पढ़ने का समयः आता है, तब सब दोस्तों को छोर देना पढ़ ता है। मई भूल जाती हूँ कि मेरा गोल क्या है। मुझे बहुत फिक्र है अपने फुचर के बारे में।

बुरे लोग

कोइ लोग के भावना में रह है कि सिर्फ उनके लोग अच्छे है जैसा कोइ देसी लोग सोच ते है कि सिर्फ दुसरे देसी ही अच्छे है और कोइ और अच्छा हो ही नही सकता है क्या यह लोग बुरे है या इन लोगो को पता नही है कि सब लोग लोग ही होते है कोई एक से ऊपर नही है और कोई किसी से नीचे नही है यह भावना कहाँ से आती है? मैंने अपनी अच्छी खासी ज़िंदगी अमरीका मी गुजा रही है और इस लिए मुझे लगता है सब लोग एक्स है क्योकि सब किसम के लोग यहाँ मिलेंगे। कभी भी मुझे लगा नहीं कि मुझे गोरे लोग अलग किसम से बात कर रहें है। मैंने भी कभी उनसे अलग तरीके से बात नही करी। अफ्रीकन अम्रिकांस से भी मैंने इक्दम उसी तरीके से बात करी है जसे मैं और सब से बात कर टी हूँ। और चीनी लोगो से भी वोही कर टी हूँ। मैंने देखा है कि जो लोग चोतेपन से यहाँ रह रहें है वह लोग मेरे तरें है। जो लोग दुसरे देशों से आए है उन लोगो को लगता है कि उनके लोग ही अच्छे है। यह बहुत बुरी बात है। लेकिन क्या यह लोग सच में बोरें है या इन लोगो को जो एक्सपोज़र मुझे मिल है इन को नहीं मिल और इसलिए ऐसे है?

अगले सेमेस्टर

अब जनवरी में अगला सेमेस्टर आ रहा है। मुझे अब अपने क्लासेस बदलने पढ़ेंगे। मैं फिर अठरा क्रेडिट्स लूंगी। वैसे अगर मैं चाहाऊँ तो मैं अगले सेमेस्टर ही ग्रैजूएट कर सकती हूँ। लेकिन मुझे यह युनिवर्सिटी बहुत अच्छा लगता है। अगले सेमेस्टर में मैं हिन्दी क्लास, इंग्लिश क्लास, सिकोलोग्य क्लास, फिलोसोफी क्लास, और डान्स क्लास ले रहीं हूँ। उसके ऊपर रिसर्च भी करूंगी। यह सेमेस्टर मुझे अच्छा करना पड़ेगा। जब अप्रिल आजयेगा तब मैं ग्रैजूएट करूंगी। उसके बाद मैं एक साल के लिए काम करूंगी। मुझे लग रहा है कि मैं रिसर्च एक या दो साल के लिए करूंगी। उसके बाद मेडिकल स्कूल में जाऊंगी। बस यह उमीद कर रहीं हूँ कि सब अच्छा ही हो जाये।

गुरुवार, 22 नवंबर 2007

थान्क्स्गिविंग

इस साल मैं अपने थान्क्स्गिविंग छुटिया कि लिये अपने पहले साल के रूममेट के घर चला आया। कालेज आने के करीबन एक महीने पहले मुझे पत्र द्वारा मेरे रूममेट के बारे में बताया गया था। तब मुझे यह बात जान कर बहुत ख़ुशी हुयी थी कि वह हिन्दुस्तानी था। मुझे आश्चर्य भी हुआ क्युकी मैंने किस्सी कालेज के किसी भी आवेदन-पत्र में यह नहीं लिखा था कि में हिन्दुस्तानी हूँ या में हिन्दुस्तानी रूममेट पसंद करूँगा । कालेज आने पर मैं जब विक्रम से पहले बार मिल तो मेरी उसके परिवार से भी मुलाक़ात हुई। मेरे माता पिता उसके परिवार से मिलकर ख़ुशी हुई सात ही सात मानसिक शांति भी मिल्ली यह जानकार कि में यहाँ घर से दूर एक घर प्राप्त कर सकूंगा। इन दो सालो मे हमारे इस अरमान को मैंने बिल्कुल सच पाया हैं - मैं विक्रम के परिवार के घर हर सेमेस्टर आता हूँ और उनके साथ दो-तीन दिन के लिये रहता हूँ। वे मेरे लिए मेरे परिवार समान है और पता नहीं विक्रम और उसके परिवार के प्यार और दोस्ती कि बिना मेरा कालेज का जीवन पुरा कैसे होता ।

मंगलवार, 20 नवंबर 2007

नेत्रदान-महादान

नेत्रों की मदद से बाहरी दुनिया से हमारा संपर्क संभव है, अतः नेत्रों की उपयोगिता हमारे दैनिक जीवन के लिये सबसे अधिक है । नेत्रों की महत्ता का पता हमें तब चलता है जब हम किसी नेत्रहीन व्यक्ति की क्रियाओं को देखते हैं । मार्ग पर चलना तो दूर , घर पर चलने-फिरनें में भी असुविधा होती है। नेत्रहीन व्यक्ति को हर समय किसी न किसी के सहारे की आवश्यकता होती है, उसका दैनिक जीवन भी मुश्किलों से भर जाता है।

हमारे नेत्र का काला गोल हिस्सा 'कार्निया' कहलाता है। यह आँख का पर्दा है जो बाहरी वस्तुओं का चित्र बनाकर हमें दृष्टि देता है । यदि कर्निया पर चोट लग जाये ,इस पर झिल्ली पड़ जाये या इसपर धब्बे पड़ जायें तो दिखाई देना बन्द हो जाता है । हमारे देश में करीब ढ़ाई लाख लोग हैं जो कि कर्निया की समस्या से पीड़ित हैं। इन लोगों के जीवन का आंधेरा दूर हो सकता है यदि उन्हें किसी मृत व्यक्ति का कर्निया प्राप्त हो जाये । लेकिन डाक्टर किसी मृत व्यक्ति का कार्निया तब तक नहीं निकाल सकते जब तक कि वह व्यक्ति अपने जीवन काल में ही नेत्रदान की घोषणा लिखित रूप में ना कर दे ।हमारे देश में सभी राज्यों नेत्रबैंक हैं जहाँ लिखित सूचना देने पर उस व्यक्ति के देहांत के 6 घटे के अन्दर उसका कार्निया निकाल ले जाते हैं।

हमारे सभी धर्मों में दया, परोपकार, जैसी मानवीय भावनाएँ सिखाई जाती हैं ।यदि हम अपने नेत्रदान करके मरणोपरांत किसी की निष्काम सहायता कर सकें तो हम अपने धर्म का पालन करेंगे , और क्योकि इसमें कोई भी स्वार्थ नहीं है इसलिये यह महादान माना जाता है।

क्या भारत अगले 20 सालों में एक विकसित देश बन सकता है?

भारत को कभी सोने की चिड़िया कहा जाता था।किसी समय में यह एक सुखी-सम्पन्न देश था। हमारे तक्षशिला , नालंदा आदि प्राचीन विश्वविद्यालयों में दुनिया भर से छात्र शिक्षा प्राप्त करने के लिये आते थे । परन्तु हज़ारों वर्षों के विदेशी आक्रमण , शासन व विदेशी गुलामी जैसी स्थितियों के कारण आज हमारे राष्ट्र के सामने कई समस्याएँ हैं। स्वतन्त्रता मिलनें के पश्चात इन समस्याओं से हम लगातार झूझ रहे हैं तथा इनको सुलझानें में पिछले कुछ वर्षों में तीव्रता तो आई है परन्तु हम अभी भी एक विकासशील देश हैं, विकसित नहीं । भारत यदि अपनी कुछ मूल समस्याओं को शीघ्र दूर करने का प्रयत्न करे तो अगले 20 वर्षों में वह अवश्य ही एक विकसित राष्ट्र बन सकता है ।

अशिक्षा, बढ़ती-आबादी, धार्मिक झगड़े व गरीबी सभी समस्याओं की जड़ हैं। हमारे देश में भ्रष्टाचार भी सभी सीमाएँ लाँघ चुका है । एक विकसित देश बनने के लिये सामूहिक प्रयत्नों की ज़रूरत है । जब सब लोग निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर राष्ट्र के विकास की चिन्ता करेंगे तो उन्नति को कोई नहीं रोक सकता। ज़रूरत है केवल राष्ट्र की सोती चेतना को जगाने की । हमारे देश के किसान , मज़दूर , व्यवसायी, कला क्षेत्र से जुड़े लोग, बुद्धीजीवी तथा हर क्षेत्र के तकनीकी विशेषज्ञ बहुत मेहनती व कुशल हैं ।इनकी वजह से आज देश का वृद्धि-दर 7 से 8% सालाना है । यदि यह दर करीब 10% पहुँच जाये तो हमारा राष्ट्र अगले 20 सालों में एक विकसित देश ज़रूर बनेगा।

क्या भारत अगले 20 सालों में एक विकसित देश बन सकता है?

भारत को कभी सोने की चिड़िया कहा जाता था।किसी समय में यह एक सुखी-सम्पन्न देश था। हमारे तक्षशिला , नालंदा आदि प्राचीन विश्वविद्यालयों में दुनिया भर से छात्र शिक्षा प्राप्त करने के लिये आते थे । परन्तु हज़ारों वर्षों के विदेशी आक्रमण , शासन व विदेशी गुलामी जैसी स्थितियों के कारण आज हमारे राष्ट्र के सामने कई समस्याएँ हैं। स्वतन्त्रता मिलनें के पश्चात इन समस्याओं से हम लगातार झूझ रहे हैं तथा इनको सुलझानें में पिछले कुछ वर्षों में तीव्रता तो आई है परन्तु हम अभी भी एक विकासशील देश हैं, विकसित नहीं । भारत यदि अपनी कुछ मूल समस्याओं को शीघ्र दूर करने का प्रयत्न करे तो अगले 20 वर्षों में वह अवश्य ही एक विकसित राष्ट्र बन सकता है ।

अशिक्षा, बढ़ती-आबादी, धार्मिक झगड़े व गरीबी सभी समस्याओं की जड़ हैं। हमारे देश में भ्रष्टाचार भी सभी सीमाएँ लाँघ चुका है । एक विकसित देश बनने के लिये सामूहिक प्रयत्नों की ज़रूरत है । जब सब लोग निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर राष्ट्र के विकास की चिन्ता करेंगे तो उन्नति को कोई नहीं रोक सकता। ज़रूरत है केवल राष्ट्र की सोती चेतना को जगाने की । हमारे देश के किसान , मज़दूर , व्यवसायी, कला क्षेत्र से जुड़े लोग, बुद्धीजीवी तथा हर क्षेत्र के तकनीकी विशेषज्ञ बहुत मेहनती व कुशल हैं ।इनकी वजह से आज देश का वृद्धि-दर 7 से 8% सालाना है । यदि यह दर करीब 10% पहुँच जाये तो हमारा राष्ट्र अगले 20 सालों में एक विकसित देश ज़रूर बनेगा।

बुधवार, 14 नवंबर 2007

वन विनाश के दुष्प्रभाव

वन न केवल भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं परन्तु सरे संसार के लिये अति आवश्यक हैं । आदि मानव सभ्यता के प्रारम्भ से ही वनों के निकट निवास करता था । वनों का आज भी उतना ही महत्व है जितना कि पहले था, बल्कि आज उनका महत्व अधिक है क्योंकि वन विनाश की प्रक्रिया अब बहुत तेज़ी से आरम्भ हो गयी है।

वन विनाश का मुख्य कारण वर्तमान सभ्यता है। हमारी सभ्यता उपभोग प्रधान है। बढ़ती आबादी की आवश्यकताएँ भी बढ़ रही हैं। खेती के लिये अधिक भुमि चाहिये, रहने के लिये अधिक स्थान चाहिये, जलाने के लिये लकड़ी, कागज़ की लुगदी, औद्योगिक आवश्यकताओं की पूर्ति आदि । सभी का एक ही जवाब-पेड़ काटे जाएँ अर्थात वन विनाश ।

वन विनाश के कारणों से हट कर यदि हम इसके दुष्परिणामों के बारे में सोचें तो हमें बहुत चिन्तित होना पड़ेगा । इसका सबसे बड़ा कुप्रभाव हमारे सामने वायु-प्रदूषण के रूप में है। जहाँ पेड़ों का अभाव है वहाँ वायु प्रदूषित है। और वायु प्रदूषण की समस्या शहरों में सबसे ज़्यादा है। यहाँ लोगों को कई रोग हैं जिनमें श्वास के रोग से लोग सबसे अधिक पीड़ित हैं ।

वन विनाश से वन्य प्रजातियों को भी बहुत नुकसान पहुँच रहा है और बहुत सी प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा बहुत सी लुप्त होने की कगार पर हैं। वनों का सफाया होने से भूमि की ऊपर की उपजाऊ मिट्टी वर्षा के जल से बहकर उन स्थानों पर चली जाती है जहाँ उसका उपयोग नहीं । वनों का क्षेत्र कम होने से वर्षा भी अनियमित होती जा रही है । इस सबसे 'ग्लोबल-वार्मिंग' होने लगी है। इसका सीधा कुप्रभाव मानवों पर पड़ेगा ।

वन विनाश की हानियों को देखते हुए हमें वन क्षेत्र को बढ़ाने के लिये व बचे वनों के संगरक्षण के लिये तुरन्त कदम उठाने चाहियें ।

क्रोध, एक अभिशाप

क्रोध अहंकार व ईर्ष्या से जन्म लेता है। मनुष्य का क्रोध विनाश का करण बन जाता है।जब मनुष्य क्रोधित होता है तब उसकी सारी शिक्षा , सारी होशियारी, सारा पाण्डित्य धरा का धरा रह जाता है।मनुष्य के भीतर का दानव प्रकट होने लगता है। ऐसी स्थिति में बुद्धि और विवेक का कोई वश नहीं चलता तथा मनुष्य हिंसा का ताण्डव करने लगता। इतिहास गवाह है कि कई राजाओं ने अहंकार को तृप्त करने के लिये भयंकर नरसंघार किये हैं।सभी सिकंदरों,हिटलरों व ओसामाओं की एक ही कहानी है कि सभी ने अपनी महत्वकांक्षाओं की खातिर दुनिया को नरक जैसा बना दिया ।

क्रोध एक शक्ति भी है। जब हमारा शरीर क्रोधयुक्त होता है तो भीतर से एक शक्ति जन्म लेती है। यह शक्ति वस्तुओं या व्यक्तियों पर तुरन्त टूट पड़ती है जिसके करण वह निर्बलों पर अत्याचार करने लगता है। पुरुष स्त्रियों व बच्चों पर टूट पड़ता है , स्त्री बच्चों पर बरस पड़ती है आदि ।

क्रोध मन की अशांति से जन्म लेता है, यह मन के अस्वीकार से उपजता है।मन उन बातों को स्वीकार नहीं कर सकता जो अहंकार के विप्रीत हों । क्रोध कहता है कि बिना चुनौतियों को स्वीकार किये , बिना कांटों का सामना किये शिखर को छू लिया जाये ।इसलिये क्रोध हिंसा का सहारा लेता है । क्रोध का अंत हमेशा पछतावे के रूप में देखा गया है।जब क्रोध शांत होता है तब दिखाई पड़ता है कि भूल हुई है व क्रोध कितना बड़ा अभिशाप है।

मंगलवार, 13 नवंबर 2007

आत्मविश्वास

आत्मविश्वास के द्वारा ही हम अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। आत्मविश्वास परिश्रम से आता है हम अपनी योग्यता का अनुमान स्वंय ही लगा सकते हैं जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास होता है, वह विपरीत परिस्थितियाँ होने के पश्चात भी सफलता प्राप्त करता है जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास नहीं होता, वह हीन भाव से ग्रस्त हो जाता है और अपने सामने आए स्वर्ण अवसर को भी खो देता हैवह जीवन में कभी सफलता प्राप्त नहीं कर सकता संदेह और अनिश्चय को उठाकर फेक देना चाहिए अपने मन में आत्मविश्वास की भावना को लाकर ही किसी काम का संकल्प करना चाहिये। तभी हम सफल हो सकते हैं

आत्मविश्वास में बहुत शक्ति होती है आत्मविश्वास किसी भी परिस्थिति में उचित निर्णय लेने का साहस प्रदान करता है जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास होता है, वह अपने सामने आने वाले हर अच्छे अवसर को पहचान लेता है, और पूर्ण निष्ठा से कार्य करते हुए अपने सपनों को साकार करता है श्वर हमें सदैव जीवन में आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करता है, परन्तु जिसमें अपनी योग्यता का विश्वास हो, उसके हाथ से अवसर निकल जाता है

अवसर एक वरदान होता है जो जीवन में बार-बार नहीं आता है अतः उसके स्वागत के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए, और पूर्ण आत्मविश्वास और निष्ठा के साथ, सामने आए हुए अवसर का लाभ उठाना चाहिए दूसरे हम पर तभी विश्वास करेंगे जब हम में आत्मविश्वास होगा